शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

"मेरी किचन की यात्रा"

        मेरी पाक कला (Cooking) के गुण (Skill) से सभी वाफिफ़ हैं। कोरोना की बंदी में बमुश्किल से घर पहुंचा घर पहुंचते ही मेरा भतीजा चैतन्य जो अब ढाई साल  का हो चुका है। एकदम से सज-धज कर आया। मैंने भाभी से पूछा कि इस कोरोना बंदी में कहां जाना है? तब वह बोली की- जाना कहीं नहीं है। बस ये जिद्द कर रहा था कि यही कपड़ा पहनना हैं तो पहना दिए। मुझे भी लगा कि जब तैयार हो ही गया है तो एक Portrait (व्यक्ति-चित्र) भी बना देते हैं। सामने खड़ा करके जैसे ही पोर्ट्रेट बनाना शुरू किए वैसे ही जैसे छोटे बच्चे की जो अभिक्रिया होती है तुरंत वह वहां से भागने की जुगत लगाने लगा। बड़ी मुश्किल से 10 मिनट रोक कर रखे और एक तस्वीर बनाई जो कि आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं।


          रात में भाभी ने कहा कि आज तो कुकिंग आपको ही करनी है। बहुत दिनों से आपके हाथ से बनी  सब्जी नहीं खाई। मैंने कहा आज नहीं। फिर देखा कि सभी की यही इच्छा थी तो लगा कि एक कलाकार को अपनी कला का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहना चाहिए चाहे वह दृश्य कला हो, छायांकन कला हो या फिर पाक-कला हो। किचन में प्रवेश करते ही मैंने देखा की सभी सब्जियां आपस में बातें कर रही हैं। यह वार्तालाप सिर्फ एक कलाकार ही सुन सकता है आम लोग नहीं। लेकिन मैं एक माध्यम बनकर जैसे महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र का वर्णन सुनाया था वैसे ही मैं आपको अपने किचन का वर्णन सुना रहा हूँ।

         मैंने देखा कि हरी मिर्ची कोने में पड़ी सुबक-सुबक कर रो रही थी जब मैंने उसे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि मुझे यहां आए हुए आज 03 दिन हो गए हैं। लाते ही मुझे ऐसी जगह रख दिये कि मेरा ठंड से बदन जमने लगा। मेरे कई साथी तो ऐसे पिघल गए जैसे आइसक्रीम धूप में पिघलती हो। इतना ही नहीं मेरी इस दुर्दशा पर जैसे ही किसी की नजर पड़ी वहां से हटा कर बाहर खुला छोड़ दिया गया। एक तो ठंड ऊपर से गर्मी। अभी मेरी हालात ऐसे हो गई है कि जैसे कि पेड़ से गिरने के बाद आम के टिकोलो की होती है।


           मैं उसकी दु:ख पर प्रतिक्रिया देने ही वाला था कि उसके बगल में बैठी धनिया की पत्तियों ने बोलना शुरू कर दिया। हमें बाजार से लाया तो जाता है लेकिन वह प्रतिष्ठा नहीं मिलती जो कि हरी मिर्च को मिलती है। कई बार तो मुझे बहुत प्यार से काट कर प्लेट में रखा जाता है और मैं दिन भर प्लेट में ही रह जाती हूं। शाम में जैसे ही मेरा रंगत कम होता है सीधा किचन से बाहर कर दी जाती हूँ। चूंकि किचन में सामग्रीया ज्यादा थी और सभी की अपने शिकायतें और परेशानीया। मैं आराम से बैठ कर उनकी परेशानियां को सुनने लगा। जैसे संजय धृतराष्ट्र को सांत्वना एवं तसल्ली दे रहे थे मैं भी वही कार्य संपन्न करने लगा। मुझे लगा की पूरे किचन में यदि कोई सबसे ज्यादा खुश था तो वह था आलू। मैं उसे उठाकर देखने लगा कि इसकी खुशी की वजह क्या है? लगातार दश (10) मिनट देखने के बाद भी जब वजह समझ में नहीं आया  तब उसे छोड़कर बाकी सब्जियों की ओर मुखातिब हुआ। फिर अचानक से ध्यान आया की मैं तो किचन में अपनी कला का प्रदर्शन करने आया था लेकिन यहां तो मैं बैठ कर सब्जियों से वार्तालाप कर रहा हूं। फिर फटाफट आलू को उठाकर उसके छिलके को उतारने लगा। उसी दरम्यान एक आलु हाथ से छूटकर नीचे जमीन पर गिर पड़ा। जब मैंने उसे पुनः उठाया तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसे लगी कि बस क्या कहें। मोबाइल तो पास में था ही तुरंत तस्वीर लेनी चाही लेकिन वह नाराज हो गया। लेकिन तब तक तस्वीर तो कैद हो चुकी थी। मैंने उसे दिलासा दिलाया कि तुम्हारी कहानी मैं पूरी दुनिया को बताऊंगा और त्याग की इस तस्वीर के माध्यम से भी दिखाऊंगा।

तब उसके चेहरे पर हंसी आई और उसने हंसते हुए अपनी कुर्बानी दे दी। ताकि आज की सब्जी अच्छे से बन सके।





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