सोमवार, 17 मई 2021

"कोरोना से बचने के लिए कोविशिल्ड का प्रथम टीका"

           सुबह से ही मन उत्साहित था। हो भी क्यों ना? कोरोना का टीका लेने जो आज जाना था। जब से रजिस्ट्रेशन हुआ था तब से कई बार उस टेक्स्ट मैसेज को देख चुके हैं जिसमें की लिखा था आपको 15-05-2021 को 9:00 AM से 11:00 AM के बीच टीका लेना है। 05 अंक मेरे लिए शुभ रहा है। यहां तो दो-दो 05 थे यानी की ज्यादा शुभ होने वाला है।


         प्रत्येक दिन 05:00 AM में नींद खुलती थी लेकिन आज 04:00 AM में ही लगा की सुबह हो गया। फिर भी 04:30 तक बिस्तर छोड़ दिये और 05:00 बजे तक तैयार भी हो गये। कहीं भी मुझे समय से जल्दी पहुंचने की बचपन से आदत रही है। 06:30 AM में सड़क पर चले गए। 02-03 Auto तो सामने से गुजरा लेकिन उसमें सीट नहीं था। लॉकडाउन की वजह से बसें नहीं चल रही है केवल छोटी-मोटी गाड़ियां ही चल रही थी। तभी एक और ऑटो आया वो भी लगभग पूरा भरा हुआ ही था इसलिए मैंने उसे रोकना उचित नहीं समझा। लेकिन वह ऑटो कुछ दूर आगे जाकर रुक गया और उसमें से एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा मेरी ओर मुखातिब होकर बोला प्रणाम सर!!!🙏🏻 आइये बैठीये। डबल मास्क में होने की वजह से वह थोड़ी थोड़ी देर से मुझे पहचाना फिर ऑटो वाले से बोला- जाना तो सभी को है ना!!! चूंकि वह ऑटो वाला कोरोना की गाइडलाइन के अनुसार चलना चाह रहा था लेकिन कई बार परिस्थिति के अनुसार नियम तोड़ना भी पड़ता है। 
             कहां भी गया है ना कि अच्छे साध्य की प्राप्ति हेतु बुरे साधनों को अपनाया जा सकता है और यह कार्य नीति-शास्त्र के अनुसार सही भी है। वह ऑटो जैसे ही बरबीघा के मिशन चौक पर पहुंचा एक व्यक्ति ऑटो वाले के पास आया। उस व्यक्ति को देखते ही ऑटो वाले ने ₹30 निकाल कर देने का प्रयास किया लेकिन वह 40 से कम नहीं लेना चाह रहा था। फिर 35 और अंततः 40 लेकर ही वहां से गया। इस संपूर्ण प्रक्रिया में 05 मिनट से ज्यादा का समय लग गया। जैसे ही वह व्यक्ति ऑटो से दूर हुआ ऑटो वाले ने कुछ नासमझ आने वाली भाषा में बोलते हुए ऑटो स्टार्ट किया और आगे बढ़ाया। उसके उपरांत जब तक उसने सभी सवारियों को ऑटो से उतार नहीं दिया तब तक ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करता रहा कि मैं उसे यहां प्रस्तुत नहीं कर सकता। 
           बरबीघा से पुनः शेखपुरा के लिए मुझे बस मिल गई। कोरोना यदि कहीं नहीं है तो वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही है। ख़ैर हम फाइनली अपने लक्ष्य के केन्द्र पर पहुंच गए। शेखपुरा सदर अस्पताल सेकंड फ्लोर पर टीका का केंद्र था। अभी फर्स्ट फ्लोर पर ही थे तभी किसी ने कहा की कोरोना का टिका यहाँ नहीं पड़ता है। मैंने पुनः मोबाइल में पता देखा SADAR ASPATAL 2ND FlOOR SKP. Address तो यही का था, तब उसने फिर कहा:- टीका इसके बगल में टाउन हॉल के परिसर में दिया जाएगा। मैं वहां से जल्दी-जल्दी टाउन हॉल गया। उस समय तक 08:00 बज गया था। मैं यह सोच रहा था कि 09:00 बजे से टीका शुरू करने का समय है तो 08:30 तक सभी कर्मचारी आ ही जाएंगे लेकिन जब मैं परिसर में गया तो मेरे अलावा उस परिसर में कोई नहीं था सिवाय कुछ पक्षियों🦜 एवं गिलहरियों🦨 के। 
          कभी समय मिले तो प्रकृति🌳 के साथ भी वार्तालाप कर लेना चाहिए यह सोचकर मै परिसर में घूमकर प्रकृति के साथ अंतर्संबंध बनाने का प्रयास करने लगा तभी मेरी नजर वहां दीवारों पर बनी बिहार की सुप्रसिद्ध कला मधुबनी चित्रकला पर गई। उन तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किए जो कि आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं।👇👇




