मेरी पाक कला (Cooking) के गुण (Skill) से सभी वाफिफ़ हैं। कोरोना की बंदी में बमुश्किल से घर पहुंचा घर पहुंचते ही मेरा भतीजा चैतन्य जो अब ढाई साल का हो चुका है। एकदम से सज-धज कर आया। मैंने भाभी से पूछा कि इस कोरोना बंदी में कहां जाना है? तब वह बोली की- जाना कहीं नहीं है। बस ये जिद्द कर रहा था कि यही कपड़ा पहनना हैं तो पहना दिए। मुझे भी लगा कि जब तैयार हो ही गया है तो एक Portrait (व्यक्ति-चित्र) भी बना देते हैं। सामने खड़ा करके जैसे ही पोर्ट्रेट बनाना शुरू किए वैसे ही जैसे छोटे बच्चे की जो अभिक्रिया होती है तुरंत वह वहां से भागने की जुगत लगाने लगा। बड़ी मुश्किल से 10 मिनट रोक कर रखे और एक तस्वीर बनाई जो कि आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं।
रात में भाभी ने कहा कि आज तो कुकिंग आपको ही करनी है। बहुत दिनों से आपके हाथ से बनी सब्जी नहीं खाई। मैंने कहा आज नहीं। फिर देखा कि सभी की यही इच्छा थी तो लगा कि एक कलाकार को अपनी कला का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहना चाहिए चाहे वह दृश्य कला हो, छायांकन कला हो या फिर पाक-कला हो। किचन में प्रवेश करते ही मैंने देखा की सभी सब्जियां आपस में बातें कर रही हैं। यह वार्तालाप सिर्फ एक कलाकार ही सुन सकता है आम लोग नहीं। लेकिन मैं एक माध्यम बनकर जैसे महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र का वर्णन सुनाया था वैसे ही मैं आपको अपने किचन का वर्णन सुना रहा हूँ।
मैंने देखा कि हरी मिर्ची कोने में पड़ी सुबक-सुबक कर रो रही थी जब मैंने उसे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि मुझे यहां आए हुए आज 03 दिन हो गए हैं। लाते ही मुझे ऐसी जगह रख दिये कि मेरा ठंड से बदन जमने लगा। मेरे कई साथी तो ऐसे पिघल गए जैसे आइसक्रीम धूप में पिघलती हो। इतना ही नहीं मेरी इस दुर्दशा पर जैसे ही किसी की नजर पड़ी वहां से हटा कर बाहर खुला छोड़ दिया गया। एक तो ठंड ऊपर से गर्मी। अभी मेरी हालात ऐसे हो गई है कि जैसे कि पेड़ से गिरने के बाद आम के टिकोलो की होती है।
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