शनिवार, 31 जुलाई 2021

भोजपुरी में ख़ाजा या भदेउवां आम, मगध क्षेत्र में फेदा और अंग क्षेत्र में ताड़कुन के फल और मेरा बचपन


           सावन का महीना समाप्त होते ही वातावरण से आम की खुशबू गायब होने लगती है और इस परिवेश में आगमन होता है एक नए फल का जिसे भोजपुरी में ख़ाजा या भदेउवां आम, मगध क्षेत्र में फेदा और अंग क्षेत्र में ताड़कुन कहा जाता है। मुझे आज भी याद है बचपन में ताड़ के पेड़🌴 के पास से हटते नहीं थे और घंटो इसके गिरने का इंतजार करते थे और कुछ दरमियान भगवान से इसके फल गिरने की कई दफा दुआ भी मांग लेते थे और भगवान स्वीकार भी करते थे और सभी बच्चों को एक-एक ख़ाजा मिल जाता था। हम लोग उसे उठाकर घर में लाकर भूसा में गाड़ देते ताकि दो-चार दिन में अच्छे से पक जाए और पकने के उपरांत उसे खाया जाता था। इसकी गुठली भी कम कमाल की नहीं थी उसे भी जमीन में गाड़ कर महीना दो महीना बाद काट कर के उसके अंदर से निकलने वाले पदार्थ को खाया जाता यानी हर एक चीज की कीमत होती थी।

              कई बार तो बाजार से भी खरीद कर ख़ाजा आता था। एक दफा ऐसा हुआ कि बहुत ज्यादा ख़ाजा आ गया यानी बाजार से भी आ गया और पेड़ पर से भी। इत्तेफाक से सब एक साथ ही पक गया। जितना खा सकते थे उतना खाए जो न खा सके, क्योंकि उसको खरीदने में पैसा लगा था इसलिए उसको एक बड़े से बाल्टी में घोल कर गुलाबों🌹 को खिला दिए। गुलाबो मेरी भैंसिया🐃 का नाम था।





 

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