प्रश्न:- पहाड़ी लघुचित्र शैली के चित्रों को किस मूल नाम से जाना जाता है?
- राजपूत चित्र ✅
- लोक चित्र
- शास्त्रीय चित्र
- जंगली चित्र
Note:- राजपूत चित्र दो चित्र शैलियों से मिलकर बना है (१) राजस्थानी (२) पहाड़ी
हमें पहाड़ी चित्रकला शैली पर लोक कला का प्रभाव दिखाई देता है।
लोक कला + मुगल कला = पहाड़ी चित्रकला
आदि M. डैवियर वाला
इनका जन्म 1922 ईस्वी में मुंबई महाराष्ट्र में हुआ था। यह एक स्वयं प्रशिक्षित मूर्तिकार है। पेशे से यह एक केमिस्ट थे, बाद में कलाकार बन गए। इनके मूर्तियों के विषय पौराणिक होते हैं।
कॉमनवेल्थ आर्ट टुडे, लंदन में इसने भारत का का प्रतिनिधित्व किया था। इन्हें यूनान त्रासदी, इसाई आइकोनोग्राफी से प्रेरणा मिली। यह अपनी कृतियों में विज्ञान एवं यंत्र विधि का यह प्रयोग करते थे इन्होंने अपनी कलाकृतियों में वेल्डिंग तकनीक के द्वारा जंग का प्रयोग किया है। इनके द्वारा निर्मित मूर्ति शिल्प का नाम है फॉलिंग फिगर।
Note:- तैयब मेहता ने भी फॉलिंग फिगर के नाम से चित्र का निर्माण किए हैं।
इनका जन्म 1922 ईस्वी में अटक पाकिस्तान लाहौर में हुआ था। B.Sc. इंजीनियर के रूप में कार्य किया। अमरनाथ सहगल कलाकार नाम की पत्रिका में कविताएं लिखा करते थे। इनके मूर्ति शिल्प का विषय - बीसवीं शताब्दी ईस्वी के मानव, भय, चिंता एवं चीख को आधार बनाया। इनका पसंदीदा माध्यम कांसा एवं मिट्टी था। इनके द्वारा बनाई गई कुछ मूर्तियां निम्न है-
- क्राइज अन हर्ड - अनसुनी चीखें, कांसा
- एंग्विस क्राइज
- मनुमेंटल ऑफ कम्यूनली हरमनी
- होमेज टू लव नॉन वायलेंस
- आलाप
- पेसेज ऑफ टाइम
- एन्टेसन
- संबिसम एंड टारचर्ड
- डांसिंग गर्ल, इत्यादि।
पीलू पोचकाने वाला
यह एक महिला मूर्तिकार है इनका जन्म 1923 ई० में मुंबई में हुआ था। इनके मूर्ति बनाने का माध्यम एलमुनियम था। इनकी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में पूरी हुई एवं उनके गुरु N. G. पंसारे थे। इन पर हेनरी मूर के झुके हुए अकारो का प्रभाव है। इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां है:-
- फ्लाइट (उड़ान) - एलमुनियम
- मीटिंग मिलियंस
पीलू पोचकाने के द्वारा बनाई गई मूर्तियां C.S. Tower & T.V. Center नेहरू प्लेटोरियम, इत्यादि जगहों पर लगाई गई है।
उषा रानी आहूजा
इनका जन्म 1923 ईस्वी में दिल्ली में हुआ था। इनके मूर्ति निर्माण का माध्यम पारा एवं धातु है इन पर हेनरी मूर का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनकी मूर्तियां वर्तमान में जयपुर में संग्रहित है। कठपुतली (पपेट) मूर्तिशिल्प में अलंकरणात्मक विधि का प्रयोग किया गया है। ये पॉटरी का प्रयोग कर मूर्तियों का निर्माण करती थी। इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां हिलती-डुलती हुई प्रतीत होती है।
लल्लू नारायण शर्मा (गौतम)
इनका जन्म 1924 ईस्वी में राजस्थान में हुआ था। इनका माध्यम संगमरमर पत्थर है। इनके द्वारा बनाई गई मूर्ति शिल्प आगरा किले के बाहर प्रदर्शित की गई है। ज्यादातर ये बड़ी-बड़ी मूर्तियों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं।
महेंद्र पाण्डया
इनका जन्म 1926 में गुजरात में हुआ था। इनका माध्यम लकड़ी एवं संगमरमर है इन पर रोंदा (फ्रांस के मूर्तिकार) का प्रभाव दिखाई देता है। इनके मूर्ति शिल्प हैं :-
- बालकनी
- गुलामी पत्थर
- Envirenment इत्यादि।
अजीत चक्रवर्ती
इनका जन्म 1930 ईस्वी में चटगांव जो कि बांग्लादेश में है, वहां हुआ था। इनका माध्यम पत्थर, लकड़ी एवं टेराकोटा है। इन पर मंदिरों का प्रभाव दिखाई देता है।
P. V. जानकी राम
इनका जन्म 1930 ई० में चेन्नई (मद्रास) में हुआ था। शिक्षा एवं शिक्षण दोनों कार्य इन्होंने मद्रास से ही पूर्ण की।
अपनी कृतियों में धातुओं की चादरों का प्रयोग करते थे। रिपूजे तकनीक में कार्य करने वाले ये प्रथम कलाकार माने जाते हैं।
Note:- रिपूजे तकनीक को उभार तकनीक भी कहा जाता है।
इनके द्वारा निर्मित कुछ मूर्तिशिल्प इस प्रकार हैं:-
- बिल्ली
- उल्लू
- डिबोटी
- वर्जिन (कुमारी)
- देवी-देवता
- कालिया मर्दन
- वूमेन (औरत)
- गणेश - ऑक्साइड तांबा
- युद्ध की देवी।
मदनलाल भटनागर
इनका जन्म 1931 ईस्वी में ग्वालियर मध्यप्रदेश में हुआ था। इनकी शिक्षा शांतिनिकेतन में पूरी हुई। माध्यम की यदि बात की जाए तो इनका माध्यम धातु एवं संगमरमर रहा है।
हिम्मत शाह
इनका जन्म 1933 ईस्वी में लोथल गुजरात में हुआ था। इनकी शिक्षा बड़ौदा एवं मुंबई में पूरी हुई। ग्रुप 1890 के यह सदस्य थे और इसका नाम इन्हीं ने सुझाया था। वर्तमान में जयपुर में रहते हैं। इन्होंने टेराकोटा, टूटी-फूटी बोतले, जला एवं फटा कपड़ा का प्रयोग कर मूर्तियों का निर्माण करते हैं। इनके द्वारा निर्मित मूर्ति शिल्प है:-
- होमेज टू राजस्थान
- शीर्ष (Head).
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