सोचा है आज बैठ के ये इत्मीनान से।
हम तुमको भुला देंगे यार जेहन-ओ-जान से ।।
बैठा है दिल उदास कब से जिद में तुम्हारी ।
लौटा है कब वो तीर जो गया कमान से ।।
हर सम्त बहार-ए-खुशी हो तेरी मुन्तशिर ।
गुजरे तेरी हयात आन - बान - शान से ।।
जब से वो जान - ए - मन बनी है जान हमारी ।
धो बैठे हम तो हाथ तब से अपनी जान से ।।
'रघुवंशी' बिना ब्याहा तन है, मन है विवाहित ।
माना है दुल्हन तुमको जिगर ने ईमान से ।।
साभार :- सोशल मीडिया
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