जुड़वां भाई और बहनों का मेरी जिंदगी से बहुत जुड़ाव रहा है। जब मेरा जन्म 14 जून 1993 को हुआ था। उस समय मेरे घर पर मेरे दो बड़े भाई यानी बड़े पापा के लड़के, वो जुड़वां ही थे। बचपन उन्हीं के सानिध्य में बिता। थोड़े बड़े हुए तो गांव पर मेरा जो पहला दोस्त बना वह भी जुड़वां। जुड़वां ऐसे के दोनों की शक्ल-सूरत बिल्कुल एक जैसी। मैं क्या शिक्षक भी हमेशा उलझन में रहते कि कौन, कौन है। जब विकट परिस्थिति आती यानी की गलती कौन किया है? तब मुझे पहचान के लिए बुलाते। क्योंकि एक कलाकार की पारखी नजर उस समय भी थोड़ी बहुत विकसीत हो ही गई थी। यह दौर यूं ही चलता रहा और मैं +2 में आ गया। उक्त बातें 2009 की है। जैसा कि एक उम्र में सभी के साथ होता है मेरे साथ भी हुआ लेकिन इसे आप Love नहीं Attraction कह सकते हैं गनीमत यह थी कि वह जुड़वा नहीं थी। लेकिन यह सफर भी लंबा नहीं चला क्योंकि 2010 में मेरा नामांकन पटना में हो गया।
पहले दिन पटना के कला महाविद्यालय में हम लोगों का स्वागत समारोह रखा गया था हर कोई अपनी खूबसूरती से ज्यादा खूबसूरत हो कर आया था, सिवाय मेरे। क्योंकि मैं गांव से पहली बार पटना गया था। वहां पर वही प्लस टू (+2) वाली दोस्त दिखी मुझे तो सहसा यकीन ही नहीं हुआ कि इसने भी कला महाविद्यालय में नामांकन करा लिया है। फिर मुझे ध्यान आया कि उसे तो Art का A भी नहीं पता था फिर अचानक यहां महाविद्यालय में कैसे ??? मेरा वहम उस समय दूर हुआ जब उसे अपना परिचय देने के लिए मंच पर बुलाया गया।
कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में स्वागत समारोह के दिन सभी छात्रों को मंच पर कुछ गतिविधियां भी संपन्न करनी होती थी। यदि आप कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स होंगे तो आपको पता होगा नहीं तो आप 3 idiot देख लीजिएगा। उस पिक्चर में और मेरे महाविद्यालय में अंतर बस इतना था की कला एवं मेडिकल के छात्रों को पहले दिन से शर्म को त्यागना होता था नहीं तो आगे वह अपना कार्य अच्छे से संपन्न नहीं कर सकते। हमारे यहां इसकी शुरुआत वेलकम पार्टी से ही हो गई। मैं तो कई दिन तक यह सोचता रहा कि यह कैसा स्वागत है।🤔 यदि स्वागत ऐसा है तो परिणाम कैसा होगा? खैर कला महाविद्यालय में मुझे रुकने की एक वजह मिल गई थी प्लस टू वाली दोस्त की हमशक्ल। वह अलग बात थी कि 05 साल तक मैं उसे दोस्त नहीं बना सका। अक्सर मुझे सुनील जोगी की यह पंक्तियां याद आती रही........
तुम फौजी अफसर की बेटी,
मैं तो किसान का बेटा हूं।
मैं तो सत्तू सपरेटा हूं।
मैं पेड़ के नीचे लेटा हूं।
मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूं।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्यार नहीं है खेल प्रिये।
इन 05 सालों के दरमियान मैं उसे दो बार ही अच्छे से देखा। पहली बार वेलकम पार्टी के दिन और दूसरी बार फेयरवेल के दिन। उस दिन उसके चेहरे पर वह मुस्कान नहीं थी जिससे कि मेरे क्लास की शुरुआत होती थी। हर कोई एक दूसरे से गले मिल रहा था। रो रहा था। पता नहीं मुझे ऐसा लगा कि एक परिवार से हम टूट रहे हैं। 05 सालों के दरमियान सभी के साथ एक अटूट रिश्ता बन गया था। वह भी सभी से हाथ मिला रही थी क्योंकि यह सभी के लिए अंतिम मिलन था। मुझे राहत इंदौरी साहब की यह शायरी याद आ गई।
राज जो कुछ हो इशारों में बता भी देना।
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना।।
मुझे लगा की शायरी तो बहुत बार सुनी है आज इसका प्रयोग भी करना चाहिए। क्या पता बात बन भी जाए? मैंने भी वही किया जो राहत साहब बताये थे। अगर कोई और दिन रहता तो शायद कुछ और मिलता..... लेकिन उस दिन एक प्यारा सा HUG मिला।
मैंने बस इतना सुना:- पागल!!!
