हल्दी नहीं है!!! मिलावट है।
आज के लेख का शीर्षक थोड़ा अलग है और क्यों है? इसके लिए तो आपको पूरा लेख पढ़ना होगा। तो चलिए अपने व्यस्त समय में से 05 मिनट मेरे लेख को पढ़ने में दीजिए और अपना कीमती सुझाव जरूर प्रदान कीजिएगा।
मेरे बहुत सारे शौकों और कार्यों में एक कुकिंग (Cooking) भी है। ऐसे तो कम लेकिन लॉकडाउन एवं कोरोना की बंदी में यह कार्य कुछ ज्यादा शुरू हो जाता है। आज सुबह अपनी पसंदीदा आलू-दम (सब्जी) चावल, रोटी, इत्यादि बनाए थे। सब्जी तो बहुत स्वादिष्ट बना था लेकिन हल्दी की उपस्थिति थोड़ी कम थी। जिस वजह से उसका रंग उतना नहीं आया था जितना आना चाहिए। जिंदगी का भी कुछ यही नियम है। जब तक जीवन में रंग नहीं आते तब तक वह कितना भी स्वादिष्ट क्यों ना हो दूसरों के लिए रंगहीन ही होती है।
आज दिनभर ऑनलाइन कक्षाओं में व्यस्त रहें और शाम में नोट्स बनाने में। क्योंकि मेरा मानना है कि ऑनलाइन क्लास के बाद प्रशिक्षुओं को नोट्स भी प्रदान करना चाहिए। यही सब कार्य में समय का पता ही नहीं चला और शाम के 06:00 बज गए। अचानक से ध्यान आया कि हल्दी तो है नहीं! उसे लेने के लिए निकले। सोंचे की यहां से लगभग 02 किलोमीटर दूर सामस चलते हैं। वहां हरी सब्जी के साथ हल्दी भी मिल जाएगा।
सामस विष्णु धाम के आगे सामस हनुमान मंदिर है। वहां पर प्रत्येक दिन की अपेक्षा कुछ ज्यादा भीड़ थी। हर कोई अपने आप में व्यस्त था। मालूम चला कि आज रामनवमी के उपलक्ष्य में वहां पूजा का आयोजन किया गया है। हनुमान मंदिर के ठीक सामने ही दो-तीन किराने की दुकान है जहां अक्सर हरी सब्जियां मिल जाती है, मैंने कई बार लाया भी है। लेकिन आज वहां वीरानी थी बस हरी मिर्च ही मिल पाई। पूरी सब्जियों की इज्जत तो वो अकेले बचा ली। नहीं तो मुझे यहां लिखना पड़ता कोई सब्जी नहीं मिला। खैर मैं जिस उद्देश्य से गया था उसको लेने के लिए दुकानदार की तरफ मुड़ा, वह आवश्यकता से अधिक व्यस्त था। इसकी वजह सामने तेज आवाज में बज रहा गीत एवं पूजा सामग्री के लिए इधर उधर दौड़ रहे लोग थे। मैंने वहां देखा कि सभी व्यक्ति खुलेआम कोरोना को चुनौती दे रहे थे और मुझे मास्क में देखकर उन्हें अचरज भी हो रहा था। तभी अचानक एक व्यक्ति मेरे पास दौड़ते हुए आया और बोला कि
अरे पंडित जी!!! आप इतनी देर कर दिए, जल्दी चलिए।
वहां पर सिर्फ मैं ही एक अनजान चेहरा था और वह भी मास्क में। मैंने उसकी गलतफहमी दूर की और पुनः दुकानदार से मुखातिब हुआ और बोला कि भैया हल्दी दे दीजिए। पहले तो उसने सुनकर अनसुना कर दिया। जब मैंने पुनः पूछा तो 03 बार वह मुझे घुरा और धीरे से लेकिन गुस्से में बोला-
नहीं है।
मैं इसका रहस्य समझ नहीं पाया और उसके दुकान से बाहर आ गया। चूंकि वहां एक दो दुकानें और थी उन सभी ने भी कुछ ऐसा ही बर्ताव किया मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार एक साथ सभी दुकानों से हल्दी कैसे खत्म हो गया। मैं वहां से लौट आया सामस से आने के उपरांत रास्ते में तीन-चार दुकानें और मिली सभी का उत्तर एक समान था-
हल्दी नहीं है।
मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि मामला क्या है?
