रविवार, 12 जून 2022

मध्य प्रदेश में स्थित माडा की गुफाओं का रोमांचकारी सफर।

        मध्यप्रदेश में आए हुए आज 04 दिन हो गए थे दीनानाथ जी की शादी बहुत अच्छे से संपन्न हो गई। मध्य प्रदेश की यात्रा और दीनानाथ की शादी का Blog आप नीचे दिए गए लिंक से पढ़ सकते हैं।👇


Find Blog click here.


      माडा की गुफाओं का भ्रमण कराने का जिम्मा दीनानाथ जी अपने चाचा के लड़के अजीत कुशवाहा को दे रखे थे वह अपने साथ एक और लड़के को लेकर आया। यात्रा शुरू करने से पूर्व दीनानाथ जी उसे कई तरह के सुझाव दे रहे थे जैसे:-कोई भी जगह छूटना नहीं चाहिए और लोकेशन वगैरा कैसे जाना हैं ? कौन जगह कहां है ? कौन सी जगह ज्यादा महत्वपूर्ण है ? इसकी भी जानकारी वह उन्हें दे रहे थे। मुझे कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि हम उस गाइड के साथ घूमने जा रहे हैं जिसे स्वयं वहां के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। फिर भी सोचे कि यह यहां का निवासी है इस वजह से हम से तो ज्यादा ही इसे ज्ञान होगा। यह सोचकर साथ हो लिये।
      हमारी यात्रा सुबह 09:00 बजे शुरू हुई और माडा की गुफाएं लगभग 10:00 बजे तक हम पहुंच चुके थे। चूंकि इन गुफाओं का निर्माण ऊंची पहाड़ी एवं घने जंगलों के अंदर हुआ है तो वहां पर खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसलिए हमने रास्ते से ही अपनी व्यवस्था कर ली ताकि अंदर हम आराम से घूम सके। जून की भयंकर गर्मी को देखते हुए पानी की कुछ विशेष बोतले भी ले लिए थे। यानी खुद से ज्यादा बैग का वजन हो गया। माडा के जंगल में प्रवेश करने से पूर्व यहां पर आपको ₹30 का प्रवेश शुल्क लगता है और शायद जहां तक मुझे लगा यह पहला ऐसा स्थल है जहां पर आप के नाम से टिकट कटता है यानी की टिकट पर आपका नाम और आपके बारे में संपूर्ण जानकारी वह अपने रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं। शायद इसकी वजह घना जंगल हो सकता है ताकि कोई अप्रिय घटना होने पर वह आपके परिवार जन को सूचित कर सके।

माडा की गुफा में प्रवेश के दरम्यान लगने वाला प्रवेश शुल्क का टिकट।

     चूंकि हम दीनानाथ जी के घर बैढ़न से गए थे इसीलिए टिकट पर मैंने पता में बैढ़न ही लिखवा दिया इसलिए क्योंकि स्थानीय पता जरूरी होता है। माडा परीक्षेत्र में प्रवेश के साथ ही सबसे पहले आपको एडवेंचर पार्क दिखेगा यदि इसके आप शौकीन है तो इसका भी लुत्फ़ सकते हैं। चूंकि मेरा लक्ष्य तो गुफा का दर्शन करना था इसीलिए आगे बढ़ते रहें। सामने पहाड़ को काटकर बेहतरीन गुफ़ाओं का निर्माण किया गया था। एक बार तो मुझे अजंता एवं एलोरा का ख्याल आने लगा। वहां भी ऐसे ही शिलाखंडों को काट कर गुफाएं निर्मित की गई है। 


     संभवत जून का महीना एवं भीषण गर्मी की वजह से उस स्थल पर हम तीनों के अलावा और कोई नहीं था एक तरह से देखा जाए तो मेरे लिए बढ़िया ही था क्योंकि फोटोग्राफी एवं VLog के लिए ऐसी ही परिस्थिति सही होती है। वहां का नजारा इतना खूबसूरत था की स्वयं की फोटोग्राफी खिंचवाने से भी स्वयं को नही रोक सके।


      हम जिस गुफा का अभी दर्शनाथ कर रहे थे इसका निर्माण 7वीं - 8वीं शताब्दी ई० में किया गया हैं। स्तंभों पर आधारित यह गुफ़ा जिसके अंदर छोटी-छोटी कोठरिया बनाई गई थी एक बार की तो मुझे लगा कि यह विहार गुफाएं हो सकती है। लेकिन जैसे ही हम दूसरी गुफ़ा में प्रवेश किये वहां पर शिवलिंगनुमा एक आकृति बनी हुई थी और परिक्रमा कक्ष बना हुआ था। देखने से यह मंदिर का गर्भ-गृह जैसा प्रतीत हो रहा था। इसे यहां के स्थानीय लोग विवाह माडा के नाम से जानते हैं।

