मंगलवार, 7 जून 2022

मध्य प्रदेश की यात्रा 🚉 और दीनानाथ की शादी।

       M.F.A. (Master of Fine Art) की पढ़ाई के दरम्यान मध्य प्रदेश, शक्तिनगर, सिंगरौली तो बहुत घुमना हुआ था। पढ़ाई समाप्त होने के उपरांत कई बार निर्णय हुआ लेकिन कोरोना और कई सारी  वजह से दोबारा नहीं जा पाए। अचानक से 18 May 2020 को दीनानाथ कुशवाहा जी का व्हाट्सएप पर मैसेज आता है। अमूमन बहुत कम मैसेज भेजने वाले दीनानाथ  जी का मैसेज📨 आना हमको कुछ खास लगा। जब मैसेज खोला पता चला कि उनकी शादी 31 मई को है।



      उनके द्वारा कहना भाई साहब जरूर आना है यह जो शब्द हैं ना भाई साहब मुझे खींच कर के 2015 में लेकर चला गया। जब दीनानाथ जी से पहली मुलाकात बीएचयू के प्रवेश परीक्षा के दरम्यान हुई थी। उसके बाद से लगातार दो साल का हमारा सफर साथ ही बीता क्योंकि हमारे साथ ही वो भी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से अपनी पढ़ाई पूरी किये। जब भी कभी मिलते थे उनके संबोधन का पहला शब्द यही होता था:- भाई साहब आज भी जब उसने भाई साहब कहा तो मैं चाह कर भी इनकार नहीं कर सका और पटना से सिंगरौली के लिए ट्रेन में टिकट कटा लिया।



     ट्रेन में मेरे जो सहयात्री थे वह बिहार के कोसी प्रमंडल से आते थे और बिहार में कोसी नदी और बाढ़ का तो चोली-दामन का साथ है हर साल आना ही है। बिहार में बाढ़ की विभीषिका किसी छिपी नही है। फिर भी कुछ ऐसी बातें जो कि शायद आपको पता नहीं रहती हो। पूरी रात वो बाढ़ से उत्पन्न समस्याएं और उसके समाधान वो कैसे करते हैं उसके बारे में चर्चा करते रहें। मुझे यह सुनकर आश्चर्य हो रहा था कि ये लोग प्रत्येक साल इतनी सारी समस्याओं को झेलते हैं। उनकी बाते चलती रही और सुबह में ट्रेन ससमय तो नहीं लेकिन 07:30 AM तक मुझे सिंगरौली स्टेशन छोड़ दी। ज्यो ही स्टेशन के बाहर निकले सबसे पहले सामना स्वयं के नाम यानी  विश्वजीत नाम की बस से हुआ और यात्रा की शुरुआत भी इसी बस से हुईं।


      During the journey of Madhya Pradesh, as soon as he came out of Singrauli station, he first encountered a bus named after himself i.e. Vishvajeet and the journey also started with this Bus.

      08:00 AM में हम बस में बैठे और बस 09:35 AM में खुली। बस जो थी वह मेरे नाम की थी मेरी नहीं थी। इस पर क्या लिखें ? बस इतना समझ लीजिए कि इतने देर के उपरांत भी आधे से ज्यादा सीटें खाली थी।


       लगभग 10:30 तक हम मध्य-प्रदेश के नवानगर, अमलोड़ी मोड़ के पास आ गए थे। यहां से दीनानाथ जी के घर की दूरी लगभग 03 किलो-मीटर थी और जाने की कोई व्यवस्था नही थी। ऐसे दीनानाथ जी अपने छोटे भाई का नंबर मुझे भेजे और बोले कि वह अभी बाजार में ही है आप को लेकर आ जायेगा। जब मैंने उन्हें फोन किया तो वो बोले कि बनारसी पान दुकान के पास आ जाइए। दिनानाथ जी के घर जाने से पूर्व मिठाई की दुकान से कुछ मिठाइयां लिए और उसी से बनारसी पान दुकान का पता पूछा तो बोला कि सीधे चले जाइए आगे आपको बनारसी पान दुकान दिख जाएगा। हम सीधे आगे बढ़ते गए चौरसिया पान दुकान तो दिखा लेकिन बनारसी नहीं दिखा। चलते-चलते पूरा बाज़ार खत्म हो गया लेकिन हमें बनारसी पान☘️ नामक दुकान नहीं दिखा। हम मन ही मन सोच रहे थे कि पता (Addersh) कोई अच्छे दुकान का देता है पान दुकान का पता मैं पहली बार सुन रहा था। हमने उन्हें अंतिम में कॉल किया और पास में मौजूद Hitchai एटीएम का लोकेशन बताया तब वह वहां पर आए आज मुझे लेकर घर की ओर प्रस्थान किए। दिनानाथ जी अपने घर के बाहर बहुत ही सुंदर तरीक़े से दिल💓 के अंदर दिनानाथ संग आशा लिख रखें थे मैं स्वयं को उसकी फोटो खींचने से नही रोक सका।



