उपन्यास (Novel)
उपन्यास ‘उप’ और ‘न्यास’ से मिलकर बना है। ‘उप’ का अर्थ समीप और ‘न्यास’ का अर्थ है रचना।
उपन्यास शब्द का अर्थ होता है :- 'सामने या समीप रखी रचना'। उपन्यासकार एक काल्पनिक सृष्टि को ही तो पाठक के सामने रखने का कार्य करता है। जीवन के विविध पक्षों की व्याख्या हमें उपन्यास में मिल जायेगी।
बाबू गुलाबराय के अनुसार, "उपन्यास जीवन का चित्र है, प्रतिबिम्ब नहीं। जीवन का प्रतिबिम्ब कभी भी पूरा नहीं हो सकता है क्योंकि मानव-जीवन इतना पेचीदा है कि उसका प्रतिबिम्ब सामने रखना प्रायः असम्भव है।
उपन्यासकार जीवन के निकट से निकट आता है किन्तु उसे भी जीवन में बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है किन्तु जहाँ वह छोड़ता है वहाँ अपनी ओर से जोड़ता भी है।
इस लेख में हम जानेंगे उपन्यास के बारे में विभिन्न विद्वानों की दृष्टि में इसका स्वरूप किस प्रकार है???
(1) श्यामसुन्दर दास के अनुसार, "उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है।"
(2) प्रेमचन्द के शब्दों में, "मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।"
(3) हडसन के अनुसार, "उपन्यास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त और सभी बातें असत्य होती हैं। इतिहास के नामों और तिथियों के अतिरिक्त कोई बात सत्य नहीं होती।"
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि उपन्यास कार्य-कारण श्रृंखला (causal chain) में बँधा हुआ वह गद्य कथानक है, जिसमें अपेक्षाकृत अधिक विस्तार तथा पेचीदगी के साथ वास्तविक जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से सम्बन्धित वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं द्वारा मानव-जीवन के सत्य का रसात्मक रूप से उद्घाटन किया जाता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषणात्मक उपन्यास की निम्नांकित विशेषताएँ हैं :-
(1) यह अपेक्षाकृत विस्तृत रचना होती है।
(2) इसमें जीवन के विविध पक्षों का समावेश होता है।
(3) इसमें वास्तविकता तथा कल्पना का कलात्मक मिश्रण होता है।
(4) कार्य-कारण श्रृंखला का निर्वाह किया जाता है।
(5) मानव-जीवन के सत्य का उद्घाटन होता है।
(6) जीवन की समग्रता का चित्र इस प्रकार उपस्थित किया जाता है कि पाठक उसकी अन्तर्वस्तु तथा पात्रों से अपना तादात्मीकरण (Identification) कर सके।
उपन्यास के तत्त्व
उपन्यास के निम्नांकित तत्त्व हैं जो प्राय: सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं
(1) कथावस्तु,
(2) पात्र और चरित्र-चित्रण,
(3) सम्वाद या कथोपकथन (Dialogue or Narration),
(4) देश-काल या वातावरण,
(5) भाषा शैली एवं
(6) उद्देश्य।
Novel
According to Babu Gulabrai, "Novel is a picture of life, not a reflection. The image of life can never be complete because human life is so complex that it is almost impossible to keep its image in front."
The novelist comes nearer to life, but he also has to leave a lot in life, but where he leaves, he also adds from his side.
In this article, we will know about the novel, what is its form in the view of different scholars???
(1) According to Shyamsundar Das, "Novel is a fictional story of the real life of man."
(2) In the words of Premchand, "I consider the novel to be a picture of the human character. The basic element of the novel is to throw light on the human character and reveal its secrets."
(3) According to Hudson, "In a novel except names and dates, everything else is false. Nothing is true except the names and dates of history."
Thus it becomes clear that the novel is that prose story tied in a causal chain, in which with relatively greater detail and complexity, the real or imaginary events related to the persons representing real life are connected with human life. Truth is opened rosily.
The following are the characteristics of the analytical novel of the above definitions:-
(1) It is a relatively elaborate structure.
(2) It includes various aspects of life.
(3) There is an artistic mixture of reality and imagination.
(4) The causal chain is maintained.
(5) The truth of human life is revealed.
(6) The picture of the totality of life is presented in such a way that the reader can identify himself with its content and characters.
Elements of the novel
The following are the elements of the novel which are accepted by almost all scholars.
(1) the plot,
(2) characters and characterization,
(3) Dialogue or Narration,
(4) country-time or environment,
(5) Language style and
(6) Purpose.
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