शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

अमृता शेरगिल (1913-1941)

 



        अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी, 1913 ई. को बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। वह हंगेरियाई माँ और भारतीय पिता की संतान थी। जन्म से लगातार 08 वर्षों तक वह यूरोप में ही रही। 1921 के युद्ध के बाद भारत लौटकर शिमला में रहने लगी। शिमला में चित्रकारी में उनकी रूचि देखकर उनके माता-पिता ने उन्हें पेरिस के एक कला-स्कूल में भेज दिया। उस समय अमृता शेरगिल की अवस्था 16 वर्ष की थी। 1929 से पेरिस के एकोल नेस्योनाल दे बोज आर्स में कला का अध्ययन करती रही। 
         भारतीय रंगों की प्रचुरता के साथ उन्हें अपनी निजी शैली खोजने की आवश्यक प्रेरणा प्राप्त हुई। उनकी कला वर्तमान का नहीं, भविष्य का सृजन कर रही थी। भारतीय चित्रकला में बंगाल शैली की धूम मची थी। ठीक उसी समय अमृता शेरगिल ने अपनी यूरोपीय कला शैली से हटकर क्लासिकी मूल्यों की खोज की। अमृता के सशक्त और चुनौती पूर्ण चित्रों की अवहेलना कर ठीक उसके विपरीत अन्य कलाकारों के कार्य की प्रंशसा की गयी। अमृता की मौन छवियों में गरीब भारतीय की मार्मिक वेदना, कुरूपता में अद्भुत रूप, सहिष्णुता के साथ आत्म-समर्पण के भाव, सुन्दर दुबले-पतले साँवले रंग वाले शरीर, उनकी कृतियाँ उनके गहन अध्ययन की अभिव्यक्ति है। उनकी आकृतियों में आंतरिक शांति भारतीय स्वभावानुसार फूट पड़ी है। सरल मन के विचार तथा चित्र निर्माण की सरलता दोनों बेजोड़ है। 
          1938 में वे अपने कजिन डॉक्टर एगान से विवाह करने के लिए हंगरी चली गयी, 1939 में पुनः भारत वापस आ गयी और अपने पति के साथ सरैया में रहने लगी। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक ग्रामीण विषयों पर पेटिंग बनाती रही।
         उनके चित्रों में एक से अधिक आकृतियों को समूह में रखना, तिर्यक् आँखों, उदासी भरा परिवेश, उभरी हुई भौहे और चौड़े पैर की विशेषताएँ गोग्वें के चित्रों का प्रभाव है। 
          अमृता शेरगिल के चित्रों के रंग चटकीले और तपे हुए हैं। उन्हें बहुत अधिक काम करने का समय नहीं मिला। जब वह केवल 28 वर्ष की थीं, तो लाहौर में 5 दिसम्बर 1941 को उनकी मृत्यु हो गयी। जितने चित्र उन्होने बनाये थे, आज वे बहुमूल्य हैं। उनके चित्र राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथिका (जयपुर हाउस) नई दिल्ली में एक अलग कमरे में प्रदर्शित है। यह कमरा वातानुकूलित है, जिससे कि उनके चित्रों के रंग-रूप खराब न होने पाये। उनके कुछ चित्रों के रंगो में दरारे-सी पड़ गयी थी, जिन्हें ठीक कराया गया है। उनके सर्वोत्कृष्ट चित्र-युवतियों, भारतीय लड़कियों, पर्वतीय महिलाएँ, दक्षिण भारतीय ग्रामवासी बाजार जाते हुए, गणेश पूजा, नीलवसना, पहाड़ी-स्त्रियों, भिखमगे, पिता, ऊँट, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

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