गुरुवार, 8 जुलाई 2021

अस्मिता के पहलू (Aspects of Asmita) हिन्दी एवं English Notes D.El.Ed.2nd Year B.S.E.B.Patna.

 

अस्मिता के पहलू (Aspects of Asmita) 

  • वैयक्तिक अस्मिता (Personal Identity) 

             कोई भी साहित्यकार अपने समाज का प्रतिनिधि होता है क्योंकि वह सामाजिक प्राणी होता है एवं वह समाज से प्रभावित होकर काव्य-सृजन करता है। अत: उसका यह दायित्व बनता है कि वह अपने समाज और देश की नाड़ी (Pulse) को परखे, उसकी धड़कन को समझे तथा फिर काव्य-सृजन करे। व्यक्ति अपनी वैयक्तिक अस्मिता के साथ-साथ सामाजिक अस्मिता भी कायम करना चाहता है। सामाजिक पहचान को किसी समूह के सदस्य के रूप में व्यतीत किया जाता है। जैसे- मैं भारतीय हूँ, मैं बिहार से आता हूँ।

          मैक्स वेबर जिसने सर्वप्रथम यह धारणा दी थी कि आधुनिकता की जड़ में तार्किकता है, ने भी आधुनिकता के मूल में वैयक्तिक भावनाओं को देखा था। व्यक्ति ही सारे सामाजिक मानदण्डों का निर्माण करता है। वेबर के अनुसार, “आधुनिकता व्यक्ति और समाज में सदा से चले आ रहे स्वरूप को मिलने वाली स्पष्ट स्वीकृति है। आधुनिक अस्मिता अतीत में की गई अस्मिता की संरचनाओं की शृंखला में मात्र अगली कड़ी नहीं है, लेकिन यह इन संरचनाओं के मूल में उपस्थित कारणों पर से पर्दा उठाने की प्रक्रिया है।" 

              आधुनिक समाज व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की कुछ गारण्टी करता है कि इस समाज में जीने वाला आधुनिक व्यक्ति अपने आपको पारम्परिक समाज में जीने वाले लोगों से अलग समझता है। आधुनिक व्यक्ति, जो सामाजिक भूमिकाओं और संस्थाओं की पारम्परिक संरचनाओं से अपने आपको मुक्त कर चुका है, एक 'नग्न व्यक्तित्व' (Nude Personality) का तरह होता है जो "संस्थागत भूमिकाओं से स्वतन्त्र है।" पारम्परिक बंधनों से मुक्त विशुद्ध वैयक्तिक अस्मिता 'यानी कि नग्न व्यक्तित्व का यह विचार, आधुनिकता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है। पीटर बर्जर इस विशेषता की व्याख्या दो धारणाओं की सहायता से करते हैं- पहली धारणा है प्रतिष्ठा की, जो सामाजिक या संस्थागत प्रतिष्ठा से जुड़ी है और दूसरी धारणा है सम्मान की, जो व्यक्तिगत अस्मिता की समानता पर टिकी है। 

         आधुनिक व्यक्ति के आत्मकेन्द्रित बुद्धिवादी परिचय ने व्यक्तिगत व सामाजिक अस्मिता को नए तरीके से परिभाषित किया है, अब सामाजिक मूल्यों से लोगों को जुड़ने का तरीका बदल गया है। इस तरह हर आधुनिक व्यक्ति किसी तरह की सामाजिक सत्ता के बोझ से मुक्त हो गया है। वह हर प्रकार के धार्मिक, पारिवारिक या पितृप्रधान सामाजिक प्रभुत्व से मुक्त हो चुका है। एडवांस होने का अर्थ व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति हेतु होने वाली भौतिक व व्यावहारिक उन्नति के आधार पर समझा जाता है। 

