ई लेख के शुरु करे से पहिले हम रउआ सब के दशों अंगूरी जोड़ के गोड़🙏 लागs तानीs हमार नाम विश्वजीत कुमार हंs औरी हमार घर बिहार के भोजपुरी भाषी क्षेत्र सिवान जिला में बाs हमनी के भोजपुरी भाषी क्षेत्र में बचपन से ही देखत आवत बानी सनs पिड़िया के। एकरा के रउआ सभें भोजपुरी चित्रकला भी कह सकs तानी। गांव में बड़ा ही मौलिक अंदाज में बहिन लोग भाई के सुख, समृद्धि खातिर मनावेला। बड़ा अद्भुत प्रक्रिया बा पिड़िया के, लगभग 16 दिन तक लगातार पांच गो गोबर के पिड़िया बना के दिवाल पर लगावे के परंपरा रहल बा। भाई के संख्या के आधार पर पिड़िया के गीनती होखेला यानी ओ बहिन के जेतना भाई लोग बारे उतना पीड़िया के निर्माण कईल जाला, बड़ा ही मौलिक अंदाज में बहिन लोग गीत गा-गा के सभें प्रेम से समुह में मनावे लालो।
16वें दिन जहियां पूरा होखेला वो दिन सोरहीआ पिड़िया लगावल जाला ओकरा बाद गीत संगीत से माहौल कलात्मक हो जाला।
गीत के माध्यम से बहन अपन भाई से कहेली-
"भुखल बाड़ी कवन हो बहिनी,
पिड़िया हो बरतियां।
ले आवs अपन हो भईआ,
गुड़हा हो मिठाईयां।।
तब भाई आपन असमर्थता जतावत कहेलन:-
काहे के भुखलु हो बहीनी,
पिड़िया हो बरतियां।
काहावा से लईबो हो बहीनी,
गुड़हा हो मिठाईयां।।
16वें दिन तक रोज गोबर के पिड़िया दिवाल पर चिपकावे के क्रम में, गायन गीत बड़ा खुशहाल माहौल बना देवेला। सोचें वाला बात ई बा की गांव में मुहल्ला-भर से दुई-चार गो बहिनलोग एक जगह इकट्ठा होके बड़ा शुरीली आवाज में समुह गवनई करेला। तब ई गीत सुनके जियरा एकदम से हरिहरियां जाला। पिड़िया पर अलग-अलग जगह के अलग अलग विचार बा। कुल मिलाके देखल जाव त इ बरत भाई के लंबा आयु, सुख-समृद्धि खातिर औरी भाई के द्बारा बहिन के रक्षा के रूप में ही मनावल जाला।
ऐहजा हमरा एगो गीत याद आवत बा जौन बहीन के द्वारा भाई के लंबा आयु खातिर हमेशा गावल जाला।
कवन भईआ चलेले अहेरीआ,
कवन बहिनी देली आशिश हो ना।
जिअसs ओ मोरे भईआs
जिअs भईआ लाखो बरिश हो ना।।
एह पुरा प्रक्रिया पर गौर से समिक्षा कईल जाव त मालूम चलेला बड़ा ही मौलिक अंदाज में चित्र बनावें के ई परंपरा लंबा समय से चलल आ रहल बा। आठ-दश महीना पहिले से ही लोग सेम के पतई के कुट-पिस के दिवाल पर कई लेअर में एगो खाश आकृति में लेप लगावेला ताकी चित्र बनावें के ख़ातिर धरातल तैयार हो सके। ओकरा बाद चावल के बारिक पिसाई कर के रख लेला ताकि उजर लाईन खातिर रंग तैयार हो सकें। यानी रउआ सब समझ सकs तानी की ई परब के तैयारी कितना दिन पहले से भोजपुरी इलाका में शुरू हो जाला। बड़ा ही कलात्मक माहौल गीत संगीत से बन पड़ेला, बांस के बारिक कुची यानी की बुरुश चित्रण खातिर तैयारी होला। जवन महिला कलाकार होली जेकर कुची पर बेहतर पकड़ होला शुरू हो जाली चित्र सृजन के प्रक्रिआ में।
भोजपुर के पिड़िया या रउआ सभें भोजपुरी चित्र भी कह सकsतानी अभी भी संघर्षरत बा, आपन मौलिक पहचान बनावे में। बाकीर लइकियन के सहयोग से तैयार ई चित्र भोजपुरी भाषी क्षेत्र के जीवन शैली के बड़ा जिवंत अंदाज में समाज के सामने प्रस्तुति होखेला या दिखेला। पीड़िया के एगो औरी मान्यता ई बा जवन घर मे एकरा के बनावल जाला ओ घर में केहू भी मर्दाना यानी पुरुष के प्रवेश रोक दिहल जाला। एकरा पीछे ई मान्यता बा कि यदि केहु मर्दाना यदि ई चित्र के देख ली तs पीड़िया सफल ना होई।
कलात्मक औरी लोक संस्कृति के दृष्टि से देखल जाव तs पिड़या लेखन के प्रक्रिया एकदम मौलिक व कलात्मक होखेला ।हरिहर धरातल पर उजर रंग पुरा चित्र के जिवंत बना देवेला। हमर ई कोशिश बा की पिड़िआ के कलात्मकता पर बात रखी, भोजपुरिया समाज में जवन लोगीन के जिवन शैली बा ओकरा के पिडीया में स्थान दिहल जाला। जैसे:- ढेंकुल, जांत, ओखली, सिलवट-लोढ़ा, पालकी, चिड़िया, आदमी, डलिआ, मउनी, आदि। भोजपुरी भाषी क्षेत्र के जीवन शैली से जुड़ल लगभग सभी चिझन के पिड़िया में शामिल कइल जाला।
पिड़िआ लेखन आज भी भोजपुरी भाषी क्षेत्र के लगभग हर गावन में आपन मौलिक अंदाज में मौजूद बा। महिला लोग खासकर के बहिनी के सबसे खुशनुमा बरत ई होला। अलग-अलग जगह पर गांव-गांव में थोड़ा-थोड़ा सा भिन्नता के साथ आपन कलात्मक उपस्थित बरकरार रखले बा। आज जरूरत बा एह पिड़ीआ के पहचान दिलावे के। लोक-कला में भोजपुरी भाषी क्षेत्र खातिर एह से मौलिक कलात्मक शैली अभी दोसर कौनो नईखे। पिड़ीया के बेहतर भविष्य, पिड़िआ बनावे वाली महिला के लोक-कलाकार के रूप में समाज के सामने लावल बहुत जरूरी बा काहे से की पिड़िया लेखन में कलात्मकता के साथ सौंदर्य के अद्भुत सम्मिश्रण बा जवन पहचान खातिर संघर्ष कर रहल बा। रउआ यदि ई लेख पढ़त बानी औरी भोजपुरी चित्रकला के आगे बढ़ावे में हमनी समस्त भोजपुरी भाषी क्षेत्र के सहयोग करें के चाहत बानी आपन विचार कमेंट में जरूर बताई।
धन्यवाद🙏
साभार:- रौशन राय
Edit & Modified:- विश्वजीत कुमार
बहुत सुंदर परयास बा। भोजपुरी कला के बारे में बहुत कम लोग जानत बा।
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