शुक्रवार, 17 जून 2022

जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत पेपर संख्या 04 "कला का इतिहास" का हिंदी नोट्स। Hindi Notes of Paper No. 04 "History of Art" under Main Examination of District Art and Culture Officer.


     इस Blogs के माध्यम से हम मेंस के सभी विषयों के हिंदी नोट्स आपको प्रदान करते रहेंगे। नीचे दिए गए Link के माध्यम से आप सभी पोस्ट एक साथ प्राप्त कर सकते हैं।




आज के इस लेख में हम चर्चा करेंगे दृश्य कला से संबंधित एक महत्वपूर्ण terms छापा कला के बारे में।

छापा कला को मुख्य चार भागों में बांटा गया हैं। 
  1. उभरी हुई सतह से मुद्रण (रिलीफ प्रिंटिंग) सबसे प्राचीन 
  2. उन्त: सतह मुद्रण (इंटैग्लियो प्रिंटिंग) 
  3. समतल सतह मुद्रण (प्लेनोग्राफी) 
  4. सेरिग्राफी (सिल्क स्क्रीन)  पोसाय तकनीक
(1) उभरी हुई सतह से मुद्रण (रिलीफ प्रिंटिंग):- इसकी उत्पत्ति चीन से माना जाता है उसको दो तरह से छापा जाता है- 
  • वुड कट इसे कास्ट छापा भी कहा जाता है। (प्राचीन) लकड़ी से छपाई।
  • लिनोकट (नया) रब्बर से छपाई।
Note:- हार्ड रोलर का प्रयोग वुड कट में किया जाता है एवं इसमें कोट्स स्याही के प्रयोग से छापा का निर्माण होता है।

वुड कट छपाई के क्रम:-

घिसाई (चमकाना) पॉलिसिंग ➡️ ड्रॉइंग ➡️ कार्विंग (इंग्रेव्विंग) ➡️ इंकिंग ➡️ प्रिंटिंग।

     वुड कट में प्रयुक्त लकड़ी के गुटके को एंड ग्रेन (रेशे का अंतिम छोड़), खरे रेशे वाला। रखा जाता है। यानी कि एक पेड़ के तन्ने को सीधे काटकर प्रयोग किया जाता है। इस प्रिंटिंग प्रोसेस में प्रयुक्त कांच की प्लेट को स्लेथ कहां जाता है। वुड-कट में सूखे कागज का प्रयोग किया जाता है।

वुड कट में प्रयुक्त उपकरण -

लकड़ी का गुटखा (ब्लॉक), व्यूरिन, तक्षिणी, रोलर, स्याही, कागज (अम्ल रहित) सूखा।

वुड-कट 
  • लिनोकट (नया) रब्बर से छपाई:- लिनोकट की प्रक्रिया भी वुड कट की तरह ही होती है।
  • काष्ठ उत्कीर्णन (वुड इंग्रेविंग) इसकी खोज 18वीं शताब्दी ई० में थोमस विविक ने की थी इन्हें ही काष्ठ उत्कीर्णन का पिता माना जाता है।
    इस तकनीक में छाया प्रकाश को दिखाया जाता हैं बारिक-बारिक रेखाओं के माध्यम से।

      लिनोकट का प्रारंभ 1920 ई० में क्लोड फ्लाइड तथा भविष्यवाणी कलाकारों ने इसका प्रारंभ किया था। उसके उपकरण- 
  • ग्रोवर 
  • व्यूरीन 
  • गाउन 
लिनोकट दो तरीके से किया जाता है- चमड़ा (कठोर) रबर (मुलायम)
उदाहरण:- रबर मोहर इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।

(2) उन्त: सतह मुद्रण (इंटैग्लियो प्रिंटिंग), गहनता से छपाई (धंसे हुए हिस्सो से छपाई):- यह उभार सतह प्रणाली के विपरीत/उल्टी होती है। इस तकनीक को आकृति उत्कीर्णन भी कहा जाता है। इंटैग्लियो शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है जो इटालियन भाषा इंटेलियम जिसका अर्थ होता है अंदर से काटना। से बना है।

