अन्त:करण और विपणन (Conscience and Marketing)
एक कलाकार होने के नाते मैं यह अच्छी तरह समझता हूं कि, एक कलाकार के लिए अक्सर यह दुविधा रहती है कि उसे अपने अंतःकरण और विपणन में किसे सर्वोच्च रखें? किसे वह ज्यादा महत्व दे ? अंतःकरण उसे विपणन पर हावी नहीं होने देता और विपणन उसे अंतःकरण पर। इसी उहापोह में कलाकार की कला यात्रा चलती रहती है। वह अपने अंतःकरण के अनुसार कलाकृतियों का निर्माण करता रहता है और दुनिया उसे विपणन की दृष्टि से देखती रहती है।
कुछ दिनों पूर्व की यह घटना है जिसे आज मैं आप सभी के बीच साझा कर रहा हूं। CBSE के 12th Class के बच्चे का Portfolio Assessment Fine Art का तैयार करना था उसे कहीं से मेरा नंबर मिल गया। और वह मेरे एक प्रशिक्षु के साथ मुझसे मिलने आ गया। मिलने का मतलब मुझे पहले यह लगा कि उसे थोड़ी बहुत मदद चाहिए क्योंकि वह अपने साथ रंग और कागज भी लाया था। साथ ही साथ वह प्रश्न-पत्र भी जिसे किसी कला शिक्षक ने तैयार किया था। लेकिन मुझे बात में ज्ञात हुआ कि वह अपना कार्य मुझसे संपन्न कराना चाहता है। मैंने तत्काल उसे मना कर दिया क्योंकि यह मेरे अंतःकरण के खिलाफ था शायद उसे इसकी जानकारी थी इसीलिए तो वह विकल्प भी अपने साथ लाया था, मेरे एक प्रशिक्षु के रूप में। उसने मुझसे अनुरोध किया कि इसे चित्रकला में रुचि नहीं है। करोना लॉकडाउन की वजह से पढ़ाई नहीं हुई है। अभी परीक्षा आने वाला है। यदि आप मदद नहीं करेंगे तो इसकी परीक्षा बेहतर नहीं होगी।
मैंने उससे कहा- मैं मदद तो कर ही रहा हूं लेकिन इसकी इच्छा है कि.....
उसने मेरी बात को बीच में काटते हुए बोला- हम समझ सकते हैं, सर। लेकिन क्या करें? आप ही कुछ कीजिए और उसने कागज और रंग को मेरे पास ही छोड़ कर चला गया। रात में उसका मैसेज आता है कि सर जो चार्ज होगा बता दीजिए लेकिन यह कार्य संपन्न कर दीजिए। मुझे तुरंत समझ में आ गया कि यह कलाकार के अंतःकरण को नहीं समझ रहे हैं तुरंत विपणन पर आ गए हैं। खैर, मैंने उसे कुछ रिप्लाई नहीं दिया और उसके कार्य को संपन्न करने लगा। जैसे ही स्केच पूर्ण किये, ध्यान आया की।
इसे इस तरह से बनाना है कि जब कला शिक्षक बच्चे से पूछे कि इसे तुमने बनाया है???
तो बच्चा पूरी ईमानदारी से कह सके- जी सर!!! मैंने बनाया है।
लेकिन दुविधा यह हो गई कि फिर विपणन का क्या??? उसे तो हर चीज बेहतर चाहिए। क्योंकि कोई वस्तु का जब आप मूल्य लगाते हो तो आप उसे बेहतर से बेहतर रूप में प्राप्त करना चाहते हो।
ऐसी कई सारी घटनाएं मेरे साथ पटना में हो चुकी है। जब हम कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय पैसे की जरूरत भी रहती थी। इसलिए ऐसे कार्य करते रहते थे। कभी किसी की तस्वीर बनानी हो या छायांकन करना हो सभी कलाकार अपने अपने कार्यों के अनुसार मूल्य तय किए थे।
खैर वह तो पटना की बातें थी। आज मैंने विपणन को छोड़कर अपने अंतःकरण को चुना और ऐसी कलाकृति बनाई जिससे लगे कि एक बच्चे ने ही बनाया है। मैं इसमें कितना सफल हुआ हूं आप नीचे दिए गए वीडियो में देख सकते हैं।
चित्र पूर्ण करने के उपरांत उसे मैसेज भेज दिया कि कल आ करके वह अपना चित्र ले जाए। और हां विपणन की कोई आवश्यकता नहीं है और ना ही किसी चार्ज की।
अगले दिन जब वह चित्र लेने आया तो उसके चेहरे पर खुशी थी। उसने कहा कि सर एक सप्ताह से परेशान थे। बहुत प्रयत्न किए लेकिन नहीं बन पा रहा था, तब आपका नंबर मिला। हम आगे आप से ड्रॉइंग बनाना सीखेंगे। फिलहाल मेरी बोर्ड की परीक्षा है इसलिए आपसे बनवाना पड़ा।
मैंने उसे चित्रों को प्रदान कर दिया। उसके जाने के उपरांत देखा कि उसने जाते-जाते एक डब्बा छोड़ गया था। जब मैंने उसे फोन किया तो उसने बोला की- सर वह आपके लिए है। जब मैंने उसे खोलकर देखा तो उसमें कुछ मिठाईयां थी।
इसे उसका स्नेह कहे या विपणन मैं समझ नहीं पाया।
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