ये अंतिम मिलन है हमारा तुम्हारा,
विधाता का शायद यही है इशारा..
मेरे भाग्य में है नहीं तुझको पाना,
जुदा होकर जीने से बेहतर मर जाना।
वो सुन के मेरी बात रोने लगी थी,
कमल से कपोल भिगोने लगी थी।
यही तक था अपना साथ मेरे यारा,
ये अंतिम मिलन है हमारा तुम्हारा....
देखकर उसे गुमशुम हो गया मैं,
उन झील सी आंखों में फिर खो गया मैं।
जब अंतिम मिलन में उसने मुझको छुआ था,
लगा झटका न जाने क्या हुआ था।
नहीं कोई दुनिया में और तुम सा प्यारा,
ये अंतिम मिलन है हमारा तुम्हारा....
जब धीरे से उसने मेरा हाथ पकड़ा,
न छोड़ेगी फिर यूँ हथेलियों में जकड़ा।
ये किस्मत को शायद नहीं था गवारा,
वो भी थी बेचारी और मैं था बेचारा।
जो चाहो सजा दो हूँ मुजरिम तुम्हारा,
ये अंतिम मिलन है हमारा तू .. तुम्हारा...
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