मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

दृश्य कला संबंधी कला अनुभव D.El.Ed.1st Year. F-11 इकाई-2. B.S.E.B. Patna, Bihar.


दृश्य कला संबंधी कला अनुभव

      विभिन्न रूपप्रद या दृश्य कलाओं का प्रयोग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल एवं बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करने में किया जाता है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का सम्बन्ध किसी भी विषय से हो, यदि उसमें कला प्रयोग नहीं किया जाता तो उस विषय को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया कभी भी प्रभावी नहीं हो सकती, प्रत्येक विषय में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी कला का प्रयोग आवश्यक होता है। अत: शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में दृश्य कला की भूमिका को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता हैं-
(1) उच्च अधिगम स्तर (High Learning Level)- शिक्षण में विभिन कलाओं के प्रयोग से छात्रों का अधिगम स्तर भी उच्च होता है। जैसे किसी प्रकरण (Topic) को सामान्य रूप से समझाया जाता है तो छात्रों का अधिगम स्तर सामान्य होता है, अब उसी प्रकरण को नाट्य कला या कठपुतली नृत्य के माध्यम से समझाया जाता है तो छात्र उस प्रकरण को सरलता से आत्मसात कर लेते हैं तथा उनका अधिगम स्तर उच्च हो जाता है क्योंकि विभिन्न प्रकार की कलाओं में छात्रों की स्वाभाविक रूप से रुचि होती है।  
(2) रुचिपूर्ण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Interested Teaching Learning Process)- रुचिपूर्ण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए आवश्यक है कि उसमे विभिन्न कलाओं का प्रयोग किया जाए। जब छात्रों को विभिन प्रकार के चित्रों एवं मॉडलों के माध्यम से किसी भी प्रकरण का ज्ञान प्रदान किया जाता है तो इसमें एक ओर उनका स्वस्थ मनोरंजन होता है तथा दूसरी ओर उनको विषय का पूर्ण ज्ञान भी सम्भव होता है। नाट्यकला एवं शिल्पकला का प्रयोग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के प्रति छात्रों में विशेष रुचि उत्पन्न करता है। 
(3) छात्रों की क्रियाशीलता (Activeness of Students)- शिक्षण में विभिन्न कलाओं में प्रयोग से छात्रों में क्रियाशीलता का प्रादुर्भाव, उत्थान (The emergence) होता है। इस प्रादुर्भाव के कारण छात्र शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्रियाशील होते हैं जैसे यदि शिक्षक किसी चित्र या प्रतिरूप का प्रयोग कक्षा शिक्षण में करता है तो छात्र द्वारा उस चित्र एवं प्रतिरूप को बनाने का प्रयास किया जाता है। अनेक अवसरों पर कलाओं के प्रयोग में छात्रों का सहारा लिया जाता है। जैसे- नाट्य कला, संगीत कला, चित्रकला, शिल्पकला, आदि। इस प्रकार प्रत्येक स्थिती में शिक्षण में कलाओं का प्रयोग छात्रों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
 (4) प्रयोग/प्रदर्शन में महत्त्व (Importance of Demonstration)- प्रयोग प्रदर्शन में भी सामान्य रूप से कलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विभिन्न प्रकार के विज्ञान सम्बन्धी प्रयोगों को चित्रों तथा मॉडलों द्वारा प्रदर्शन सरल एवं व्यापक रूप में किया जाता है। इससे छात्र उस प्रयोग की अवधारणा का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तथा आवश्यकता के अनुसार प्रयोग प्रदर्शन के समय उस ज्ञान का उपयोग करते हैं।
(5) हस्त कौशलों का विकास (Development of Hand Skills)- सामान्य रूप से यह देखा जाता हैं की छात्रो में हस्त कौशलों का विकास कला शिक्षा के माध्यम से ही होता है। जब विभिन्न कलाओं का प्रयोग प्रत्येक विषय के शिक्षण में किया जाएगा तो हस्त कौशलों का विकास स्वाभाविक रूप से छात्रों में सम्भव हो सकेगा। इसके लिए यह आवश्यक है कि शिक्षण में मूर्तिकला एवं हस्तशिल्प का प्रयोग किया जाए।
(6) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुरूप (According to psychological principles)- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार उस शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं उत्तम माना जाता है जिसमें छात्रों से पूर्ण सहभागिता एवं रुचि हो। विभिन्न प्रकार की कलाओं के माध्यम से छात्रों को विषयवस्तु के प्रति आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है तथा कुछ कलाएँ ऐसी भी होती हैं जिनमें छाओं की स्वाभाविक रूप से रुचि होती है। यदि उनका प्रयोग किया जाता है तो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी बन जाता है, जैसे संगीत एवं नाटक दोनों में छात्रों को विशेष रूप होती है। इस प्रकार विभिन्न कलाओं का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयोग मनोवैज्ञानिक सिद्वातो के अनुरूप है।
(7) प्रभावी प्रस्तुतीकरण (Effective Presentation)- प्रभावि प्रस्तुतीकरण के लिए भी विभिन्न कलाओं का शिक्षण में प्रयोग आवश्यक है क्योंकि कलाओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कठिन विषयों को सरल रूप में प्रस्तुत किया जाता है इसके अंतर्गत सौरमंडल में ग्रहों को एक मॉडल के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है तथा बैटरी का प्रयोग करके ग्रहों को परिभ्रमण करते हुए दिखाया जा सकता है इससे छात्रों को सौरमंडल के ग्रहों एवं उनसे संबंधित सभी गतिविधियों का ज्ञान सरलता रूप में प्राप्त हो सकता है।
(8) शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग एवं निर्माण (Use and Construction of Teaching Learning Materials)- सामान्यतः जो शिक्षक विभिन्न कलाओं का ज्ञान रखता है उसके द्वारा ही विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्रियों का निर्माण संभव है दूसरे शब्दों में, कलाओं से युक्त शिक्षक द्वारा ही शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग की क्षमता का प्रदर्शन किया जा सकता है अतः शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग एवं निर्माण की कलात्मक योग्यता के माध्यम से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है।
(9) सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity)- कला का प्रयोग जब विभिन्न विषयो के शिक्षण में किया जाता है तो इससे बालको मैं सृजनात्मक क्षमता का विकास होता है। बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है और वह अनुकरण करता है। इस अनुकरण की प्रक्रिया में वह शिक्षक द्वारा प्रदर्शित नमूनों एवं चार्टों को स्वयं बनाने का प्रयास करता है। इस प्रकार बालक में सृजन की प्रवृत्ति विकसित होती है तथा वह प्राथमिक स्तर से ही विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के चित्र एवं प्रतिरूप बनाने में दक्षता प्राप्त कर लेता है। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि कला वह महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसका प्रयोग प्रत्येक विषय के शिक्षण में अनिवार्य रूप से किया जाता है। यदि कोई शिक्षक विभिन्न कलाओं के सहयोग के अभाव में शिक्षण प्रारम्भ करता है तो न तो उसकी शिक्षण प्रक्रिया प्रभावी रूप में सम्पन्न होती है और न ही छात्रों का अधिगम स्तर उच्च होता है। इस प्रकार प्रत्येक विषय के शिक्षक को कलाओं का ज्ञान होना चाहिए एवं उसको विभिन्न विषयों के शिक्षण में कला के प्रयोग की दक्षता प्राप्त होनी चाहिए।
 

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