        दीनानाथ की शादी में जैसा हम सोच रहे थे कि ज्यादा कलाकार तो नहीं आए थे लेकिन बनारस से रमेश भैया जो कि वरिष्ठ कलाकार हैं वो आए थे और वे आलेखन कला में निपुण थे। नाश्ता करने के उपरांत तुरंत खाना आ गया क्योंकि खाना खाने का समय हो चला था। शाम में हम और रमेश जी दिनानाथ जी के गांव घुमने गए। गांव में बमुश्किल ईटों से बने मकान थे ज्यादातर घरे मिट्टी से निर्मित की गई थीं। मेरे लिए तैयार अनुपम दृश्य था। जब आप शहरो में घूमते हैं तो आपको दुर्गा माता, शंकर भगवान, गणेश भगवान, आदि। देवी-देवताओं के मंदिर मिलेंगे लेकिन यदि आप गांव का परिभ्रमण करते हैं तो आपको जिन बाबा, गोरिया बाबा, गुगुल बाबा, सती माई, इत्यादि। भगवान मिलते हैं। ऐसे ही दिनानाथ जी के गांव में भी मुझे श्री ठाढ़ा बाबा मन्दिर दिखाई दिया।



      रमेश जी ने रास्ते में मुझे बताया कि यहां पर हनमना बहुत अच्छा एवं सस्ता मिलता हैं। हनमना शब्द मैं पहली बार सुन रहा था उनसे पूछा कि यह हनमना क्या होता हैं? तब उन्होंने कहा कि चलिए ना आपको खिलाते हैं। वह मुझे एक सब्जी की दुकान पर ले गए और पूछा कि हनमना कैसे हैं? 
सब्जी वाले ने कहा ₹5 किलो।  
मैं सोच रहा था कि इन सारी सब्जियों में हनमना किसे कहते हैं ? सब्जीवाले से मैंने पूछा कि इनमें से हनमना कौन है ? 
     वह मेरी बातों पर ध्यान दिए बिना एक तरबूज़ 🍉 उठा कर तौलने लगा मैं समझ गया कि यहां पर तरबूज को हनमना बोलते हैं ऐसे हमारे यहां इसे लालमी कहते हैं। जैसा रमेश जी बताए थे हनमना/ तरबूज़/लालमी🍉 ताजा एवं स्वादिष्ट था।

    दीनानाथ जी के घर शादी की विधि शुरू हो चुकी थी लेकिन फोटोग्राफर का अता-पता नहीं था। दिनानाथ जी परेशान हो रहे थे उसको फोन किए जा रहे थे वह बार-बार सांत्वना दे रहा था कि आ रहे हैं, आ रहे हैं। मुझसे ये दृश्य देखा नही गया और कहां की हम फोटो खींच दे ? कैमरा लेकर आएं हैं। ऐसी स्थिति में भला मना कौन करता है। उन्होंने तुरंत हामी भर दी। दीनानाथ जी के घर वालों से मेरा पहला सामना एक फोटोग्राफर के तौर पर हुआ ऐसे वह पहले यह बता चुके थे कि उनका दोस्त प्रोफेसर है वह आ रहा है। उनकी शादी में बाहर से दो ही दोस्त आए थे हम और रमेश जी। हम तो उनकी नजर में फोटोग्राफर बन गए थे और जो बचे वह प्रोफ़ेसर। कहा जाता है ना कि पद के अनुसार ही किसी व्यकित को प्रतिष्ठा भी मिलती है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ उस दिन से शुरू हुआ और शादी के बीतने के दिन तक चला। हकीकत का सामना तब हुआ जब रमेश जी शादी के बाद बनारस चले चले गए थे और मैं माडा की गुफाओं का भ्रमण करके आया। उन्हें बहुत अफसोस यह जानकर हुआ कि फोटोग्राफर ही प्रोफ़ेसर है। मैंने कहा कि कोई भी कार्य कोई भी व्यक्ति कर सकता है और किसी भी व्यक्ति को उसके कार्य को देखकर अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए। ऐसे मेरे साथ गनीमत यह थी कि दीनानाथ जी सभी को यह बता रखे थे कि मुझे फोटोग्राफी📸 में नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है जिस वजह से थोड़ी बहुत मान सम्मान भी मिलती रही थी। 

