सोमवार, 13 जून 2022

कला के षडंग ऑनलाइन क्लास नोट्स Kala Ke Shadang Online Class Notes 11-06-2022.

 कला के षडंग (छ: अंग)

        षडंग संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ छ: अंग होता है। वात्सायन के कामसूत्र में 64 प्रकार की कलाओं का जिक्र किया गया है। उसमें चौथे क्रमांक पर आलेख्यम यानी की चित्रकला का वर्णन है। उसी चित्रकला पर यशोधर पंडित ने 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच जयमंगला नाम से एक टीका लिखा और उसी में कला के षडंग के बारे में एक सूत्र के रूप में चर्चा की गई है।


रूपभेदा: प्रमाणानी भाव लावण्य योजनम ।

सादृश्य वर्णिका भंग इति चित्र षडंगम ।।


        अवनींद्र नाथ ठाकुर ने सिक्स लिंब्स ऑफ पेंटिंग नामक पुस्तक में कला के 06 अंगों के बारे में उदाहरण सहित समझाया है।

       चीन के दार्शनिक शी-हो ने 4-5 वीं शताब्दी में सिक्स कैनन नाम से षडंग के बारे में लिखा था। यह भारत के षडंग से काफी मिलता-जुलता है। अर्थात भारत में इसे लिखने से पहले चीन में लिखा जा चुका था।

षडंग के 6 भाग निम्न है:-

  1. रूपभेद 
  2. प्रमाण 
  3. भाव 
  4. लावण्य योजना 
  5. सादृश्य 
  6. वर्णिका भंग
(1) रूपभेद  अर्थात दृष्टि का ज्ञान/रूप-रूप में अंतर।

रूप दो प्रकार के होते हैं-
  1. प्रकट रूप - अनुभूति/ज्ञान चक्षु (आंख) से होती हैं।
  2. प्रच्छन्न रूप  इसका ज्ञान हृदय से होता है। 
        किसी रूप का परिचय सर्वप्रथम आंखों से होता है तत्पश्चात हृदय से होता है।

 अवनींद्रनाथ टैगोर✍️

        रूप मूलतः दो प्रकार के होते हैं लेकिन कुछ विद्वानों ने रूप को अनंत माना है। जबकि महाभारत नामक ग्रंथ में 19 प्रकार के रूपों का वर्णन किया गया है। इसी महाभारत को आधार मानते हुए अवनींद्रनाथ टैगोर ने 16 प्रकार के रूपों का वर्णन किया है।

रूप भेद में अंतर 

जैसे:- एक राजकुल की महिला के हाथों में बच्चा होगा जिसके चेहरे पर चमक तथा होठों पर मुस्कान हो तथा वहीं पर एक सेविका होगी जिसके चेहरे पर उदासी का भाव होगा तथा झुरिया होगी। अतः इन दोनों में अंतर स्पष्ट है। अर्थात रूपभेद। यही अंतर का ज्ञान ही रूपभेद का ज्ञान कहलाता है।

  • षडंग में प्रथम स्थान रूपभेद को प्राप्त है अर्थात षडंग में सबसे महत्वपूर्ण अंग इसे माना गया है। 
  • पंचदशी चौदहवीं शताब्दी में विद्यारण्य मुनि ने लिखा था इस पुस्तक में रूपभेद के बारे में वर्णन किया गया है।ताल
(2) प्रमाण - वस्तु का सही ब्यौरा/अनुपात

पुरुष 7 1/2 (साढ़े सात) ताल
महिला 7 (सात) ताल

माइकल एंजेलो जो कि इटली के कलाकार हैं इसने पुरुष को 8 ताल में बांटा है जबकि महिला को  7 1/2 (साढ़े सात) ताल में बांटा है।

प्रमाण में सबसे छोटी इकाई अंगूल होती है। एक ताल में 12 अंगुल होते हैं। अतः 12 अंगुल = एक ताल। 7 1/2 (साढ़े सात) ताल = एक पुरुष होता है।

अंगुल = एक अंगुली की मोटाई।
Note:- महिलाओं को 07 ताल में बांटा गया है।

चित्रसूत्र जो कि नारायण मुनी की रचना है, इसमें उन्होंने पुरुषों के पांच प्रकार बताए हैं जो कि निम्न है:-
  1. हंस पुरुष - 112 अंगूल 
  2. भद्र पुरुष - 106 अंगुल 
  3. मालव्य पुरुष - 104 अंगुल
  4. रुचक पुरुष - 100 अंगुल
  5. शशक पुरुष - 90 अंगुल
     साधारण मानव 08 ताल का होता है तथा उत्तम मानव 09 ताल का होता है। मानव के सिर को 12 अंगुल में रखा गया है अर्थात एक ताल में।

प्रश्न:- ताल क्या है ? 

उत्तर:- ताल एक इकाई है।  एक ताल = एक सिर

     मुगल काल में प्रमाण के लिए केन्डे शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रमाण को संबद्धता का सिद्धांत भी कहते हैं।

मानव का ताल के आधार पर वर्गीकरण।

  • बालक - 5 ताल (कुमार, बालकृष्ण)
  • वामन - 8 ताल (साधारण मानव)  
  • उत्तम मानव - 09 ताल (राम, श्री कृष्ण, विष्णु, बुद्ध) 
  • भयानक/क्रूर - 12 ताल (भैरव, यमराज) 
  • राक्षस - 16 ताल (कंस, रावण)
(3) भाव - चित्रकार, कलाकार तथा दर्शक के मन की भावना 

       भरतमुनि जिन्होंने नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा। इन्हें भारत का प्लेटो भी कहा जाता है। इन्होंने 08 स्थाई भाव, 08 सात्विक भाव एवं 33 संचारी भाव दिए अर्थात 49. 

नाट्यशास्त्र में हमें 49 भाव प्राप्त होते हैं।

     नाट्यशास्त्र में आठ प्रकार के रसों का उल्लेख किया गया है जबकि अभिनव गुप्त ने नौवें रस शांत रस की खोज की तथा समरागन सूत्रधार (जिसके लेखक राजा भोज है) में 11 प्रकार के रसों का प्रयोग हुआ है।

रात          भाव           रंग 

श्रृंगार        रति           श्याम/काला 
हास्य रस    हास्य         सफेद 
करुण रस   शोक           भूरे 
वीररस      उत्साह        गौर वर्ण/लाल रंग 
रौद्र           क्रोध            लाल 
भयानक     भय              काला 
वीभत्स      जुगुप्त         नीला 
अद्भुत।       विषमय       पीला 
शांत।          निर्वेद          सफेद

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