शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

हिंदी उपन्यास एवं कहानी के प्रतिक-पुरुष स्वर्गीय प्रेमचंद को जन्म-दिवस पर सादर प्रणाम🙏

             मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के मशहूर लेखक रहे हैं। इनका जन्म 1880 में वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था और 1936 में उनका देहांत हो गया। आज मुझे याद आ रहे हैं मेरे हिंदी के शिक्षक जिन्होंने मुझे इतना क़ाबिल बनाया कि मैं हिंदी साहित्य पढ़ एवं समझ संकु और थोड़ी बहुत अपनी मन की बातें लिख सकूं। आज का मेरा यह लेख उन सभी हिंदी अध्यापकों के लिए जिन्होंने मुझे भाषा को पढ़ाया और उस विधि में मुझे एक अच्छा इंसान बनाया।

         लोगो के द्वारा कहा जाता हैं की पुरुषों में संवेदनशीलता की कमी होती है, लेकिन क्या मुंशी प्रेमचंद जी को पढ़ने के बाद भी यह कहा जा सकता है? शायद ...निश्चित रूप से नहीं... उनकी प्रत्येक कहानी के प्रत्येक पात्र में इस तथ्य को स्वतः ही समझा एवं देखा जा सकता है। 

             गरीबी और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा भारत धनपत राय के भीतर भी कौतूहल मचा रहा होगा। उक्त बातें उनकी कहानियों के माध्यम से समझा एवं देखा जा सकता है। 

             आर्य समाज के मार्ग पर चलने वाले धनपत राय यानी प्रेमचंद ने 15 वर्ष की आयु में हुए अपने असफल विवाह के बाद विधवा विवाह के पक्षधर होने के नाते बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया। 

          कलान्तर में इनके द्वारा गोरखपुर को अपना कार्य क्षेत्र चुना गया एवं शिक्षण कार्य को बेहतरीन तरीके से निभाते हुए लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी महती भूमिका निभाई। जिस कारण समय-समय पर इनके उपर कई इल्ज़ाम भी लगे। फलस्वरूप नाम बदलकर लिखने का फैसला लेना पड़ा। इस तरह धनपत राय जो उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे अपने मित्र मुंशी नारायण लाल निगम के कहने से अब "प्रेमचंद" के नाम से लिखने लगे। प्रेमचंद से "मुंशी प्रेमचंद" बनना भी बहुत रोचक रहा। कुछ लोगों का कहना है कि शिक्षक होने के कारण सम्मान सूचक शब्द के रूप में उनको मुंशीजी कहा जाता था। परन्तु प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी के सह संपादन में निकलने वाले पत्र "हंस" में कन्हैयालाल मुंशी जी का नाम "मुंशी" व प्रेमचंद एक साथ लिखा रहता था। जिस कारण लोगों के ज़ुबान पर "मुंशी प्रेमचंद" चढ़ने लगा और कालांतर में धनपत राय उर्फ नवाब राय उर्फ मुंशी प्रेमचंद के नाम से विख्यात हुए।

            समय-समय पर अनेक विद्वानों और मनीषियों ने उन्हें अनेक संज्ञाओं से नवाजा। जैसे- कहानी सम्राट, उपन्यास सम्राट, कलम का सिपाही (बेटे, अमृत राय द्वारा लिखी जीवनी) इत्यादि।

          08 अक्टूबर 1936 को जीवन की अनेक उतार-चढ़ाव, मान सम्मान के साथ कई बार अपयश और आलोचनाओं को सहते झेलते मुंशी प्रेमचंद इस नश्वर संसार को छोड़ गए परन्तु लेखन जगत में सदैव के लिए अमर हो गए जो आज भी अपने आप में एक शोध का विषय हैं।

             इस विशेष दिन पर आप प्रेमचंद को पढ़ें, उनके धनपत राय से 'प्रेमचंद' हो जाने की कहानी को जानें, अभावों के बीच उनके संघर्ष को सोचें तथा अपने समय से जूझते उनके क्रान्तिकारी तेवर को समझें। यही उनके प्रेमियों की तरफ से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। समाज के हर हिस्से में पड़े उपेक्षित लोहे को अपने साहित्यिक स्पर्श से कंचन बना देने वाले तथा कौड़ियों से ले कर बेशक़ीमती मोतियों तक को एक धागे में पिरोकर साहित्य की सर्वप्रिय जयमाला बनाने वाले हिंदी कहानी के प्रतीक-पुरुष मुंशी प्रेमचंद जी को उनके जन्मदिवस पर सादर नमन। ❤️🙏🏻

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