सोमवार, 26 जुलाई 2021

बैकबेंचर दोस्तों के नाम....✍️

बैकबेंचर दोस्तों के नाम 

                   हमको अच्छे से याद है हमारी क्लास में सभी शिक्षकों को वह बच्चे ज्यादा पसंद आते थे जिनको कोई भी पाठ जल्दी याद हो जाएं। जो किसी भी कठिन शब्दों के अर्थ झट से बता दे। जो गणित के हिसाब एकदम से ठीक-ठीक लगा ले। न्यूटन के नियम से लेकर आर्किमिडीज का सिद्धांत हो या Periodic Table (आवर्त सारणी) सब एक सांस में बोल दे। हिंदी के मुहावरों के अर्थ से लेकर बालक, बालको, बालक: शब्द रूप जिनके जबान पर रहता हो। जो समय से क्लास में आकर बैठ जाते हो। जिनके घरों से उनकी शिकायतें ना के बराबर आती हो। 

          स्वभाविक है, ऐसे ही छात्रों को पाकर शिक्षक आपने आप को सुरक्षित एवं गर्व से भरा हुआ महसूस करते हैं। कोचिंग क्लासेज की भी यही परम्परा है। चाहे शिक्षक लाख कह लें कि सभी विद्यार्थी हमारे लिए समान हैं लेकिन यह कभी सम्भव नहीं हो पाता। बैकबेंचर्स छात्रों से उनको उम्मीद ना के बराबर रहती है। यदि किस्मत से कभी पास हो गए, मेरी तरह। 

       तब शिक्षक पुरा क्रेडिट अपने आप को लेते हुए कहते है की इसके पास होने की उम्मीद ही नहीं थी लेकिन मेरे कोचिंग में आया तो देखो पास हो गया और यदि पास नहीं हुए तब सुनने को मिलता है पढ़ता ही नहीं है, दिन भर बदमाशी करता है। अंतिम बेंच पर बैठता है ध्यान से सुनता ही नहीं है। पढ़ने-लिखने में तो इसका मन लगता ही नहीं था, आवारागर्द, बदमाश कहीं का!!! और ऐसे ही ना जाने कई शब्दों से नवाजा जाता था।

            हर क्लास में कुछ ऐसे बच्चे होते हैं, जिनका पढ़ने में मन बिल्कुल नहीं रमता। कभी वो सिनेमा देखने निकल गए तो कभी क्रिकेट खेलने चल पड़े। वह भविष्य के बारे में ज्यादा चिंता भी नहीं करते। उनका मानना यह था कि ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? अगले दिन दो-चार छड़ी खा लेंगे। घर शिकायत चली भी गयी तो देखा जाएगा। वह तो बस वर्तमान में जीते थे कल के भविष्य की चिंता में आज को बर्बाद नहीं करते थे। ये कोशिश तो करते हैं पढ़ने की लेकिन रट नहीं पाते। A+B का होल-स्क्वायर भले ही इन्हें ना पता हो लेकिन जिंदगी को स्क्वायर करके कैसे जीना है वह भलीभांति सीख जाते हैं। हमारे गांव में एक कहावत प्रचलित है कि पहली कक्षा से लेकर नवीं तक कुर्सी बेंच सब पास हो जाते हैं तो यह बैकबेंचर्स क्यों नहीं? हम सभी असली पढ़ाई दसवीं में ही करते थे क्योंकि पास होकर दिखाना होता था। शायद आज भी ऐसा ही होता हो।

               उतनी कठिन मेहनत के बाद भी हम और मेरे जैसे  बैकबेंचर दोस्त कोई सेकंड तो कोई थर्ड डिवीजन से मैट्रिक पास कर पाते। पर हम फिसड्डी नहीं थे। जितनी हीनभावना से हमें देखा गया था। हम ये जरूर मानते हैं कि उतने के भी अधिकारी नहीं थे की उच्चतर शिक्षा हासिल कर पाए। हम में से कोई यूपीएससी (UPSC) या आईआईटी (IIT) की तैयारी के लिए कोटा या दिल्ली नहीं जा पाया। कोई सरकारी नौकरी के चक्कर में दस साल से एक ही कमरे में घिस नहीं रहा। आज मेरे सभी बैकबेंचर दोस्त ज़िंदगी की पाठशाला में अव्वल दर्जे पर हैं और अपने पूरे परिवार को संभाल लिया है, मेरे उन दिनों के लापरवाह बैकबेंचर दोस्तों ने। 

            आज भी जब दिल्ली, मुम्बई या कोलकत्ता कहीं इनके कमरों पर एग्जाम के सिलसिले में जाना होता है तो मेरे वही दोस्त जिन्हें टीचर हमेशा दुत्कारा करते थे। आज वह हमसे कहते हैं की 'भाई तू आराम से यहां रह, मस्त एग्जाम दे बिना किसी टेंशन के। तेरा दोस्त कमा रहा है ना!!!

             शाम को जब वे प्राइवेट नौकरी से थके-हारे आफिस से लौटकर रूम पर आते हैं तो खुलती हैं पिछले दिनों की यादों के पन्ने। ठहाके लगते हैं। चेहरों पर रौनकें आती हैं, जब वह यह पूछते हैं कि भाई तेरी वाली का शादी हुआ कि नहीं?? शर्माते हुए कहना पड़ता है- हां!!! एक बच्चा भी है, आज भी कभी-कभी बात हो जाती है। कुछ यादें तो गुदगुदा जाती हैं जैसे कि- ओ कबाड़ी की दुकान हो या फिर Sure Success में लगने वाली क्लास। कुछ बाते तो मायूस कर जाती हैं जब वो हंसते-हंसाते यह कहते हैं 'भाई पिछले साल छत ढलवा लिया था। इस साल सोच रहा हूँ थोड़े पैसे बचाकर प्लास्टर करवा लूं। ये सब भी तो ज़रूरी है यार!!! और सोच रहा हूँ माई को एक सोने की चेन बनवाकर दे दूं। देखते हैं इस दीवाली टाइम तक ओवरटाइम लगाकर भी कुछ कर ही लेंगे' 

          मेरे ये बैकबेंचर दोस्त स्कूल के दिनों में भले ही अरस्तु एवं सुकरात की फिलोसोफी नहीं रट पाए थे परन्तु जिंदगी की फिलॉसॉफी में कतई असफल नहीं। गुरुजी आप गलत थे, यह असफल नहीं हुए!!! फेलियर नहीं हुए!!! सफल हुए हैं, जिंदगी की परीक्षा में सफल। आज भी जो बच्चे पीछे की बेंच पर चुपचाप बैठ रहे होंगे, जिनको कोई नोटिस नहीं कर रहा होगा। जिनको आप फीस लेने के समय ही टोकते होंगे, वो बच्चे भी बड़ी शांति से अपनी जिम्मेदारियां निभा जाएंगे। दो जोड़ दो - चार। तपाक से बता देना काबिलियत नहीं। दो जोड़ दो चार कैसे किया जाए असल काबिलियत यह है......


मेरे सभी बैकबेंचर्स दोस्तों को समर्पित🙏


 विश्वजीत कुमार✍️


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