स्वयं की मजबूतियों और कमजोरियों को समझना
(Understanding Your own Strengths and weaknesses)
स्वयं की मजबूतियों एवं कमजोरियों को पहचानने में सक्षम होकर परिवार, विद्यालय और विभिन्न स्थानों पर अपनी पहचानों और भूमिकाओं को समझ पाना ही स्वयं की पहचान है।
विद्यालय में आपसे शायद कभी पूछा गया होगा- "बड़े होकर आप क्या बनना चाहते हो?" इस प्रश्न में "क्या" की बजाय "कौन" पर अधिक जोर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि हम क्या बनना चाहते हैं, क्या इसके पहले हमें यह पता है कि हम क्या है?
आइए इस लेख में इसी मुद्दे पर चर्चा करते हैं। मुझे लगता है कि निम्नलिखित बातें अपने आप को समझने में हमारी मदद कर सकती है-
• अपनी शक्तियों को समझना :- आप में स्वाभाविक रूप से कौन-सी योग्यताएँ, विद्यमान है तथा किनका पोषण व विकास करना चाहते हैं? वे शक्तियाँ जो आपमें विद्यमान हैं और जिन्हें आप पोषित और विकसित करना चाहते हैं, आपकी निजी परिसम्पत्ति हैं। इनके कारण आप जीवन में एक अलग स्थान रखते हैं जो दूसरों से भिन्न हैं। इनसे आपको अवगत होना चाहिए। इसमें आपकी सांवेगिक शक्तियों (Emotional forces) और प्रेम अभिव्यक्ति की योग्यता तथा गुण-दोष विवेचन की योग्यता सम्मिलित है।
• अपने मनोवेगों को जानना :- वह क्या है जिसकी आपको एक धुन रहती है। वह क्या है जिससे आप उत्तेजित या उत्साहित हो जाते हो एवं उसे आपकी एकाग्रता की आवश्यकता है ? वे कौन से क्रियाकलाप और लक्ष्य हैं जिनसे आप वास्तव में सजीव अनुभव करते हो ? आप अपने जीवन का निर्माण उन मनोवेगों के इर्द-गिर्द नहीं कर सकते यदि आपने उन्हें सही रूप में पहचाना नहीं है। जब आप आन्तरिक समन्वय उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हों। यह सुनिश्चित करना कि आपके मनोवेग तथा आपके मूल्य और मानक एक दिशा में हैं, आपके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होगा।
• अपने मूल्यों की जानकारी :- ये वे बातें हैं जो गहनतम स्तर पर आपके लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। आपके निजी मूल्य एवं मानदंड (मानक) क्या है ? आपकी प्राथमिकताएँ तथा विश्वास या आस्थाएँ क्या है ? आप इन्हें इतना महत्त्व क्यों देते हैं ? आप अपने निजी मानकों और नैतिक मूल्यों को किस स्तर की वचनवद्धता देना चाहते हैं ? आप अपने वास्तविक आत्म के प्रति कितना सच्चा रहना चाहते हैं ?
• अपनी प्रवृत्तियों को पहचानना :- आपकी प्रवृत्तियाँ चाहे वे अच्छी हो या बुरी, आपकी आदत बन जाती हैं। क्या आप अपनी सोच के आधार पर किन्हीं कार्यों को करना चाहोगे ? या आप चाहोगे कि कार्यों को टालते रहें या अत्यधिक प्रक्रिया करोगे ? अपनी अभ्यसित प्रवृत्तियों को जानना, आपके लिए उन क्षेत्रों के विश्लेषण में सहायक हो सकता है जिनमें कुछ सुधार की आवश्यकता है। इससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि कौन-सी प्रवृत्तियाँ आपकी प्रबलताओं और सफलताओं में अत्यधिक योगदान देती हैं।
• अपनी कमियों (परिसीमाओं) को स्वीकार करना :- यह समझ लें कि आप प्रत्येक प्रयास या क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ नहीं बन सकते। यह जान लेना अच्छा होगा कि इस समय कौन से कौशल एवं क्रियाकलाप आपकी योग्यताओं से परे हैं। ऐसा जानते हुए आप ऐसे क्रियाकलाप का दायित्व किसी और को दे सकते हैं तथा अपनी ऊर्जा का प्रयोग वहाँ करेंगे जहाँ सबसे प्रभावी हो सकता है। हम जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में अपनी योग्यताओं में सुधार ला सकते हैं अत: वर्तमान कमियों को स्थाई न समझें। अपने निजी मूल्यांकन में यथार्थवादी तथा व्यावहारिक बने। अपने वास्तविक आत्म को जानने में आपकी सत्यनिष्ठा (ईमानदारी) एक पूर्वापेक्षा (Prerequisite) है।
• अपने लक्ष्य निर्धारित करना :- आप वास्तव में किस वस्तु को प्राप्त करना चाहते हो। आप किस तरह के व्यक्ति के रूप में विकसित होना चाहते हो ? आपके लक्ष्य विशिष्ट, निर्धारणीय तथा वास्तविक या यथार्थवादी होने चाहिए। जब बात लक्ष्य निर्धारण की होती है तो इसका मुख्य तत्त्व स्पष्टता है। स्पष्टता कार्य को प्रेरित करती है एवं स्पष्टता का अभाव, गड़बड़, विभ्रम तथा निष्क्रियता की ओर ले जाता है।
• अपनी दिशा स्थापित करना :- आपका वास्तविक आत्म जीवन में किस ओर जाना चाहता है ? एक बार जब आप अपने मूल्यों, शक्तियों, मनोवेगों, प्रवृत्तियों, सीमाओं और लक्ष्यों को समझ जाते हो तो आपको एक गन्तव्य की आवश्यकता पड़ती है जिस ओर आप गमन करना चाहोगे। यही आपकी दिशा होगी। अपने गन्तव्य पर पहुँचने के बारे में चिन्ता न करें क्योंकि जो महत्त्वपूर्ण है वह 'यात्रा' है। अत: एक ऐसी दिशा को चुनें जो वास्तविक प्रसन्नता का निरूपण करती हो तथा इस और आगे बढ़ो। तब देखोगे कि जीवन आपके सम्मुख कैसे खुल जाता है और खिल उठता है।
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