31-03-2021 होली के 2 दिन बाद......,
रंगो की खुमारी एवं बिहार में बंद के बावजूद भी आसानी से मिलने वाले पेय का नशा कम हो चला था। सड़कों पर बसें दिखने लगी थी। मन में विचार आया कि शेखपुरा की सैर पर निकलते हैं क्योंकि महाविद्यालय में आज भी छुट्टी थी। 10:00 बजे महाविद्यालय से निकले, जब तक मुख्य सड़क पर पहुंचते तब-तक दो टेंपो निकल गई। ऐसा प्रतीत हुआ कि बस वह मेरा ही इंतजार कर रही हो। जैसे सड़क पर पहुंचे ऐसा लगा कि लॉकडाउन को फिर से लगा दिया गया हो। मार्च की धूप भी सता रही थी 01 मिनट का इंतजार 10 मिनट के समान लग रहा था 30 मिनट इंतजार के बाद एक बस आयी, उसी से बरबीघा गए उसके उपरांत शेखपुरा जाने वाली बस में बैठ गए। मेरे बगल की सीट पर जो सज्जन बैठे थे वह पुलिस विभाग में थे। मुझे पता ऐसे चला कि थोड़ी देर बाद उसी बस में एक और व्यक्ति चढ़े जो कि किसी और थाने में थे चूंकि उन्हें सीट तो नहीं मिला तब वह मेरे पास आकर खड़े हो गए एवं मेरे बगल की सीट पर बैठे सज्जन से बात करने लगे। जैसे:- चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं शायद वैसे ही पुलिस वाले भी हो क्योंकि उनकी बातों से ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा था, उनके द्वारा की गई वार्तालाप कुछ इस प्रकार है-
पहला पुलिसवाला:- हम तो अपना ट्रांसफर करवा कर फंस गए, वही सही था।
दूसरा पुलिसवाला:- क्यों क्या हुआ? वहां तो आमदनी बहुत अच्छा है। हर कोई वहां जाना चाहता है।
पहला पुलिस वाला:- वही तो समस्या है। आमदनी तो है लेकिन बड़े अधिकारियों की नजर रहती है। हम जैसे छोटे पद वालों को कुछ बचता ही नहीं है। पहले जहां थे वहां जो आता था थाने तक ही सीमित रहता था। ज्यादा फायदा था वहां।
.......तभी उन दोनों की बातों को बीच में ही काटते हुए बस कंडक्टर आया और उन दोनों से पैसे की मांग की। कभी किसी को जल्दी पैसा नहीं देने एवं अधिकतर लेने वाले हाथ यहां देने की बात पर थोड़ा सा असहज हो गए। 60 की जगह जब उसने 50 दिया तो बस कंडक्टर ऐसे चीखा जैसे कि कोई बड़े अधिकारी थाने से तय कीमत से कम राशि पहुंचने पर चीखते हैं। यहां वह बस कंडक्टर किसी अधिकारी से कम नहीं था। कुछ लोगों ने बीच-बचाव करके मामला शांत कराया और उन दोनों में से एक ने फिर ₹5 ही दिया। मन-मसोसकर के कंडक्टर अब चुप रहा क्योंकि तब तक उसे ज्ञात हो चुका था कि यह पुलिस वाले हैं।
मैंने टिकट के लिए ₹50 दिए तब कंडक्टर बोला- दो लोग हैं? क्योंकि ऐसे ही गतिविधि वो पहले देख चुका था। मैंने कहा:- नहीं हम Single है। तब उसने मुझे एक ₹20 का नोट और एक कागज का टुकड़ा थमाया। जिस पर 30 लिखकर घेरा गया था। मैंने उससे कहा- इस टिकट पर तो बस का कोई नाम लिखा ही नहीं गया है। तब उसने मुझे दूसरा टिकट दिया। थोड़ी देर उपरांत पता चला कि यहां भी भ्रष्टाचार व्याप्त है।
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