(4). लावण्य योजना:- इसका अर्थ होता है- वाह्य सौंदर्य, रूप राशि एवं इसे कांति भी कहा जाता है।
Note:- आयोग के द्वारा वाह्य सौंदर्य इसका सही विकल्प है।
(5). सादृश्य:- देखे हुए रूपों के समान आकृति।
- चित्रसुत्र पुस्तक में सादृश्य को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
चित्रेसादृश्य प्रकरणं प्रधानम परीकीर्तम्
चित्रसूत्र
पंचदशी चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में विधारण्यम मुनि ने लिखा था। इसमें भी सादृश्य के बारे में बताया गया है।
- मूर्तिकला पूर्णत: सादृश्य पर आधारित होती है।
(6) वर्णिका भंग:- विभिन्न प्रकार के रंगों का मिश्रण।
- वर्णिका - रंग भंग - मिश्रण
षडंग की सबसे कठिन साधना वर्णिका भंग को माना जाता है।
कला के तत्व (एलिमेंट्स ऑफ आर्ट)
कला के तत्व छ: होते हैं
- रेखा (लाइन)
- वर्ण/रंग (कलर)
- रूप (फॉर्म)
- तान (टोन)
- पोत (टेक्चर)
- अंतराल (स्पेस)
- सरल रेखा/ज्यामितीय रेखा/आर्किटेक्चरल लाइन/औपचारिक रेखा/स्थापत्य रेखा/तटस्थ रेखा
- वक्र रेखा/अनौपचारिक रेखा (इनफॉर्मल लाइन)
(1) सरल रेखा:- यह रेखा अपनी दिशा नहीं बदलती है। इन रेखाओं का निर्माण यंत्रों के माध्यम से किया जाता है इन रेखाओं से ही भारतीय लोक कला अल्पना अपना आधार बनाती है। इन रेखाओं के माध्यम से मकान तथा सेतु के प्राक्कल्पना को साकार किया जाता है। इसका भाव निर्जीवता एवं कठोरता को प्रस्तुत करता है।
(2) वक्र रेखा:- यह रेखा अपनी दिशा बदलती रहती है इन रेखाओं का प्रयोग चित्रकला के लिए किया जाता है। इन रेखाओं के निर्माण में यंत्रों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका प्रभाव सजीवता को प्रस्तुत करता है। इन रेखाओं का प्रयोग एशिया की कला में सर्वाधिक हुआ है।
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दिशा:- रेखाओं की तीन दिशा होती है-
- क्षैतिज रेखा (होरिजेंटल लाइन) ____
- उध्र्व रेखा (वर्टिकल लाइन) |
- कर्णवत रेखा (डायगोनल लाइन) /
- लंबवत रेखा/सीधी खड़ी रेखा (वर्टिकल लाइन) |
- क्षैतिज रेखा/पड़ी रेखा/आधारवत रेखा (होरिजेंटल लाइन) ____
- कर्णवत रेखा/ अड़ी रेखा (डायगोनल लाइन) /
- चक्राकार रेखा (स्पाइरल लाइन)
- एक पूंजीय रेखा (राइडल लाइन)
- कोणात्मक रेखा
- दुर्बल रेखाएं - इनकी कोई दिशा नहीं होती।
- सशक्त रेखा यह रेखा एक निश्चित दिशा में एक निश्चित उद्देश्य से खींची जाती है।
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