          सम्पूर्ण वैयक्तिक अस्मिता और सामाजिक सामूहिक अस्मिता में विभाजन होना स्वाभाविक है। वह भौतिक सम्पूर्णता भी पूरी तरह बिखर जाती है, जिसमें दूसरे व्यक्ति की चेतना की अंतहीन स्वतन्त्रता में कोई भी व्यक्ति अपने को पूरी तरह एकाकार कर सकता है। क्या समाज के पूर्ण या खण्डित संरचना के बिखराव की स्थिति किसी मानकीय संरचना जैसे धर्म का स्थान, इस प्रकार ग्रहण कर सकती है कि यह खण्डित संरचना जटिल समाज की सम्पूर्णता का प्रतिनिधित्व कर सके एवं समाज के सदस्य मानकीय चेतना में समाहित हो सकें। अद्योसांस्कृतिक स्तर पर पाश्चात्य समाजों में अर्द्धधार्मिक चेतना के विकास के कुछ प्रयास किये गए हैं जैसे- भगवान रजनीश, जैन-बौद्ध या महर्षि महेश का अनुभवातीत ध्यान इत्यादि। 

             संगठनात्मक कार्यों के अलावा भू -भाग के आधार पर व्यक्ति अपने आपको अन्य लोगों से अलग विशिष्ट व्यक्ति के रूप में समझता है और व्यक्ति में 'वैयक्तिक अस्मिता' की अनुभूति विकसित होती है। एक विशिष्ट भू-भाग पर अधिकार होने के कारण व्यक्ति आत्मसम्मान का भी अनुभव करता है। भूभागीयता जिन महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करती है उसकी व्याख्या पर्यावरण व्यवहार के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या कर वाले सिद्धान्तों के आधार पर की जा सकती है। अतएव भूभागीय संकेत जिस सीमा तक वैयक्तिक और मूल्यवान होता है, उस सीमा तक लोगों द्वारा उसका सम्मान किया जाता है। 

         नारी या पुरुष किसी की भी वैयक्तिक (Personal) अस्मिता उसके आत्मसम्मान का मूल्य है। हमें अपनी वैयक्तिक अस्मिता हेतु संघर्ष करना पड़ता है। पश्चिम के साम्राज्यवादी देशों के अंधानुकरण में हम वहाँ के सामाजिक विकृतियों को गले लगाते जा रहे हैं जिससे सांस्कृतिक अस्मिता खतरे में है जिससे हमारी वैयक्तिक अस्मिता भी संघर्ष की स्थिति में है। 

 सामाजिक अस्मिता (Social Identity) 

                  "मैं कौन हूँ?" यह एक अहम् प्रश्न सदा से प्रत्येक व्यक्ति के मन में उठता है। साधारणतः इस प्रश्न का जवाब बड़ा ही आसान होता है एवं व्यक्ति अपनी पहचान को कुछ शारीरिक या मानसिक विशेषताओं या गुणों के रूप में देखता है। जैसे- वह कहता है - मैं एक परिश्रमी और खुशमिजाज व्यक्ति हूँ। मेरा नाम क, ख, ग ... इत्यादि है। इस प्रकार, व्यक्ति "मैं कौन हूँ ?" का उत्तर अपने व्यक्तिगत नाम (क, ख, ग, ...) के रूप में व्यक्त करता है। परन्तु , व्यक्ति अपनी पहचान को सामाजिक संदर्भो में भी बतलाता है। उदाहरण हेतु, मैं यह भारतीय हूँ, मैं बिहार का रहने वाला हूँ, मैं पुरुष या स्त्री हूँ अथवा मैं किसी संगठन में किसी ऊँचे ओहदे पर काम करने वाला व्यक्ति हूँ इत्यादि। सामाजिक संदर्भो में व्यक्ति अपने को कभी एक अनोखे व्यक्ति के रूप में, कभी किसी समूह या संगठन के सदस्य के रूप में प्रत्यक्षीकरण करता है। दोनों 'स्व' की अभिव्यक्ति के वैध रूप हैं। अपने को एक अनोखे व्यक्ति के रूप में और पुन: किसी समूह के सदस्य के रूप में चित्रण करना दोनों व्यक्ति की अस्मिता के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। कोई व्यक्ति किस सीमा तक वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर अपनी अस्मिता या पहचान को परिभाषित करता है, यह परिवर्तनीय है क्योंकि यह समय-समय पर बदलता है। किन्तु, इतनी बात निश्चित है कि 'सामाजिक अस्मिता' आत्मधारणा या गौरव के लिए बहुत अधिक महत्त्व रखती है। इससे व्यक्ति को अपने समूह में सुप्रतिष्ठित होने का अनुभव प्राप्त होता है। साथ ही, इससे एकात्मकता का भाव पनपता है। उदाहरण के लिए, जब इण्डिया किसी दूसरे राष्ट्र के साथ क्रिकेट मैच में विजयी घोषित होता है तो हमें अपार खुशी होती है तथा जब हारता है तो अपार दुःख का अनुभव होता है। ऐसा इसलिए होता है कि हम भारतीय समाज के एक नागरिक के रूप में अपनी पहचान कायम करते हैं उसे जागृत होता है कि सामाजिक अस्मिता हमारे स्वयं के धारणा का ही एक पक्ष या पहलू है जिसका प्रमुख आधार समूह विशेष की सदस्यता होती है।


