रविवार, 11 अप्रैल 2021

शेखपुरा की सैर, भाग-०२.

शेखपुरा की सैर भाग-१ में मैंने आपको होली के बाद के दिन एवं श्यामा सरोवर पार्क के बारे में बताया था। अब आगे भाग-२ में पढ़िए मटोखर डह के बारे में.....

        श्यामा सरोवर पार्क के ठीक सामने ही पुष्करणी तालाब मंदिर था उसका भी 02 मिनट का वीडियो रिकॉर्ड कर लिये। जिसे  आप देख सकते हैं।



       पुष्करणी तालाब मंदिर के बाद मटोखर डह जाने का निर्णय हुआ। श्यामा सरोवर पार्क के सामने से ही ऑटो मिल गई जो कि मुझे चांदनी चौक पहुंचा दी। उसके उपरांत वही से मटोखर के लिए भी ऑटो खड़ी थी। जिसमें पहले से 05 लोग बैठे थे। वहां का नियम यह था कि जब तक ऑटो पूरा भरता नहीं तब तक खुलता नहीं। संयोग अच्छा रहा कि 10 मिनट में ही ऑटो भर गई और वह मुझे 20 मिनट में मटोखर डह के पास छोड़ दिया।
        मटोखर डह एक हजरत ख्वाजा इसहाक मगरबी रहमतुल्ला अलैह का दरगाह है जो कि पहाड़ी को समतल करके बनाया गया था। दीवारों के अंदर तक कहीं-कहीं पहाड़ को काटने के दृश्य  दिख रहे थे। कोरोना का ख़ौफ़ कहे या कुछ और वहां पर हमें एक भी व्यक्ति नहीं दिखे। खैर!!! मेरे लिए यह अच्छा रहा कि VLog बहुत अच्छे से रिकॉर्ड हो गया। कुछ देर के उपरांत कुछ लोग आये उनसे बातचीत से मालूम चला कि शुक्रवार को यहां भीड़ रहती है। उस दरगाह का जो सबसे प्यारा नजारा था वह यह था कि उसके बगल की पहाड़ी पर बैठने से सामने बड़ा सा झीलनुमा पोखर दिखाई देता था। जिसमें लबालब  पानी भरा हुआ था वहां से वह दृश्य बहुत मनोरम लग रहा था। मैंने कुछ फोटो वहां पहाड़ी पर बैठ कर खिंचवाये जो कि आप सभी के बीच साझा कर रहे हैं।





        मटोखर डह के पास ही मटोखर रेलवे स्टेशन था सोचे कि वहां भी घूम लेते हैं क्योंकि प्यास भी लग रही थी। सोचे कि पानी भी वहां मिल जाएगा और एक VLog भी हो जाएगा लेकिन जैसे स्टेशन पर पहुंचे पता चला कि यहां तो और भी ज्यादा बिरानी है। ट्रेन एवं यात्री को तो छोड़ दीजिए कोई रेलकर्मी भी नहीं था, इस बिरानी की वजह बताने के लिए। हमने वहां का वीडियो रिकॉर्ड किए और गूगल के माध्यम से उस स्टेशन के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास किए लेकिन पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई। प्यास अपने चरम सीमा पर पहुंच चुका था क्योंकि पानी ना तो दरगाह पर मिला और ना ही रेलवे स्टेशन पर। दरगाह पर पानी की व्यवस्था की गई है लेकिन उस दिन मोटर खराब हो गया था। अब सोचे कि शेखपुरा जा कर के ही कुछ व्यवस्था होगी। मेरे साथ पचना के भरत जी भी थे उन्होंने कहा कि यही पर मेरी एक दीदी का घर है। बहुत दिनों से हम उनके यहां नहीं गए हैं चलो वहीं चलते हैं। मैंने भी मना नहीं किया और उनके साथ हो लिया। वहां पर उन्होंने गर्मी एवं हम लोगों की हालत देख कर फटाफट दही का शरबत बनाकर लाये। चूंकि दही तो मैं खाता नहीं हूं इसलिए उनसे कहना पड़ा कि मैं इसे नहीं पी सकता क्योंकि मैं दही नहीं खाता हूं। उसके उपरांत वह नींबू पानी लेकर आए। 
          पहले तो भरत जी अपने एवं अपने परिवार के बारे में बातें करते रहे उसके उपरांत यह सिलसिला मेरे ऊपर आ गया। भरत जी ने मेरा परिचय कुछ यूं दिया- यह सिवान जिले के हैं और इनके यहां प्रत्येक घर से आपको एक इंजीनियर मिल जाएंगे और यह वर्तमान में प्रोफेसर हैं। भरत जी का कहना भी सही ही था मेरे गांव में लगभग हर घर से एक इंजीनियर तो है ही। इसकी वजह शायद सिवान में इंजीनियरिंग कॉलेज का होना है। खुद मेरे भैया भी इंजीनियर है उन्होंने अपनी पढ़ाई सिवान से नहीं महाराष्ट्र से पूर्ण किये  है।
          मैंने भरत जी के द्वारा कहीं बातों को थोड़ा सा सुधार करते हुए कहा की प्रोफ़ेसर नहीं असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्हें लगा कि शायद यह उससे बड़ा पद हो सकता है।  मैंने उन्हें समझाया कि पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बनते हैं उसके बाद एसोसिएट प्रोफेसर एवं उसके उपरांत प्रोफ़ेसर बनते हैं यह प्रक्रिया भी मैं पूर्ण करूंगा अभी पहले स्टेज पर हूं। इतनी सारी बातें शायद उन्हें समझ में नहीं आई और तत्काल उन्होंने परीचर्चा का विषय बदल दिया। भरत जी ने अपने दीदी को संबोधित करते हुए कहा:- सोच रहे हैं दीदी इनकी शादी यही करा देते हैं, कोई अच्छा सा रिश्ता ढूंढो। गांव में यह परंपरा रही है कि शादी के लिए हर कोई अपने स्तर से प्रयास करता है मुझे लगा कि और ज्यादा देर रुके तो शायद वह रिश्ता भी ढूंढने ना लगे। इसलिए मैंने भरत जी को चलने का इशारा किया। फिर हम लोग वहां से चांदनी चौक आए। चांदनी चौक से ही भरत जी पचना के लिए और हम बरबीघा के लिए प्रस्थान कर गए।



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