मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

थावे धाम मंदिर, गोपालगंज

 


आप सभी को चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
माता रानी की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे।

                अभी जो यह पेंटिंग आप देख रहे हैं इसे संदीप कुमार पड़ित के द्वारा बनाया गया है जो कि गोपालगंज के सुप्रसिद्ध चित्रकार हैं। बिहार के गोपालगंज जिले में एक सुप्रसिद्ध धाम है जिसे थावे धाम मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। यह चित्र उसी प्रांगण में हुई ऐतिहासिक घटना को प्रस्तुत करता है। इस ऐतिहासिक स्थल की मान्यता यह है कि थावे के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे। उन्हें गर्व था कि उनसे बड़ा कोई मां का भक्त नहीं है। एक बार उस राजा के राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया। उसी दौरान थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु रहते थे। कहानी के अनुसार, रहषु कुश (एक प्रकार का घास) काट कर लाते और उसे इकट्ठा करके मां का आह्वान करते। रहषु के इस पुकार पर जंगल से बाघों का झुंड एवं कुछ साँप आते। रहषु साँपो को रस्सी के रूप में प्रयोग कर बाघों के झुंड को उस कुश पर चलने का आदेश देते। जैसे पहले के जमाने में लोग बैल से गेहूं की दवरी (गेहूं के तने से गेहूं निकालने की विधि) करते ठीक उसी प्रकार कुश की दवरी होती और उसमें से मन:सरा धान का चावल निकलने लगता। मन:सरा चावल के बारे में यह मान्यता है कि यह केवल स्वर्ग में देवताओं को ही प्राप्त होता है। यही वजह थी कि वहां के लोगों को खाने के लिए अनाज मिलने लगा। जब यह बात राजा तक पहुंची तो उसे यकीन नही हुआ। राजा रहषु के विरोध में हो गया और उसे ढोंगी कहने लगा और उसने रहषु से कहा कि अपनी मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु ने राजा से कहे की अगर मां यहां आईं तो आपका राज्य बर्बाद हो जायेगा। लेकिन राजा नहीं माने। बस फिर क्या था कि रहषु के बुलाने पर मां कामाख्या असम से चलकर कोलकता घोड़ाघाट, पटना और आमी होते हुए थावे आई। थावे में राजा ने मां का दर्शन तो नहीं कर पाये बस रहषु का मस्तक को फाड़ कर उन्होंने अपना कंगन दिखाया। इसी दृश्य को देखकर राजा का पूरा परिवार वही स्वर्ग सिधार गया एवं उसके महल खंडहर में तब्दील हो गए। आज भी राजा का वह महल खंडहर बन कर अपने इस प्राचीनतम इतिहास को बयां करता है। चारों ओर से जंगल से घिरा मां का वह मंदिर दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
नवरात्रि के नौ दिनों में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रों में यहां खास मेला भी लगाया जाता है। इसके अलावा मंदिर प्रांगण में सोमवार और शुक्रवार को विशेष पूजा होती है। यही नहीं सावन के महीने में भी इस देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर को लोग थावे वाली माता का मंदिर, सिंहासिनी भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी जानते हैं।


आप सभी भी इस ऐतिहासिक परिदृश्य का साक्षी बनना चाहते हैं तो एक बार मंदिर का दर्शन अवश्य करें।

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