शनिवार, 31 दिसंबर 2022

वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।



 वीर तुम अड़े रहो, 

रजाई में पड़े रहो।


चाय का मजा मिले,

सिकी ब्रेड भी मिले।


मुंह कभी दिखे नहीं, 

रजाई, खिसके नहीं।


मां की लताड़ हो, 

या बाप की दहाड़ हो।


तुम निडर डटो वहीं,

रजाई से उठो नहीं।


वीर तुम अड़े रहो, 

रजाई में पड़े रहो।।


मुंह गरजते रहे, 

डंडे बरसते रहे।


वो भी जो, भड़क उठे,

बेलन ही खड़क उठे।


प्रात: हो कि रात हो, 

संग कोई, न साथ हो।


रजाई में घुसे रहो, 

तुम वही डटे रहो।


ये रजाई लिए हुए,

एक प्रण किए हुए।


वीर तुम अड़े रहो, 

रजाई में पड़े रहो।।


अपने राम के लिए,

यूँ अराम के लिए।


कक्ष शीत से भरे, 

ख्वाब गीत से भरे।


यत्न कर निकाल लो,

ये काल,तुम निकाल लो।


तीक्ष्ण है, ये ठंड है, 

यह बड़ी प्रचंड है।


वीर तुम अड़े रहो, 

रजाई में पड़े रहो।।


हवा भी तेज आ रही, 

धूप को डरा रही।


तू धूप की न आस कर,

रजाई में निवास कर।


वीर तुम अड़े रहो, 

रजाई में पड़े रहो।।



रजाईधारी सिंह 'दिनभर'✍️😂😂😂


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