             मैं परिसर में बैठा अपने आप में मग्न था तभी अचानक किसी के आवाज से मेरी एकाग्रता भंग हुई। कोई 50-55 के बीच व्यक्ति थे 
उन्होंने कहा- कोरोना का सुई यही मिलेगा? 
मैंने कहा- जी, यही मिलेगा। 
तब उसने दोबारा पूछा- कब से शुरू होगा? 
कुछ जवाब देने से पूर्व मैंने समय देखा 09 बजने में 05 Min. कम था और उस परिसर में हम दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था। मैंने उन्हें कहा देखिए आधे घंटे में शुरू हो जाए। 
          30 मिनट मैंने इसलिए कहां क्योंकि सरकारी कार्य को संपादित करने का System मुझे पता था। वह भी वही बैठ गए और समय व्यतीत करने के लिए हमसे बात-चीत शुरू कर दिए। उनसे बात-चीत से पता चला कि वह लखीसराय के थे और यहां टीका लेने आए थे। इसकी वजह मैंने नहीं पुछी क्योंकि मैं स्वयं तो सिवान का होकर शेखपुरा में टीका लेने आया था। 
       जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे भीड़ बढ़ती जा रही थी। टीका देने वाले डॉक्टर एवं नर्स को छोड़कर सभी लोग पहुंच चुके थे बस लोग टीका यही लगेगा ना? यही पूछ कर संतुष्ट हो जा रहे थे। 10:00 बज चुका था लेकिन अभी तक टीका केंद्र पर ताला ही लगा हुआ था।

              अब तो वह लोग भी पहुंचने लगे थे जिनका ग्यारह से एक बजे वाला स्लॉट बुक हुआ था जैसे उन्हें पता चला कि अभी 09:00 से 11:00 वालों का शुरू नहीं हुआ है तो उन्हें थोड़ी निराशा हुई लेकिन हम भारतीय है ना!!! हमें इस बात का अफसोस नहीं होता है कि कोई सुविधा कैसे मिला? बस मिल गया!!! यही हमारे लिए बड़ी बात होती है। भले हम सिस्टम की हम बात करते हैं लेकिन जिसको जितना मौका मिलता है वह उतना ही उसे ध्वस्त करने का प्रयास भी करता है। उस समय तक लगभग 60 से 70 लोग पहुंच चुके थे। हर कोई अपने अनुसार बातचीत करके समय को व्यतीत कर रहा था। कुछ युवा भी थे जो टीका लेते वक्त कौन किसकी फोटो क्लिक करेगा यह तय कर रहे थे। मुझे लगा कि यह तो अच्छा है कि कोरोना का टीका बाएं हाथ में पड़ता है नहीं तो यदि............???
            कुछ लोग गंभीर मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे। जैसे की कोरोना का टीका अभी तक कौन-कौन ले चुका है? उनका इशारा हमारे देश के राजनेताओं की ओर था, कई तो इस बात से डरे हुए थे कि कहीं बुखार ना हो जाए। इन्हीं सब बातों के बीच हाथ में बैग, दवाई की किट लेकर चार पांच लोग प्रकट हुए। यहां "प्रकट" शब्द का प्रयोग इसलिए क्योंकि जितनी तत्परता एवं समय से हम इंतजार कर रहे थे यदि इतनी तत्परता से तपस्या करते तो शायद भगवान भी प्रकट हो जाते लेकिन डॉक्टर भी तो भगवान का ही दूसरा रूप होते हैं हमने उन भगवानों को नमन किया और मन में विश्वास किया की भगवान तो देर से ही आते हैं वह भक्तों की लंबी प्रतीक्षा के बाद दर्शन देते हैं।
                उस समय तक 10:30 हो चुका था मेरी तरह और भी किसी ने वहां पर यह पूछने की जरूरत नहीं समझी कि इतना विलंब क्यों??? फटाफट लोग एक-दूसरे के पीछे लाइन में लग गए। 11:00 बजे से टीकाकरण कार्य शुरू हुआ मेरा नंबर आते-आते 12:00 बज गया। कहां मैं 09:00 से 11:00 के बीच स्लॉट बुक किया था लेकिन क्या करें System है। टीका लेते वक्त एक सेल्फी 🤳 मैंने भी ले ली ताकि उसे सोशल मीडिया में अपलोड कर सके।


Covishield 

           टीका लेने के बाद 30 मिनट वहां रुका जाता है उक्त बातें ना मुझे याद रही और ना ही कोई कहां। शेखपुरा जाने में तो खैर विशेष कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन आते समय थोड़ी-बहुत हुई लेकिन मैं आ ही गया। शेखपुरा से आने के दरम्यान बस वाले ने 30 की जगह 50 लिया और बरबीघा से कुतुब-चौक के लिए 15 की जगह 20. जब मैंने इसकी वजह पूछी तो ड्राइवर ने मधुर मुस्कान के साथ कहां- यही तो मौका है सर आपदा में अवसर का। मैं कुछ कहता उससे पूर्व वह आगे निकल गया क्योंकि उसे और भी सवारियों को अपने मंजिल पर पहुंचानी थी या यूं कह सकते हैं कि आपदा में अवसर ढूंढना था।


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