      खैर अब कहानी को आगे बढ़ाते हैं। नजदीक की बारात हमेशा लेट निकलती है ऐसा देखा और सुना था लेकिन जब यहां से बारात निकलने में विलंब हो रहा था तो मैं भी सोचा कि शायद बरात नजदीक ही जाने वाली हो। लेकिन बाद में पता चला कि बरात तो छत्तीसगढ़ जा रही है। जाने में लगभग 02 से 03 घंटे लग सकते हैं। शाम के 07:00 बजे या इसे रात कहना ज्यादा उचित होगा बरात निकली। बस में मेरे सहयात्री रमेश जी थे। बराती बनने  से पूर्व वो थोड़ी सी बिहार में नहीं मिलने वाला और UP & MP में जबरदस्त तरीके से मिलने वाला पेय🥂 ले लिए थे। मुझे महसूस तो हो ही रहा था फिर भी उन्होंने थोड़ा खुद को संभालते हुए कहा कि - बुरा मत मानियेगा मैंने थोड़ा सा पी लिया हैं। 
मैंने कहा - कोई बात नहीं। 
फिर उन्होंने कहा - देखिए बरात में क्या भरोसा दीनानाथ जी व्यवस्था करें या ना करें। मैंने तो पहले ही अपना व्यवस्था कर लिया हैं। फिर उन्होंने कहा - देखिए यह एक बुरी चीज़ नही हैं। 
मैंने कहा:- हां, बिल्कुल नहीं है।
उसके बाद पूरे रास्ते वो ड्रिंक करने के फायदे और ना करने के नुकसान गिनाते रहें। अंत में उन्होंने कहा कि देखिए एक कलाकार को थोड़ा-बहुत नशा भी करनी चाहिए ताकि वह अपने कार्य को अच्छे से सम्पन्न कर सके। उनकी ऐसी ही ज्ञानवर्धक बातें तब तक चलती है जब तक की बस एक सुनसान जगह पर ना रुकी। उस समय रात के 11:00 बज चुके थे पता चला कि हम लोग बहुत दूर गलत रास्ते पर निकल आए हैं फिर क्या था वहां से बस को मोड़ा गया और फिर जितना दूर हम लोग आगे निकले थे वापस लौटे। लगभग सभी को भूख भी लग चुकी थी। एक मार्केट को देखकर बस को रोका गया उस मार्केट में दुकान के नाम पर दो-तीन छोटी-छोटी गुमटियां थी और शायद सुबह का बना हुआ समोसा एवं कुछ पकौड़ियाँ रखी हुई थी। भूखे को तो बस भोजन चाहिए तुरंत ही वह समोसा एवं पकौड़ियाँ खत्म हो गई। मैंने भी कुछ पकौड़ी एवं स्प्राइट लिया। बस में वापस लोग बैठे और बस चल दी। बस के चलने के कुछ देर उपरांत पता चला कि दो-तीन व्यक्ति तो वहीं पर छूट गए हैं। लगभग 12 बज चुका था,  यहां पर बस के ड्राइवर ने नीतिशास्त्र का उपयोग किया और बस निरंतर चलाता रहा है क्योंकि 2-3 के चक्कर में यहां पर 60-70 क्यों परेशान हो। कम से कम जो लोग बस में हैं वो तो लड़की के घर पहुंच जाए। फोन कॉल से पता चला कि दूल्हे की गाड़ी तो 02 घंटे पहले ही वहां पहुंच चुकी है और बारातियों का इंतजार किया जा रहा है क्योंकि लगभग सभी बराती उसी बस में थे। बस अपनी पूरी गति से आगे बढ़ती जा रही थी हर किसी को यकीन था कि अब सीधे लड़की के द्वार के पास ही बस रुकेगी। लेकिन फिर बस के ड्राइवर को अचानक से ब्रेक लगाना पड़ा सभी लोग मुँह के बल गिर पड़े। पता चला कि किसी ने बस के आगे एक स्कॉर्पियो खड़ी कर दि हैं। सहसा किसी को यकीन ही नहीं हुआ की यह क्या पागलपन है। उस स्कॉर्पियो से दो-तीन लोग उतरे और बस के ड्राइवर को गाली देते हुए बस में चढ़े। ये वही लोग थे जो वहां पर छूट चुके थे, जहां बस रुकी थी। किसी स्कॉर्पियो की मदद से यहां तक पहुंचे थे। बहुत देर मान-मनोवल के बाद उन्हें बस में बैठाया गया और फिर बस खुली। अभी बस कुछ ही दूर चली थी कि फिर एक बार बस को रोका गया अबकी बार वजह कुछ और थी क्योंकि सामने देसी दारु की दुकान दिख रही थी सब कुछ स्पष्ट था। जिसको जितना खरीदना था खरीद लिया और फिर बस में बैठे। अबकी बार जो बस खुली वह सीधे वहां रुकी जहां पर DJ उन बारातियों का इंतजार