मैंने भी निश्चय कर लिया था कि चाहे जो भी हो आज इस रहस्य को जानकर एवं हल्दी लेकर ही जाना है। यह सोच कर मैं कुतुबचक के गांव में प्रवेश कर गया। उस समय शाम के 07:00 बज चुके थे और बिहार सरकार के आदेशानुसार सभी दुकानें बंद होने लगी थी। यहां भी मुझे निराशा ही हाथ लगी। लेकिन कहां गया है ना कि जब आप निश्चय कर लेते हैं तो वह पूरा भी होता है। कुछ वही मेरे साथ भी हुआ कुतुबचक में एक व्यक्ति मिल गए जो कि मुझे व्यक्तिगत तौर पर जानते थे। वह बोले:-
आरे सर!!! आप इधर इतनी रात को???
हम बोले- हां कुछ लेना था, सभी दुकानें बंद हो रखी है।
उन्होंने कहा- मेरा किराना का दुकान है, चलिए मैं आपको देता हूं। उनकी दुकान पर पहुंचकर जैसे ही मैंने कहां-
हल्दी चाहिए।
वह बोले- नहीं है।
चूंकि मैं उनकी दुकान पर पहली बार गया था और खाली नही आना चाहता था इसीलिए मेरे सामने जो-जो वस्तुएं देखी जिसका मैं प्रयोग करता हूं, वह सब ले लिया। पैसे देते समय मैंने उनसे कहा-
आज लगता है बिना हल्दी का ही सब्जी बनाना पड़ेगा।
तब उसने कहा- सर आप सुबह आइयेगा, हम दे देंगे।
मैंने उससे कहा आपके पास तो है नहीं और आपके आसपास भी किसी दुकान के पास नहीं है। मैं पिछले 01 घंटे से तलाश कर रहा हूं तो फिर आप सुबह में कैसे मुझे दे देंगे।
तब वह थोड़ा गंभीर होते हुए बोले- सच में आपके पास हल्दी नहीं है!!! यानी इस समय लायक भी नहीं।
मुझे हंसी और गुस्सा दोनों आया और बोले तो क्या हम आपको पागल (Crazy) दिख रहे हैं जो 01 घंटे से ढूंढ रहे हैं।
तब वह नजरें बचाते हुए धीरे से बोले- कितना चाहिए?
मुझे लगा की शायद वह अपने घर या कहीं से ला कर मुझे दे।
मैंने कहा कि फिलहाल 250 ग्राम ला दीजिए।
मुझे इतना कहना था कि वो हल्दी का डब्बा निकाले जिसे वह छुपा कर रखे थे। जिसमें लगभग तीन या चार किलो हल्दी रखा हुआ था। उसमें से 250 ग्राम मुझे प्रदान किये।
मैं उन्हें आश्चर्य से देखने लगा।
मुझे इस तरह आश्चर्य में देखकर वह बोले कि सर शाम में इधर कोई आपको हल्दी बोलिएगा तो नहीं देगा। यह हमारी परंपरा के खिलाफ है। वे लगातार बोले जा रहे थे और मैं सुन रहा था। वे आगे बोले यहां ऐसी मान्यता है कि हल्दी लक्ष्मी का रूप है और शाम में या रात में ऐसे किसी को लक्ष्मी नहीं देनी चाहिए।
मैंने उनकी बातों को बीच में काटते हुए कहां-
इसके बदले में तो मैं आपको पैसा तो दूंगा ही वह भी तो लक्ष्मी है। लक्ष्मी से लक्ष्मी का आदान-प्रदान तो हो ही सकता है।
इसका जवाब उनके पास नहीं था उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा-
यदि आपको रात में हल्दी चाहिए तो "मिलावट" बोलिएगा तब कोई दुकानदार देगा।
अचानक से मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आ गई। रात में एक बार मेरी दादी ने कहां था जाओ दुकान और "दाली में का रंग लाओ" मैंने कहां-
यह क्या होता है? तब उसने कहा था।-
रात में हल्दी बोलोगे तो वह नहीं देगा वह तो बचपन की बातें थी अब यह परंपरा मेरे यहां समाप्त हो गई है लेकिन यहां इसे पुनः देखकर एवं महसूस कर अच्छा लगा।
आज भी इस "मिलावट" एवं "दाली में का रंग" का अर्थ एवं रहस्य जानने को हम प्रयाशरत हैं।
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