इंटैग्लियो के विविध तकनीक-

  1. प्लेट उत्कीर्णन (प्लेट इंग्रेविंग) 
  2. ड्राई प्वाइंट (निर्जल बिंदु) 
  3. एचिंग (अमलाकंन) 
  4. मेजोटेंट 
  5. एक्वाटिंट शुगर एक्वाटिंट (इसमें चीनी का प्रयोग किया जाता है।)  
  6. कोलोग्राफी
  7. विस्कोसिटी 
(1) प्लेट इंग्रेविंग/धातु उत्कीर्णन:- इसका विकास 1430 ई० में प्रारंभ होता है।
         इस पद्धति में सबसे पहले ब्रासो/नौसादर/अमोनिया + खड़ीया मिट्टी से प्लेट के दाग धब्बे और खरोंचे को साफ करते हैं। उसको उपरांत वाशिंग पाउडर से धोकर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। छापा के लिए प्लेट का आकार 16 से 18 गेज का होता है।

     किसी वस्‍तु की चौड़ाई, मोटाई तथा दो वस्‍तुओं या दो रेफेरेंस के बीच की दूरी की माप को gauge कहते है। Gauge एक प्रकार का बिना scale वाला inspection tool है जिसका प्रयोग mas production में निश्चित sizes के product को चेक करने के लिए किया जाता है।

          तैयार हो चुके प्लेट पर ड्राइंग बनाते हैं या फिर ट्रेसिंग विधि के द्वारा ट्रेश कर लिया जाता हैं। उसे एल्परिकटा मिडिल भी कहते हैं। चित्र को उकेरने के लिए स्क्रेपर (खुरचीनी) का प्रयोग किया जाता हैं। इसके बाद प्लेट पर तेल मिलाते हैं और स्याही को रोलर से लगाते है उसके उपरांत डंप (DUMP) पेपर/नम कागज पर प्रिंट कर लिया जाता है।

प्लेट उत्कीर्णन (प्लेट इंग्रेविंग) छापा कला की विधि -

वाशिंग ➡️ ड्राइंग ➡️ इंग्रेविंग➡️ इनकिंग ➡️ प्रिंटिंग


(2) ड्राई प्वाइंट (निर्जल बिंदु):- 1480 ई० में इसकी खोज हुई थी। इसमें चित्र के निर्माण के लिए डायमंड निडिल का प्रयोग किया जाता है। इसके रेखांकन में बर्र/कंटिना का प्रभाव हमें दिखाई देता है इसी वजह से चित्रों में धुंधलापन एवं कोमलता का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।

एचिंग (अमलाकंन):- 13वीं शताब्दी ईस्वी में योद्धाओं के कवच पर सजावट के लिए हम अमलाकंन का प्रयोग होता था। इस विधि से रेखा को काटा जाता है इसी वजह से इसे लाइनों एचिंग भी कहा जाता है। एक प्लेट 18 से 16 गज तांबे/जस्ता का होता है।

    छापाकला से पूर्व पहले ग्राउंड का निर्माण करते हैं इसके लिए 
  1. विटुमिन/डामर/तारकोल/असफ/लतम 
  2. मोम (Bee Vax) + रेज़िन को आपस में मिलाकर एक गोला तैयार कर लिया जाता है इसके उपरांत प्लेट को गर्म करते हैं और इन सभी चीजों से निर्मित गोलों से उस प्लेट पर लगाते हैं। प्लेट के दूसरे हिस्से पर भी स्टोपिंग आउट वार्निश कर दिया जाता है। इसके उपरांत चित्रो का निर्माण किया जाता हैं। स्केचिंग के उपरांत उसे एसिड बाथ में डाल दिया जाता हैं। जिससे कि अभिक्रिया कर उस प्लेट पर उत्कीर्णन हो जाता हैं। इसके उपरांत तारपीन टाइन से इसकी धुलाई की जाती है।
       इंग्रेविंग के उपरांत फिर स्याही डालते हैं और नम पेपर पर प्रिंट निकाला जाता है।

अमलाकंन के भाग:-

अमलाकंन के 02 भाग होते हैं- 
सॉफ्ट ग्राउंड 
हार्ड ग्राउंड

Note:- ग्रीस का प्रयोग कर सॉफ्ट ग्राउंड का निर्माण किया जाता है।

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