सोमवार, 12 जुलाई 2021

अथ श्री महाभारत कथा, महाभारत कथा से एक प्रसंग।

साभार:- सोशल मीडिया

अथ श्री महाभारत कथा, महाभारत कथा।

कथा है पुरुषार्थ की, ये स्वार्थ की परमार्थ की।
सारथि जिसके बने, श्री कृष्ण भारत पार्थ की।

शब्द दिग्घोषित हुआ जब
सत्य सार्थक सर्वथा
शब्द दिग्घोषित हुआ.....

भारत की है कहानी, सदियो से भी पुरानी।
है ज्ञान की ये गंगा,
ऋषियो की अमर वाणी।

ये विश्व भारती है, वीरो की आरती है।
है नित नयी पुरानी, भारत की ये कहानी।
महाभारत!!! महाभारत!!! महाभारत!!! महाभारत!!!

     महाभारत में एक से बढ़कर एक बलशाली और शक्तिशाली योद्धा थे। उनमे से कुछ लोग धर्म के साथ खड़े हुए थे तो कुछ अधर्म की तरफ से मात्र अपने फर्ज को निभा रहे थे लेकिन महाभारत की कहानी ने जिस एक व्यक्ति के साथ न्याय नहीं किया हमारे विचार से वह हैं महात्मा विदुर। ऐसे आप सभी के मन में कर्ण का भी नाम आ रहा होगा जो कि सत्य भी है उनके बारे में फिर अगले लेख में फिलहाल इस लेख हम महात्मा विदुर के बारे में चर्चा करते हैं।

          भाषा और ज्ञान के आधार पर तो हम इनको महाभारत के दुसरे कृष्ण भी बोल सकते हैं। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि है कि ये धर्मराज युधिष्ठिर के बाद वे भी धर्मराज का ही रूप थे। यदि महाभारत में सबसे शक्तिशाली योद्धा घटोचक के पुत्र बर्बरीक के बाद कोई था तो वह विदुर ही थे। वे अगर चाहते तो अपने चमत्कारी धनुष से एक तरफ की पूरी सेना को पल भर में खत्म कर सकते थे। यह चमत्कारी धनुष खुद कृष्ण उनको दिये थे। लेकिन उनको भली-भांति पता था कि अगर मुझको युद्ध लड़ना भी पड़ा तो कौरवों की तरफ से लड़ना होगा तभी शायद उन्होंने युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया था।

अब हम बात कर लेते हैं इनके जन्म के बारे में।

        ऋषि मंदव्य को एक राजा ने चोरी के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया था लेकिन कई दिनों तक सूली पर लटकने के बाद भी ऋषि मंदव्य की मृत्यु नहीं हुई। इस पर राजा हैरान हो गया और उसने अपने निर्णय पर फिर विचार किया। तब राजा को ज्ञात हुआ कि उसने गलत इंसान को सूली की सजा दी है। राजा ऋषि से माफ़ी मांगता है और तब ऋषि की मृत्यु हो जाती है। जब ऋषि मंदव्य यमलोक पहुँचते हैं तो वह यमलोक से पूछते हैं कि उनको इतनी भयानक सजा क्यों दी गयी है? तब यमराज ने बताया कि जब वह 12 साल के थे तो उन्होंने एक पतंगें को सुई से मारा था। यह सुन ऋषि को गुस्सा आता है और वह कहते हैं कि तब वह बालक थे और ज्ञान का अभाव था। यह सजा न्याय नहीं है और उन्होंने यमराज को श्राप दिया था कि उनको पृथ्वी पर अछूत के घर जन्म लेना होगा और आप सभी को यह ज्ञात ही होगा की विदुर का जन्म एक दासी के पेट से हुआ था। विदुर को कृष्ण से कम आंकने की गलती किसी ने भी नहीं की है। जब वे अपनी बात रखते थे तो सभी बड़े ध्यान से उनकी बात सुनते भी थे। दुर्योधन को लेकर तो उन्होंने कई बार अपनी बात बिना डरे सभी के समक्ष रखी थी।

दुर्योधन के द्वारा किया गया था विदुर का अपमान।

          दुर्योधन को जब विदुर युद्ध ना करने की सलाह दे रहे थे तो इस बात ये वह काफी खफा हो गया था। बात ही बात में वह विदुर को अपमानित करते हुए कौआ और गीदड़ बोल देता है। विदुर इस बात से क्रोधित होकर अपना चमत्कारी धनुष तोड़ देते हैं और प्रण लेते हैं कि वह कभी भी युद्ध नहीं करेंगे। इसके साथ विदुर, अंधे पिता यानी धृतराष्ट्र को यह भी ज्ञान दे देते हैं कि दुर्योधन आपके कुल को खत्म करने के लिए पैदा हुआ है, अच्छा रहेगा कि आप सभी दुर्योधन का परित्याग कर दें। किन्तु तब उनकी बात किसी ने नहीं मानी थी। 
        विदुर को पांडव हमेशा प्रिय लगते थे इसलिए असंभव था कि महात्मा विदुर पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ते किन्तु यह बात सत्य है कि अगर विदुर लड़ते तो युद्ध के मैदान में इनसे शक्तिशाली योद्धा कोई नहीं हो सकता था।

         आप सभी विद्वान पाठकों के समक्ष मैंने अपने पौराणिक कथाओं से संबंधित कुछ बात रखने का साहस किये है। प्रयास कैसा है? आप कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा। 

धन्यवाद🙏
 

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