कर रहा था जो कि नागिन धुन पर कमर हिलाने वाले थे। उस समय तक लगभग 01:00 बज चुका था। सभी की इच्छा थी कि जल्द से जल्द बरात को लेकर द्वार पर चला जाए क्योंकि जयमाला, द्वार पूजा, गुरहथनी, इत्यादि विधियां सम्पन्न करानी थी। लेकिन बराती कहां मानने वाले थे वह तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में आसानी से उपलब्ध पेय पदार्थों🥂 को लेने के बाद एक अलग ही जोश में थे। भले उन्हें भोजपुरी गानो के अर्थ समझ में नहीं आएं लेकिन रात भर ढील दs पर डीजे के पीछे लगातार ठुमके लगाये जा रहे थे। अचानक से किसी को याद आया कि डीजे वाला तो नागिन धुन बजा ही नहीं रहा है। नागिन धुन जैसे ही शुरू हुआ सभी का जोश और दुगुना हो गया और सभी ऐसे उछलने लगे जैसे की तपती दोपहरी में पनिया सांप🐍 को रोड पर छोड़ दिया गया हो। कुछ साँप तो रेंगते-रेंगते सड़क पर से नीचे खेतों में पड़े मिले। क्योंकि मुझे दीनानाथ की शादी की फोटोग्राफी भी करनी थी इसीलिए ज्यादा देर वहां नहीं व्यतीत किए और दो चार ठुमके के बाद ही फिर हम अपने कार्य में लग गये। 
        द्वार पूजा के बाद जयमाला शुरू हुआ। हम जयमाला की फोटोग्राफी कर रहे थे तभी एक साँप सॉरी एक व्यकित मेरे पास झूमते हुए आया और कैमरा मांगने लगा। सहसा मुझे लगा की यह कौन हो सकता हैं। तभी वीडियोग्राफर ने बताया कि यही तो कैमरामैन है। मुझे उसकी स्थिति देख ऐसा लग रहा था कि इससे तो फोटो नहीं click हो पाएगा। लेकिन उसकी जिद्द थी कि जयमाला की फोटो वही click करेगा। मैंने उसका सम्मान करते हुए कैमरा उसे दे दिया और अपने बैग से अपना कैमरा निकाल कर फोटोग्राफी करने लगे। जयमाला के बाद दुल्हन का क्लोज अप शूट हुआ। क्लोज अप के दरमियान भी वह फोटोग्राफर मौजूद रहा। रात के 02:30 हो रहा था। सभी लोग विवाह की तैयारी करने लगे मैंने सोचा कि थोड़ा सा खा लेना चाहिए जब खाने की ओर बढ़े तो देखा कि लगभग आइटम खत्म हो चला था फिर भी खाना परोसने वाले ने थोड़ा बहुत जुगाड़ करके दे ही दिया। रात में भूखे नहीं रहना चाहिए इसलिए मैंने भी थोड़ा अन्न ग्रहण कर लिया। 
       फोटोग्राफर का नशा थोड़ा कम हो चला था और उसे नींद भी आ रही थी वह बोला कि भैया आप फोटो click कर कीजिए हम सोने जा रहे हैं। मैंने कहा:- क्यों आप Photo Click नही करेंगे ? वह बोला:- मुझे नींद आ रही है आप ही Shoot कर दीजिए। मैंने कहां:- ठीक है!!! दीनानाथ जी के लिए यह भी सही। 
      बिहार में जो शादी की विधी संपन्न होती है उससे पूरी तरह से अलग छत्तीसगढ़ में मुझे देखने को मिल रही थी। मेरे लिए सब कुछ नया था। शादी की विधि चूंकि लेट शुरू हुई थी इसीलिए सुबह लेट तक चलती रही। विदाई होते-होते दोपहर हो गया। 
         अगले दिन हम माडा की गुफाएं घुमें और 03 जून को काशी विद्यापीठ परिसर गए। वहां पर सभी सर से मिल एवं एनटीपीसी का परिसर घूम 2017 की सारी यादें तरोताजा हो गई। रेणुकूट से पटना के लिए मेरी ट्रैन रात में 08:55 में थी। शाम के 05:00 बजे तक हम स्टेशन परिसर में थे। परिसर में बैठे-बैठे लगभग ये जो 04-05 दिनों की यात्रा संपन्न हुई थी उसका विश्लेषण करते रहें।

2 टिप्‍पणियां:

  1. Wow Bishwajeet bhai kya baat hai... Ramesh bhaiya ji ka sath aur nagin dance ke bich pa jal 🍻 ka sath aur sabhi log milkar barat ko banae khas... Wow nice journey Bishwajeet bhai 😍

    जवाब देंहटाएं
  2. Yhi sb to is duniya ki khubsurti hai 😍

    जवाब देंहटाएं