विवाह मादा गुफा में निर्मित शिवलिंगनुमा आकृति।

       माडा की इस गुफा में तीन गुफाएं निर्मित की गई है। तीसरी गुफ़ा ज्यादा विस्तृत थी इसके अंदर छोटी-छोटी कई कोठरियों का निर्माण किया गया था। गुफा की लंबाई ज्यादा होने की वजह से अंदर तक प्रकाश नहीं जा पा रहा था मोबाइल की रोशनी में हम आगे बढ़ते जा रहे थे सब से अंदर एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी वहां पर कुछ ज्यादा ही अंधेरा था। जैसे ही हम उस कोठरीनुमा कमरे में प्रवेश किये अचानक से हमारे ऊपर चमगादड़ों (Bats) ने हमला कर दिया। यानी कह सकते हैं कि हमने चमगादड़ो के निवास स्थान को थोड़ी देर के लिये डिस्टर्ब कर दिया। कुछ ही देर में पूरी गुफा में चमगादड़ इधर-उधर उड़ते हुए दिखाई देने लगे। एकदम से हॉलीवुड मूवी का दृश्य सामने आ गया। तुरंत उस गुफा से बाहर निकले क्योंकि हम जब तब वहां पर रहते तब तक यह बेजुबान पक्षी🦇 परेशान होते रहते।

         इन तीनों गुफा के ऊपर भी कुछ पिलरों का निर्माण किया गया था हमने जब ऊपर चढ़कर देखा तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यहां भी गुफाएं निर्मित की गई है लेकिन बाद के समय में इसे बंद कर दिया गया था। हमारे साथ जो दो गाइड थे मैंने उन लोगो बुलाया और जब इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि यह गुफ़ा उन तीनों गुफाओं से भी ज्यादा लंबी थी बहुत अंदर तक इसे खोदा गया था लेकिन कुछ अप्रिय घटनाएं की वजह से इसे बाद के समय में बंद कर दिया गया।

      इन्हीं तीनों गुफा के दर्शन करते-करते लगभग 12:00 से ऊपर हो चुका था हमने जो भी सामग्री बाजार से खरीदी थी लगभग वह खत्म होने के कगार पर थी पानी भी हमारे पास थोड़ा ही बच रहा था और अंदर खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। अफसोस यह भी हो रहा था कि हमें और ज्यादा पानी की बोतले लेकर आनी चाहिए थी। मेरे साथ जो दो गाइड गए थे मैंने देखा कि वह बोर हो रहे थे क्योंकि एक कलाकार के साथ अन्य व्यक्ति का मन नहीं लगता है। मैंने उन लोगों को थोड़ा सा व्यवस्त करने के लिए उन दोनों की कुछ वहां पर फोटोग्राफी शूट📸 की। जिससे उनका मन भी बहल गया और कुछ फोटोग्राफ का कलेक्शन भी इन लोगों के पास हो गया। यही से वो सोशल मीडिया पर फ़ोटो अपलोड भी करने लगे। मैंने सोचा कि चलो बढ़िया ही हुआ कम से कम इनका भी तो मन लगता रहे।

       थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर हम यहां का जो मुख्य आकर्षण यानी कि जल-जलिया माता का मंदिर उसके लिए जाने को सोचें। वहां जाने के दो रास्ते थे। एक जंगल होते हुए और दूसरा सड़क मार्ग से। हम तीनों ने एक साथ निर्णय लिया कि जंगल मार्ग से चलते हैं ताकि हमारी यात्रा कुछ ज्यादा रोमांचक रहेगी और शायद हमारा यह निर्णय गलत भी था।😓

     खैर, हम जंगल के रास्ते चलना शुरू कर दिये हमारे पास मात्र 01 लीटर ही पानी बचा हुआ था। हम सोच रहे थे कि जल-जलिया मंदिर जल्दी ही पहुंच जाएंगे जैसा कि हमारे गाइड ने कहा कि यहां से लगभग दो से ढाई किलोमीटर है। जल-जलिया माता मंदिर एक अपूर्ण गुफा है जहां पर अज्ञात स्रोत से हमेशा जल प्रवाहित होता रहता है। यह जल इतना साफ एवं स्वच्छ रहता है कि लोग इसे पीते भी हैं। हम यह सोच रहे थे कि पानी खत्म हो रहा है तो कोई बात नहीं जल-जलिया माता मंदिर के यहां पानी भर भी लेंगे और पी भी लेंगे। 