मैंने मन ही मन कहा:- वह तो मैं हूं ही CRAZY!!!!.
कुछ देर बाद अनुभव किया कि मेरे कंधे भींग गए हैं। उसकी आंखों से लगातार आशु गिर रहे थे। मेरी बातें अच्छी लगी या बुरी मैं समझता तब तक बाकी सभी सहपाठी आ गए और बोले कि चलो अंतिम बार ग्रुप फोटो क्लिक करते हैं। मैंने पहली बार फोटो क्लिक करने से मना किया और कहा- नहीं आज के दिन मैं कैमरा का प्रयोग नहीं करूंगा और मैंने अपना कैमरा किसी और को दे दिया, पूरे कार्यक्रम की फोटोग्राफी उसी के द्वारा की गई।
महाविद्यालय से निकलने के बाद जैसे अमुमन होता है हर छात्र अपनी-अपनी सुविधा अनुसार कार्य करने लगते हैं। लेकिन मैंने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी और M.F.A.(Master of Fine Art) यानी PG (पोस्ट ग्रेजुएशन) में नामांकन ले लिया। काशी विद्यापीठ में 2015-17 मेरा सत्र रहा। कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना से हम तीन छात्र वहां नामांकन लिए थे आजाद मैं और चंदन यानी ABC (Ajad, Bishwajeet & Chandan).
Welcome Party के दिन जैसे ही हम लोगों का परिचय सत्र शुरू हुआ मैंने कहा:- हम तीन हैं, तीनों पटना आर्ट कॉलेज से आए हैं और हमारा नाम है- ABC. इतना कहना था कि पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा। उन हंसी में एक मधुर मुस्कान के साथ हंसी भी थी जो देर तक मेरे कानों में गूंजती रही। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद मेरी नजरे इस मधुर हंसी को ढूंढने का प्रयास की लेकिन वह मिली नहीं। मैंने उसके बारे में वहां के छात्रों से पता किया तो मालूम चला कि वह चित्रकला विभाग से हैं यानी कि मेरे ही वर्ग से है बस विभाग अलग है क्योंकि मैं अप्लाइड आर्ट्स से था। चित्रकला विभाग वालों का स्वागत समारोह (Wel-Come Party) मेरे आने के 02 दिन पहले ही हो गया था इसीलिए उसके बारे में विशेष जानकारी नहीं मिली। लेकिन उसी दिन शाम में वह बजार में मिल गई।
मैंने कहा:- हाय (Hii)
उसने भी कहा:- हेलो (Hallo)
मैंने कहा:- मेरा नाम विश्वजीत कुमार है और मैं Applied Arts से हूँ।
तब उसने कहा:- अच्छा-अच्छा आप M.F.A. कर रहे हैं।
मैंने कहा:- हां आप भी तो चित्रकला विभाग से हैं।
उसमें चौकते हुए कहां:- आपको कैसे पता?
मैंने भी बड़े ही गर्व से कहां:- बस पता कर लिये।
तब वह बोली:- नहीं-नहीं हम पत्रकारिता से PG कर रहे हैं।
मेरा पूरा रिपोर्ट वहां चकनाचूर हो गया क्योंकि एक पत्रकार से सामना जो हो गया था।
मैंने कहा:- माफ कीजिए लेकिन आप आज अप्लाइड आर्ट के वेलकम पार्टी में क्यों थी?
उसने कहा:- मैं तो आज महाविद्यालय में गई ही नहीं थी।
मैंने पुनः उससे Sorry कहा और अपने रूम पर आ गया। रात भर वह हंसी मेरे कानों में गूंजती रही। अगले दिन जब पुनः महाविद्यालय गए मुख्य प्रवेश द्वार पर ही मुझे किसी ने आवाज लगाई-
ओए ए.बी.सी.
मैंने घूम कर देखा तो वहीं थी फिर से वही हंसी हंसते हुए।
मैंने कहा- हाय गुड मॉर्निंग, कैसी हो?
उसने कहां हम तो बहुत अच्छे हैं लेकिन आज तुम तो एकदम से चमक रहे हो।
मैंने कहा:- हां, आज महाविद्यालय के क्लास का पहला दिन है।
मैं उससे कल शाम वाली बात पूछता तब तक सर आ गये और बोले तुम दोनो यहां गेट पर क्या कर रहे हो ? क्लास में जाओ। लंच के दरम्यान मैं महाविद्यालय के कैंटीन में चाय पी रहा था तब तक वह आई और कैंटीन में जितना समोसा था सभी को पैक कराने लगी। समोसा पैक कराने के साथ वह कुछ कह भी रही थी। उसकी बातें सुनने के लिए मैंने एक कप और चाय की ऑर्डर दे दी। वह लगातार बोले जा रही थी-
खिलाना उसे है और मुझे यहां भेजी समोसा लाने को।
मैं उसके पास गया और बोला- क्या हुआ?
