गुरुवार, 9 जून 2022

कला का इतिहास, कुषाण काल 25 ई० पू० - 200 ई० (History of Art, Kushan period 25 BC - 200 AD) Online Class Notes 12/05/2022.

 देवघर का दशावतार मंदिर


     यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है इसे गुप्त काल में बनाया गया था। इसे सर्वतोभद्र शैली में बना प्रथम मंदिर है। सर्वतोभद्र का मतलब होता है जिसे चारों दिशाओं से देखा जा सके। इस मंदिर के रथिका बिम्ब/दीवाल/भित्ति पर चारों तरफ से आकृतियां बनाई गई है। 

     इस मंदिर का निर्माण पंचायतन शैली में हुआ है। पंचायतन का अर्थ होता है- पांच मंदिर एक साथ बने हो।

     उत्तर प्रदेश के ललितपुर झांसी में यह मंदिर स्थित है जो कि मध्य प्रदेश से तीन तरफ से घिरा हुआ है। सबसे पहले भारत में शिखर शैली में बना यह पहला मंदिर है। शिखर का सर्वप्रथम उदाहरण इसी मंदिर में देखने को हमें प्राप्त होता है।


मंदिर की रथिकाओं पर निर्मित मूर्तिशिल्प


  • दक्षिणी रथिका बिम्ब/दीवाल पर शेषाशायी विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई हैं जिसमें विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए दिखाया गया है इनके नाभि से कमल निकला है। इन्हें अन्नतसाई विष्णु भी कहा जाता है।
  • गजेंद्र मोक्ष की प्रतिमा - उतरी रथिका बिम्ब 
  • नर और नारायण की प्रतिमा - पूर्वी रथिका बिम्ब 
  • पश्चिम में मुख्य प्रवेश द्वार पर दो अनुचरों को खड़े हुए दिखाया गया है।

गुप्तकालीन प्राप्त मूर्तिशिल्प

खड़े बुद्ध की प्रतिमा- चौकी पर खड़े शांत मुख मुद्रा में दिखाया गया है, दीपक की भांति भगवान बुद्ध खड़े हैं। इनके संपूर्ण शरीर पर मात्र एक ही वस्त्र है। एक हाथ मे वस्त्र/चिवड़ का कोना तथा दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है जो कि अब खंडित अवस्था में प्राप्त है। इनके शीश के पीछे प्रभामंडप दिखाया गया है। आनंद कुमार स्वामी ने इस प्रतिमा को पांचवीं सदी ईo का माना है। यह प्रतिमा वर्तमान में राजकीय संग्रहालय मथुरा में संग्रहित है इन प्रतिमाओं को स्थानक मूर्ति (खड़ा हुआ) कहा जाता है।


भगवान बुद्ध की बैठी हुई प्रतिमा:- यह प्रतिमा सारनाथ से प्राप्त होती है एवं इसे सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध को बैठे हुए दर्शाया गया है। यह प्रतिमा धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा में है। इस प्रतिमा के पीछे आभामंडल बनाया गया है एवं यह प्रतिभा गुप्त काल की सभी विशेषताओं को अपने में सम्मिलित किए हुए हैं।


सारनाथ की बुद्ध मूर्ति

1) गुप्त काल में सारनाथ मूर्तिकला का एक बड़ा केंद्र था।
2) इसमें बुद्ध को अपना पथ प्रवचन (धर्मचक्रप्रवर्तन) देते हुए दर्शाया गया है।
3) इसका निर्माण काल 5वीं सदी ई. है। यह भूरे बलुआ पत्थर से बनी है।
4) वे इसमें बुद्ध पदमासन मुद्रा में बैठे हैं ।
तथा उनके सिर के पीछे वृत्ताकार व अलंकृत प्रभामंडल है। इस प्रभामंडल के दोनों ओर उड़ते गंधर्मों की आकृतियां अंकित हैं। हाथ उपदेश देने की मुद्रा (धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा) में दिखाया गया है।
5) बुद्ध जिस सिंहासन पर बैठे हैं उसके निचले भाग में 07 मनुष्यों को दिखाया गया है।
6) इनमें से पांच बुद्ध के प्रथम पांच अनुयायी (पंचभद्र) एवं दो दानी युगल हैं।
7) इस मूर्ति की ऊंचाई पांच(05) फ़ुट तीन (3) इंच हैं। वर्तमान में इसे सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है।

सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमा इसे आंद्र बुद्ध की प्रतिमा भी कहा जाता है एवं इसे ताम्र (तांबा) से बनाया गया है। इसका काल 400 ई० है एवं ऊंचाई 07 फीट है। वर्तमान में इसे बरमिंघम संग्रहालय लंदन (इंग्लैंड) में रखा गया है।

सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमा

देवी गंगा की प्रतिमा इन्हें मकर पर खड़े दिखाया गया है। बेसनगर (विदिशा) मध्य प्रदेश से यह प्रतिमा प्राप्त हुई है। वर्तमान में इसे बोस्टन संग्रहालय अमेरिका में सुरक्षित रखा गया है।

कार्तिकेय की प्रतिमा यह प्रतिमा बनारस से प्राप्त हुई हैं। इसके आभामंडल को मोर के पंखों से बनाया गया है। 

चतुर्भुज विष्णु की प्रतिमा  यह प्रतिमा मथुरा से प्राप्त हुई है। 

लोकेश्वर शिव की प्रतिमा यह सारनाथ से प्राप्त हुई है।

वराह अवतार की प्रतिमा यह प्रतिमा भेल्सा मध्य प्रदेश के उदयगिरी की गुफा से प्राप्त हुई है। इसे नरवराह भी बोला जाता है। 

बलदेव तथा लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा  यह प्रतिमा राजस्थान से प्राप्त हुई है।

भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की प्रतिमा रत्नागिरी मठ, उड़ीसा से प्राप्त हुई है।

नागराज की प्रतिमा अजंता की गुफा संख्या 19 से प्राप्त हुई है। 

लोहे की लाट इसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के द्वारा निर्मित किया गया है। यह दिल्ली के महरौली क्षेत्र में स्थित है। इसे दिल्ली की किल्ली, मेंहरौली स्तंभ, लोहे की लाट के नाम से भी जाना जाता है। यह 23 फीट 08 इंच ऊंची है। इस स्तंभ के चौकी के ऊपर गरुर की आकृति बनाई गई थी।

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