       जब आप सड़क मार्ग से चलते हैं तो दूरी का पता नहीं चलता है लेकिन यदि आप जंगल में चलेंगे तो थोड़ी सी दूरी भी ज्यादा प्रतीत होती है क्योंकि रास्ते स्पष्ट नहीं होते हैं। जंगल में लगभग 02 किलोमीटर से ज्यादा का सफर हमने तय कर लिया था और अभी भी जंगल कितना दूर है यह चीजें स्पष्ट नहीं हो पा रही थी। दूर-दूर तक घने पेड़ ही दिख रहे थे। अब तो मोबाइल इंटरनेट ने भी साथ छोड़ दिया इतने घने जंगल में नेटवर्क सही से नहीं आ रहा था जिसमें गूगल मैप भी हमें रास्ता बताना बंद कर दिया।

     हम जंगल में सीधे गतिमान थे यह सोच कर की कहीं ना कहीं हम तो पहुंच ही जाएंगे। हमारे साथ जो दो गाइड थे उनके चेहरे के भाव को मैंने पढ़ा थोड़ी सी मायूसी और भय दिखाई देने लगा था। मैंने थोड़ा सा माहौल बदलने का प्रयास किया और जंगल में दिखाई दे रहे छोटे-छोटे मिट्टी के टीलानुमा आकृतियो के बारे में पूछा ? क्योंकि जब से हम यात्रा शुरू किए थे लगभग 40 - 50 जगह ऐसी आकृतियां देख चुके थे।  कुछ तो 03 से 04 फीट तक ऊंची थी।

Snake House.

      जब इसके बारे में उसके पास जा करके उनसे पूछा तो वे एकदम से चीख़ते हुए बोले - अरे वहां पर मत जाइए!!! मैंने कहा - क्यों ?? तब वो दोनों एक साथ बोले कि ये साँप का घर है। मैंने कहा - साँप तो अपना घर बनाता नहीं वो दूसरे के द्वारा निर्मित घर में रहता है और आप यह कैसे कह सकते हैं कि यह साँप का ही घर है। तब उन्होंने थोड़ी दूर हटते हुए कहां - यदि आपको विश्वास नहीं हो तो तोड़ कर देख लीजिए इसमें से साँप ही निकलेगा। मैं कुछ देर वही खड़ा होकर निरीक्षण करते रहा उन्हें लगा कि शायद कहीं मैं इसे तोड़ ना दूं। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पूर्व एक लड़के ने यूं ही इसे तोड़ दिया था उसमें से बहुत सारे सांप और उसके छोटे-छोटे बच्चे निकले थे और उन्हें जंगल में भागना पड़ा। मैंने कहां - आप टेंशन ना लीजिए मैं इसे नहीं तोडूंगा। ऐसे भी यह सांप का हो या किसी अन्य का घर तो जरूर किसी का है वरना इतने वीरान जंगल में इतनी मेहनत कौन करता है। फिर उसी यू ही यथास्थिति छोड़ हम आगे निकल पड़े।

