राजा रवि वर्मा (1848-1906)
राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल के किलीमान्नूर नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव त्रिवेन्द्रम् (केरल ) से 24 मील दूर उत्तर दिशा में है। जिस राज परिवार मे रवि वर्मा का जन्म हुआ, उसका त्रावणकोर रियासत से रक्त का संबंध था। राजा रवि वर्मा के चित्रकार चाचा श्री राज वर्मा "व्यक्ति - चित्र" (पोट्रेट) के सफल कलाकार थे। वे 14 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा को त्रिवेन्द्रम् के राजमहल में ले गये, जहों रहकर वे चित्रकारी करने और सीखने लगे। 1868 में त्रिवेन्द्रम् के महाराजा ने एक अंग्रेज चित्रकार "थियो डोर जेनसन" को अपने यहाँ आमत्रित किया। वह चित्रकार अपने साथ तैल रंग (ऑयल- कलर) लाया था। राजा रवि वर्मा ने भी तैल रगों में ही काम करना शुरू किया। राजा रवि वर्मा का विवाह 1868 ईo में त्रावनकोर की रानी लक्ष्मीबाई की बहन से सम्पन्न हुआ। राजा रवि वर्मा को पहला पुरस्कार मद्रास के अग्रेज गवर्नर द्वारा आयोजित चित्रप्रदर्शनी में 'स्वर्ण पदक' के रूप में मिला। यही कलाकृति उसी वर्ष विएना में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भेजी गयी जहाँ उसे एक पदक तथा योग्यता प्रमाण-पत्र प्राप्त हुआ। मद्रास में आयोजित 1874 की कला प्रदर्शनी में दूसरी बार तथा 1876 में उन्हें तीसरी बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ल्ड-कोलंबियन कमीशन के तत्वावधान में शिकागो की एक अतर्राष्ट्रीयप्रदर्शनी में उनको डिप्लोमा के अलावा दो पदक भी प्रदान किये गये। उन्होंने ब्रिटिश प्रशासको (मद्रास के गवर्नर ड्यूक ऑफ बकिंघम, लार्ड ऐम्टहिल ) तथा राज परिवार के कई सदस्यो के व्यक्ति चित्र बनाये। 1880 ई . में पूना में आयोजित प्रदर्शनी में उनका काम सराहा गया।
राजा रवि वर्मा के चित्रों के अंकन का तरीका बहुत हद तक विदेशी था- अंग्रेजो जैसा। परन्तु चित्र के विषय भारतीय रहे। उनके बनाये देवी-देवता, शकुन्तता-दुष्यन्त, राम-कृष्ण आदि के चित्र कुछ विदेशी से लगते हैं। एक ओर रवि वर्मा को प्रर्याप्त ख्याति मिली है, तो दूसरी ओर समीक्षकों द्वारा उलाहना। हैवेल ने उन पर "अत्यन्त कल्पनाप्रवण भारतीय काव्य तथा रूपक-कथाओं को चित्रित करते समय काव्यात्मक गुणों के पीड़ाजनक अभाव होने" का आरोप लगाया है। सुप्रसिद्ध कला आलोचक आनन्द कुमार स्वामी ने लिखा है "राजा रवि वर्मा के चित्रों में कल्पना का अभाव है। फिर भी रवि वर्मा के चित्रों का अपना महत्व है।"
राजा रवि वर्मा ने बड़े आकार के चित्र कैनवास पर तैल रंगों से बनाये है। उन्होंने किसी न किसी पौराणिक कथा से सम्बन्धित चित्र नाटक के दृश्य की भाँती ऐसे बनाया है, जिनमें पात्र रंग-विरंगे कपड़े पहन कर बैठे हो, खड़े हो अथवा चल-दौड़ रहे हो। उनके सत्यवादी हरिश्चन्द्र, शकुन्तला, श्रीकष्ण और बलराम, रावण और जटायु जैसे चित्र जब भी हम देखते है तो इनकी कथाएँ हमें याद आने लगती है। राजा रवि वर्मा के चित्रों के रंग गहरे चटकीले और चमकदार है। राजा रवि वर्मा की मृत्यु 02 अक्टूबर 1906 को किलीमान्नूर में हुई।
राजा रवि वर्मा के चित्र श्री चित्रालय गैलरी (त्रिवेन्द्रम् ), बडौदा के लक्ष्मी विलास महल, मैसूर के राजमहल, उदयपुर के राजमहल सालारजंग म्यूजियम (हैदराबाद) तथा राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (जयपुर हाउस, नई दिल्ली) में है।
सागर का गर्व-मर्दन करते हुए राम (चित्रशाला, मैसूर)
इस कृति में राम लंका पर आक्रमण करने के विचार से सागर पार करना चाहते थे, परन्तु पुल बनाने का प्रयत्न उमड़ते सागर के कारण विफल हो रहा था। सेतु बनाने के प्रयास में सहयोग न करने पर राम सागर के देवता वरुण के प्रति कुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त करते है। वरुण देवता तथा उनके अनुचर क्रुद्ध राम को शांत करने के लिए आगे की ओर लपकते हुए चित्रित है।
श्री कृष्ण और बलराम (चित्रशाला मैसूर)
चित्र में श्रीकृष्ण ने दुरात्मा राजा कंस का वध अपने भाई बलराम की सहायता से किया तथा अपने माता-पिता को बंदीगृह से मुक्त कराया।
महिला फल लिये हुये (राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली)
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