Asmita aspect (Personal Identity) is representative of your society because it is a social creature and she creates poetry by affecting the society. Therefore, it is a responsibility to understand the pulse of his society and the country, and then understand his beating and then poetry. The person wants to establish social asmita as well as social identity. Social identity is spent as a member of a group. Like - I am Indian, I am from Bihar. Max Weber, who had first given the impression that there is a logic in the root of modernity, also saw individual feelings at the core of modernity. The person builds all social norms. According to Weber, "Modernity is a clear acceptance to the person and the format of the society. Modern Asmita is not the only sequel in the series of asmita's structures, but it is the process of taking curtain from the reasons present in these structures. "Modern society guarantees some of the personal independence that living in this society. In this way every modern person has been free from the burden of any social power. He has been free from every kind of religious, family or patriarchy social dominance. Being Advance is understood on the basis of physical and practical advancement to meet individual wishes. It is natural to have a split in the entire personal identity and social collective identity. The physical entertainment is completely scattered, in which any person in endless independence of the other person's consciousness can fully monoton himself. Whether the scatter of the full or superb structure of the society can place the place of religion such as a standard structure, such as the composition can represent the entirety of complex society and members of the society can be contained in standard consciousness. At the update, some efforts have been made to the development of semi-hymn consciousness in western societies, such as God Rajneesh, Jain-Buddhist or Maharishi Mahesh's hospitality. In addition to organizational work, the person understands itself as a different person from other people and develops the feeling of 'personal identity' in the person. Due to the right to a specific land, the person also experiences self esteem. The interpretation of the important objectives that meet the objectives can be done on the basis of the principles that interpret the interpersonal relationships of environmental behavior. Therefore, the land departmental signal is honored by people to the extent that is personal and valuable. Woman or male personal (personal) Asmita is the value of his self esteem. We have to struggle for our personal identity. In the blind of the imperialist countries of the West, we are hugging the social maladies there, which is in the cultural identity in danger, which is also in the event of a struggle in our personal identity. Social Identity "Who Am I?" This is an ego question ever raise every person's mind. Generally the answer to this question is very easy and the person sees its identity as some physical or mental characteristics or properties. Like - he says - I am a working and swinging person. My name is, b, c ... etc. Thus, the person "who am I?" The answer expresses as your personal name (A, B, C, ...). But, the person also tells his identity in social references. For example, I am an Indian, I am a resident of Bihar, I am a man or woman or I am a person working on a higher position in any organization. In social references, the person ever makes himself as a unique person, sometimes as a member of a group or organization. Both are legitimate form of expression of 'self'. Impotation as a unique person and again as a group member, it is important for both the person's identity. Which limit defines its identity or identity at the individual and social level, it is convertible because it changes from time to time. But, it is certain that 'social asmita' has a lot of importance for self-esteem or glory. This gives the person experience to be good in his group. At the same time, it gives a sense of integrity. For example, when India is declared victorious in the cricket match with another nation, then we are very happy and when it loses, it is experienced by immense grief. This is because we establish our identity as a citizen of Indian society, it is awakened that social identity is a side or aspect of our own perception, which is a major membership subscription to the group.

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