मंगलवार, 21 जून 2022

कला के तत्व (एलिमेंट्स ऑफ आर्ट) ऑनलाइन क्लास नोट्स Elements of Art Online Class Notes 16-06-2022.

 (3) रूप (फॉर्म) - वह स्थान या क्षेत्र जिसका अपना निश्चित रंग तथा आकार होता है उसे रूप कहते हैं। कलाकार के चित्र भूमि पर अंकन मात्र से ही रूप का निर्माण शुरू हो जाता है और इस रूप के सृजन के साथ ही रूप दो भागों में विभक्त हो जाता है- 

(1) सक्रिय रूप 

(2) सहायक रूप



Note:- अंकन:- किसी यंत्र के माध्यम से धरातल पर चिन्हित एवं चित्रित करना।


रूप को दो भागों में विभाजित किया जाता है - 

(1) नियमित रूप (ज्योमेटिकल फॉर्म) 

(2) अनियमित रूप (आज्योमेटिकल फॉर्म) 


(1) नियमित रूप (ज्योमेटिकल फॉर्म)  जिन आकारों का अपना नियम होता है। जिन चित्रों का निर्माण बौद्धिकता से करते हैं तथा जिसके दोनों भाग बराबर हो जैसे - गिलास, बाल्टी, घन, आयत, इत्यादि। ये सब नियमित रूप कहलाते हैं। 

(2) अनियमित रूप (आज्योमेटिकल फॉर्म)  इसका अपना कोई नियम नहीं होता तथा चित्र भूमि पर संयोजित करना कठिन होता है। इसका एक भाग दूसरे के समान नहीं होता। उदाहरण - पेड़, केतली, शंख नियमित इसके अंतर्गत आते हैं।


रुपो का वैज्ञानिक प्रभाव 


आयताकार रूप - शक्ति, स्थायित्व, एकता। 

वृत्ताकार रूप - इसके द्वारा हम पूर्णता को दिखाते हैं। इसके अलावा गति, आकर्षण, विशालता, समानता को निरूपित किया जाता है। 

वर्गाकार रूप - स्थिरता एवं दृढ़ता।

अंडाकार रूप - लावण्य, सौंदर्य, सृजन। 

त्रिभुजाकार रूप - सुरक्षा, विकास। 

विलोम त्रिभुजाकार रूप - अशांति, लिप्तता का प्रभाव।


       महाभारत में 19 प्रकार के रूपों का वर्णन किया गया है। इस को आधार मानकर अवनींद्र नाथ टैगोर में 16 प्रकार के रूपों के बारे में बताया।


  • स्थिर मुख - अंडाकार 
  • प्रसन्न नेत्र - खंजन पक्षी 
  • योगी के कान - ॐ के भांति 
  • चंचल मुख - पान के पत्ते का रूप


(4) तान (Tone) :- रंग के हल्के तथा गहरेपन को तान कहा जाता है। इसमें काले रंग की मात्रा बढाने से उस रंग की तान बढ़ेगी तथा मान घटेगा। किसी रंग में सफेद रंग मिलाने से उच्च रंग की तान घटेगी तथा मान बनेगा। इसे मुख्यत: तीन भागों में विभक्त किया गया है 

  1. प्रकाशित तान (हल्का तान) लाइट टोन - खुशी 
  2. मध्यम तान (मिडिल टोन) - समानता 
  3. गहरा तान (डार्क टोन) - गंभीरता एवं अवसाद


     चित्र में परिपेक्ष तथा 3D प्रभाव डालने के लिए टोन का प्रयोग किया जाता है।


वयन/गठन/पोत (Texture) :-  पोत का अनुभव मुख्यतः दो तरह से किया जाता हैं।


स्पर्श

दृश्य


       पोत धरातल का गुण कहलाता है, पोत मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 

(1) प्राप्त पोत (Nature Texture)

(2) अनुकृत पोत (Copy Texture)

(3) सृजित पोत (Created Texture)


(1) प्राप्त पोत (Nature Texture):- इस पोत के अंतर्गत वे सभी धरातल आते हैं जो प्रकृति में सहजता से मौजूद हैं। जैसे:- शीला, गुफाएं।


(2) अनुकृत पोत (Copy Texture):- यह प्रकृति पोत का अनुकरण करते हैं। इस पोत का प्रयोग कंपनी शैली के चित्रकारों ने किया हैं। इस पोत के माध्यम से 3D प्रभाव दर्शाया जाता है।


(3) सृजित पोत, कृतिम पोत, आर्टिफिशियल पोत (Created Texture):- इस पोत का निर्माण कलाकार अपने अनुसार करते हैं। जिसमें प्रमुख रूप से K.K. Haiber, P.N. चोयल, जे. स्वामीनाथन करते थे। 

Note:-  सृजित पोत का प्रयोग सर्वाधिक आधुनिक कलाकारों के द्वारा किया गया है। पोत से चित्र के एकरसता को कम किया जाता हैं।


(6) अंतराल (Space):- भारतीय शास्त्रों में अंतराल को अन्य नामों से भी बुलाया गया है। 

समरांगण सूत्रधार इसके लेखक राजा भोज है उसमें अंतराल को भूमि-बंधन कहा गया है। उसी तरह अभिलातिर्थ चिन्तामणि जो कि सोमेश्वर की रचना है। इसमें अंतराल को स्थान निरूपण और विष्णुधर्मोत्तर पुराण जिसके लेखक मार्कंडेय मुनि है, उसमें अंतराल को स्थान के नाम से बुलाया गया है।


परिभाषा - कलाकार का कार्यक्षेत्र अंतराल कहलाता है। चित्रकला में अंतराल का विशेष महत्व है, जिसके अभाव में चित्र रचना संभव नहीं है। अंतराल को दो भागों में बांटा गया है - 

(1) सक्रिय अंतराल 

(2) सहायक अंतराल


अंतराल का विभाजन 


      चित्र का निर्माण करते वक्त इसके अंतराल को दो भागों में रखा जाता है। 

  1. सम विभाजन (फॉर्मल)
  2. असम विभाजन/विषम विभाजन (इनफॉरमल)


(1) सम विभाजन:- यह रेखाओं की सहायता से चित्र भूमि में इस प्रकार विभक्त किया जाता है की इसके अगल-बगल, ऊपर-नीचे एक समान स्थान छुटा हो। प्राचीन काल के चित्रकारों तथा रूबेंस ने इसका खूब प्रयोग किया। इस विभाजन में संतुलन, शांति, एकता, निश्चिता आदि दिखाए जाते हैं।


(2) असम विभाजन:- इस प्रकार के विभाजन में कलाकार पूर्ण रूपेण से स्वतंत्र होता है। इसके द्वारा मौलिकता का सृजन किया जाता है। इस प्रकार के विभाजन का प्रयोग आधुनिक कलाकारों के द्वारा किया जा रहा है।


प्रश्न:- गोल्डन सेक्शन (स्वर्णिम विभाजन) क्या होता है ?


उत्तर:- यूनान के विद्वान यूम्लीड के द्वारा यह विभाजन प्रयोग में सर्वप्रथम लाया गया था। इसका विभाजन अनुपात के रूप में होता है पीछे वाले क्रम को साथ वाले क्रम में जोड़कर आगे लिखते जाते हैं।

जैसे:-  2 : 3 : 5 : 8 : 13 : 21 : .................


  गोल्डन सेक्शन (स्वर्णिम विभाजन) विभाजन को पहचानिए ?


(१) 2 : 3 ✅

(२) 4 : 6

(३) 1 : 4

(४) 4 : 8

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