    हम आगे बढ़े तो जा रहे थे लेकिन जंगल ऐसा था कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था अब तो एक डर सा भी लगने लगा था क्योंकि हम जंगल में बहुत दूर तक निकल आए थे। जो भी खाने पीने की चीजें हमारे पास थी यहां तक कि पानी भी खत्म हो चला था और धूप इतनी तेज थी कि चला भी नहीं जा रहा था। थोड़ी सी राहत यह थी कि जंगल की वजह से थोड़ा सा आराम था। वो दोनों थक कर एक जगह बैठ गए शायद उन्हें प्यास भी लग रही थी। मैं भी वहां बैठ जब ध्यान से आस-पास के वातावरण को सुनने का प्रयास किया तो ऐसा महसूस हुआ कि दूर कहीं पानी के गिरने की आवाज सुनाई दे रही थी। अचानक से चेहरे पर एक उत्सुकता जग गई। शायद हम जल-जलिया मंदिर पहुंच चुके हैं क्योंकि वहां पर हमेशा पहाड़ से हमेशा पानी गिरते रहता है। मैंने उन दोनों से कहा कि चलिए हम लोग पहुंच गए। फिर हम लोग उस दिशा की ओर प्रस्थान किये जहां से पानी की आवाज आ रही थी। कुछ दूर चलने पर हमें एक पानी की पतली लाइन दिखाई दी जो की कहीं दूर से आ रही थी फिर हमसभी उस पानी के स्रोत को पता करने के लिए एकाध किलोमीटर दूर चले गए लेकिन वह पानी आ कहां से रहा था इसका स्रोत का पता नहीं चला। जंगल और घना होते जा रहा तो इसीलिए हम लोगों ने ज्यादा आगे जाना उचित नहीं समझा। तभी उनमें से एक ने कहा कि जल-जलिया माता मंदिर इतने घने जंगल में नहीं हैं वह तो एकदम रोड के किनारे ही है। हम लोग गलती कर दिये। हमें सड़क मार्ग से ही आना चाहिए था। मैंने उन्हें थोड़ा धीरज बढ़ाया कहा कि कोई बात नहीं हम लोग यहां से वापस चलते हैं। एक ने कहा हम इतनी दूर आ चुके हैं कि जाने का भी रास्ता शायद ना मिल पाए और जाते-जाते शाम ना हो जाये। थोड़ा सा माहौल को मैंने बदलने का प्रयास किया था कि कोई बात नहीं हम लोग एक रोमांचकारी यात्रा कर रहे हैं यह यात्रा हमेशा हम लोगों को यादगार रहेगा चलिए यहीं पर कुछ फोटोग्राफी शूट कर लेते हैं क्या पता??? अगली बार यहां आए या ना आए और फिर मैंने उन सभी का वहां पर मॉडलिंग शूट किया। लेकिन जब अंदर से घबराहट एवं डर हो तो वह चेहरे पर दिख ही जाता है। शायद आप फोटो में देख पा रहे होंगे।



      जंगल से लौटते समय मुझे 23 अक्टूबर 2010 की एक घटना याद आ गई। जो कि छ: दोस्तों की एक जंगल ट्रिप की यात्रा थी वहां छ: थे यहां हम तीन हैं। छ: लोग एक जंगल की यात्रा पर निकलते हैं उनमें से एक फोटोग्राफर भी रहता है जो पूरे ट्रिप की वीडियो बनाते चलता है। जंगल में वो रास्ता भटक जाते हैं और फिर उनके साथ अजीबोगरीब घटनाएं होती है और धीरे-धीरे 05 व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। एक व्यक्ति बमुश्किल जंगल से निकल कर आ पाता है वही फिर सबको वहां की कहानी बताता है। बाद में उसका कैमरा पुलिस को मिलता है और उस कैमरे में जो रिकॉर्ड हुआ था उस को एक फ़िल्म के रूप में 6-5=2 के नाम से पब्लिक किया गया जिसे यूट्यूब पर अब तक 33+ Million Views मिल चुके हैं। इस घटना को न्यूज़ पेपर में भी प्रकाशित किया गया था।


       मैं आप सभी के लिए उस डॉक्यूमेंट्री का लिंक साझा कर रहा हूं आप चाहे तो देख सकते हैं।👇

      
        हमारे साथ कुछ ऐसी घटनाएं नहीं हुई क्योंकि लौटते समय जंगल में कुछ बच्चे मिल गए जो हमारा मार्गदर्शन किया जिनकी मदद से हम जंगल के बाहर सकुशल निकल आए। आते समय याद के तौर पर उन सभी के साथ एक सेल्फी भी लिया और उनको समर्पित अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर फोटो भी पोस्ट किये।


     हम जंगल से बाहर निकल पुनः सड़क मार्ग से जल-जलिया माता का मंदिर गए उनका दर्शन प्राप्त किया जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं यहां पर एक अज्ञात स्रोत से हमेशा जल प्रवाहित होते रहता है उसको थोड़ा सा आधुनिकीकरण करके सामने शिवलिंग बना दिया गया था और ऊपर सांप के फन के द्वारा जल को ला कर गिराया जाता हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि साक्षात वासुकीदेव भगवान शिव को जलाभिषेक कर रहे हैं। बड़ा ही मनोरम दृश्य था वहां का।

वासुकीदेव द्वारा भगवान शिव को जलाभिषेक का मनोरम दृश्य।

जल-जलिया माता के मंदिर का गर्भ गृह।

       यहां पर विवाह मादा और जल-जलिया माडा का तो हमने आपको दर्शन करा दिया। इसके अलावा यहां पर निर्मित रावण माडा, शंकर माडा और गणेश माडा का वर्णन अगले Blog में करेंगें। हमारा यह प्रयास आपको कैसा लगा। अपने विचार कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं।

 धन्यवाद🙏



2 टिप्‍पणियां: