Unit - 1
Drama as Performing Art
नाटक के स्वरूप: एकल, समूह
रंगमंच अभिनेता का माध्यम है, किंतु दुर्भाग्यवश रंगमंच में अभिनेता की अलग पहचान नहीं बन पाई है। इस पहचान के बिना रंगमंच की पहचान भी संभव नहीं है। एकल अभिनव पूरी तरह अभिनेता का रंगमंच हैं। यह एक अभिनेता को उसके द्वारा अर्जित अनुभव कार्य दक्षता और कल्पनाशीलता के प्रदर्शन का स्वतंत्र अवसर उपलब्ध करता है और उसे उसकी जादुई शक्ति के साथ रंगमंच का प्रतिष्ठापित भी करता है। एकल नाट्य (एकल अभिनव) किसी भी स्तर पर सामूहिकता का निषेध नहीं करता। बल्कि यह सामुदायिक जीवन का एक अंग है क्योंकि यह व्यापक दर्शक समुदाय को संबोधित करता हैं।
एकल अभिनय भले ही सरल लगता हो किंतु वास्तव में यह समूह अभिनय से ज्यादा जटिल है। कल्पनाशीलता तथा नाट्य कौशल में सिद्धहस्त अभिनेता ही एकल नाटक की प्रस्तुति कर सकता है। समूह अभिनय में जहां अनेक अभिनेताओं की क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वारा नाटक को प्रस्तुत किया जाता है। वहीं एकल नाटक में एक व्यक्ति के द्वारा ही सारे कार्य को संपादित करना होता है।
बांग्ला रंगमंच में, एकल अभिनय की परंपरा काफी वर्षो से है। कुछ वर्षो से हिंदी, कन्नड़, मराठी और अन्य भारतीय भाषाओं में एकल अभिनय के प्रयोग किए गए हैं। यदि हम बिहार के परिपेक्ष्य में बात करें तो हम पाते हैं कि पटना के अनेकों रंगकर्मियों के द्वारा भी एकल अभिनय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं।
रंगमंच एवं रंगकर्मी के लिए किसी भी नाटक की प्रस्तुति एक जैसी ही होती है। इसलिए एकल अभिनय एक सामान्य नाटक की तरह ही होता है। जिसमें अकेले अभिनेता के अतिरिक्त किसी दूसरे अभिनेता की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती और इसकी सफलता भी इसी में है की दर्शकों को किसी भी पल किसी अन्य अभिनेता के ना होने का अहसास ना हो।
एकल अभिनय को रंगमंच के एक प्रकार अथवा शैली के रूप में दर्शकों की स्वीकृति भी मिल रही है। जो कि रंगमंच के हित में है।
निष्कर्ष (Conclusion)
रंगमंच में कुछ भी एकल नहीं हो सकता। यहां तक कि अगर एक लैम्प/light भी मंच पर जल रहा हैं। और दर्शक उसे देख रहे है तो यह एक सामूहिक प्रक्रिया है। मेरे विचार में यह नाटक के स्वरूप (एकल/समूह) एक शैली है।
एकल यानी अकेला, अगर एक व्यकित बोल रहा है और दूसरा सुन रहा है तो इसे एक एकल नहीं कहेंगे। क्योंकि एक अभिनेता है और दूसरा दर्शक। इन दोनों के संयोजन से यहां रंगमंच का निर्माण हो रहा है। जिसे हम एकल अभिनय का नाम देते हैं वहां तो एक विशाल जनसमूह मौजूद रहता है। जहां से शैली तो एकल है लेकिन उसका प्रभाव नहीं। प्रभाव सामूहिक हैं।
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