अक्सर हम सभी के मन में यह ख्याल आता है कि क्या अच्छे साध्य की प्राप्ति हेतु बुरे साधनों को अपनाया जा सकता है? यदि हां तो क्यों और नहीं तो क्यों? आज के इस लेख में हम इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास करेंगे।
सबसे पहले हम पक्ष वाले मुद्दे पर चर्चा करते हैं यदि साध्य अच्छा है तो साधन चाहे कितने भी बुरे क्यों ना हो उसे सहज रूप से स्वीकार किया जा सकता है। यदि हम उदाहरण की बात करें तो मुझे महाभारत का प्रसंग याद आता है जब धर्मराज युधिष्ठिर बोलते हैं-
अश्वत्थामा मृतो गत:,
नर: ना गज:।
अर्थात, अश्वत्थामा मारा गया लेकिन वह इंसान नहीं हाथी था। यहां पर पांडव का साध्य था महाभारत का युद्ध जीतना इसके लिए उनके द्वारा इस साधन को अपनाया गया। कहा भी गया है कि Everything is Fair Love and War. प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। यहां सब कुछ का अर्थ हुआ हर एक वो चीज़ जो आपको जीत दिला सके। अब बारी है नीतिशास्त्र यानी Ethics कि जो यह तो कहता है सब कुछ जायज है लेकिन कैसे? यह उस समय की परिस्थिति पर निर्भर करता है। एक ही प्रश्न का दो या तीन उत्तर हो सकता है, यदि परिस्थितियां अलग-अलग हो। इसे हम दो उदाहरण द्वारा समझते हैं।
पहला उदाहरण, हम वर्तमान परिस्थिति को ही लेते हैं जैसे ही किसी को कोई आपदा की जानकारी मिलती है तो तुरंत आपदा में अवसर खोजना शुरू कर देते हैं और फिर उस आपदा में प्रयोग की जाने वाली सामग्री की मांग में बढ़ोतरी को देखते हुए अचानक से उसके विक्रय मूल्य में वृद्धि शुरु कर देते है। एक अधिकारी के रूप में यदि आप नियुक्त हैं तो सबसे पहले आपको यह करना चाहिए कि जो व्यक्ति ऐसे कार्य में संलग्न है उन्हें तत्काल कठोर से कठोर दंड देना चाहिए और उनकी पहचान भी सार्वजनिक करनी चाहिए ताकि आगे से वह ऐसा कार्य नहीं कर सके। यदि किसी व्यक्ति को किसी से भय लगता है तो वह है- हमारा समाज। ऐसे व्यक्तियों को समाज के द्वारा कलंकित किया जाएगा तो पुनः वैसा कार्य नहीं करेंगे और ना ही कोई और व्यक्ति ऐसा करने को सोचेगा।
दूसरे उदाहरण में मान लीजिए परिस्थिति अनुकूल है लेकिन आपको ज्ञात हुआ कि अमुक वस्तु की कीमत तय मूल्य से ज्यादा में बेची जा रही है वैसी स्थिति में आपको एक अधिकारी के तौर पर तत्काल कार्रवाई नहीं करनी चाहिए चाहिए बल्कि उस समस्या के तह तक जाना चाहिए कि आखिर वह वजह क्या है जिससे इस वस्तु को विक्रय मूल्य से ज्यादा में बेचा जा रहा है और इस कार्य में कौन-कौन लोग संलग्न है? चूंकि अनुकूल परिस्थिति में यदि कोई वस्तु के मूल्य से अधिक में बेची जाती है तो इसके पीछे कई सारे व्यक्तियों का योगदान रहता है। क्योंकि समय अनुकूल है तो हम उचित समय देकर इस समस्या का समाधान ढूंढ सकते हैं।
तो हमने यहां देखा कि समस्या एक थी लेकिन परिस्थितियां अलग। परिस्थिति के अनुसार किया गया गलत कार्य भी गलत नहीं होता इसका ज्ञान हमें नीतिशास्त्र में प्राप्त होता है। जैसे अपनी आत्मरक्षा के लिए किसी की हत्या जायज है उसी प्रकार नाव में आवश्यकता से अधिक सवार की स्थिति में यदि नाव का संतुलन बिगड़ता है तो कुछ लोगों को पानी में फेंकना जायज है। यदि ऐसी परिस्थिति में यह कदम ना उठाया जाए तो सभी व्यक्तियों की मृत्यु हो सकती है। यानी बहुतों को बचाने के लिए कुछ की कुर्बानी दी जा सकती है। यह सभी कार्य सही है, जायज हैं। चाहे फिर वह किसी को सजा देना हो या अपमानित करना। हमें बस यह ध्यान देना होगा कि हमारा साध्य उचित रहे साधन अनुचित भी हो सकते हैं।
अब हम इसके दूसरे पहलू यानी विपक्ष पर चर्चा कर लेते हैं। आप सभी के मन में यह विचार आ रहा होगा की तब तो परीक्षा पास करने के लिए परीक्षा हॉल में चोरी करना सही है। नौकरी लेने के लिए फर्जी डिग्री लेने का कदम उठाना भी सही है। हजारों ऐसे छात्र जो बिना महाविद्यालय गए प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लेते हैं उनके द्वारा किया गया कार्य सही है। क्योंकि उनका साध्य सही है लेकिन साधन गलत।
यहां पुनः हम नीतिशास्त्र का ही एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे उसमें यह भी कहा गया है कि समय और परिस्थिति के अनुसार किया गया कार्य सही हैं अन्यथा गलत। महाभारत में भी श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
हे पार्थ, धनुष उठाओ और इन का वध करो क्योंकि यही इस समय की मांग है। यदि यह कार्य तुम नहीं करोगे तो मैं स्वयं यह कार्य करूँगा। और हम आगे देखते हैं कि वही श्री कृष्ण धृतराष्ट्र एवं गंधारी को क्षमा भी करते हैं जब उनके द्वारा अनुचित कार्य संपन्न होता है। हम यहाँ देख सकते हैं कि समय एवं परिस्थिति के अनुसार किया गया कोई भी कार्य कभी गलत नहीं होता। हमें भी अपनी जिंदगी में साध्य पर ध्यान तो देना है लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है साधनों पर नियंत्रण रखना क्योंकि जब तक आप अपने साधनों पर नियंत्रण नहीं रखेंगे वह अनियंत्रित होकर हमें अपने साध्य से भटका सकती है।
अंत में मैं कहना चाहूंगा हमें अच्छे साध्य की प्राप्ति तो करनी ही है बुरे साधनों को भी अपनाना है लेकिन समय एवं परिस्थिति के अनुसार।
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