उसने मुझे ऐसे देखा जैसे पहचानती ही नहीं हो।
फिर बोली- आरे!!! आप तो वही है ना जो कल बाजार में मिले थे।
मैंने कहा- हां। फिर वह बोली- तो आप यहां क्या कर रहे हैं? आपके क्लास में पार्टी हो रही है।
मैंने कहा- पार्टी!! कौन दे रहा है?
तब तक वह कुछ बोलती है उसका कॉल आ गया और बोली- अरे भाई ला रहे हैं, रुको तो। वह तुरंत वहां से समोसा लेकर निकल गई। मैं वहीं बैठ कुछ सोचते हुए दूसरी कप की चाय पीने लगा।
तब तक मेरा फोन आया। जैसे फोन उठाया उधर से आवाज आई-
कहां हो?
मैंने कहा:- कैंटीन।
उधर से फिर आवाज आई:- जल्दी से क्लास में आओ।
मैं तुरंत समझ गया कि यह आवाज तो उसी की है।
मैंने पूछा- मेरा नंबर कहां से मिला?
बस मिल गया यह कहते हुए उसने फोन रख दिया।
मैं एकदम से दौड़ते हुए क्लाश की ओर बढ़ा तब तक वह समोसा लेकर जाते दिखी।
मैंने उससे कहा:- फोन क्यों किया? कैंटीन में ही बोल देती।
उसने एकदम गुस्से से मेरी ओर देखा और बोली- क्या???
मैंने आपको फोन किया। और आप मेरे पीछे क्यो पड़े हैं। जाइये आप अपना कार्य कीजिए।
मैंने कहा- देखिए माफ कीजिए लेकिन मेरे एक शंका का समाधान कीजिए।
उसने कहा- आप मुझे माफ कीजिए और यहां से जाइए प्लीज🙏🏻
मैं तुरंत अपने क्लास में गया क्योंकि मुझे लगा अब सारा समाधान वही होगा। जैसे क्लास से पहुंचा वह बोली- कैंटीन से आने में इतनी देर। मेरा जवाब सुनने से पहले वह फिर फोन पर अपनी उंगलियां घुमाते हुए बड़बड़ाई ये अभी तक समोसा क्यों नहीं लाई???
मुझे स्थिति धीरे-धीरे समझ में आने लगी थी। वहीं बेंच पर बैठ एक कविता लिखें।
दो बहनें,
मम्मी के गहने।
पापा ने भी
हँस-हँस पहने।
रंग-रूप में
नहीं विभेद।
स्वप्न सुहाने
रही हैं देख।
नाक एक-सी
एक-सी आँखें।
उड़ने को
व्याकुल हैं पंखे।
क़द में बड़ा
न कोई छोटा।
दिखता कोई
न तिलभर मोटा।
मन में इनके
क्या है जाने?
नपी-तुली
दोनों मुस्कानें।
इनको ही
अब चलो सुनाएँ।
कविता झटपट
एक बनाएँ।
जब उन दोनों बहनों के सामने वह कविता प्रस्तुत किये तो मुझे उनकी हंसी और ताली एक साथ मिली।
2017 में जब मेरा मास्टर ऑफ फाइन आर्ट कोर्स पूरा हो गया तब मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर के अधीन स्वयं वित्त पोषित कॉलेज साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग ओनामा में सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) के पद पर ज्वाइन किये। तो यहां भी लगभग हर बैच में कोई ना कोई जुड़वा जरूर मिल जाते हैं या आप यूं कह सकते हैं कि मेरी जिंदगी से बहुत से जुड़वा एवं हमशक्ल लोग जुड़े। इसी परिदृश्य में फिर से लगभग 05 साल बाद इस कविता को थोड़ा सा Modified किये है। आप भी पढ़े।
Well-done dear 🙏🙏🙏🙏❤️🙏🙏🙏🥰
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंReally Crazy thought hai dear 🙏🙏🙏🥰❤️🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंWaah bahut hi achchi... New story .... But who was she??
जवाब देंहटाएंYou Already Know WHO were THe TWIN SISTERS in my class??
हटाएंWahh bahut Badhiya Bhaiya
जवाब देंहटाएंWow Bishwajeet bhai main jyada kuchh Nahin bol paunga but itna jarur bolunga aapke liye yani "Bishwajeet bhai #I love you always " ❤️😍
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