सोमवार, 25 मई 2020

शिक्षा में रंगमंच की अवधारणात्मक समझ तथा उपयोगिता, इकाई - 3 प्रदर्शन कला (Performance art) D.El.Ed. 1st Year.

इकाई - 3 प्रदर्शन कला (Performance art)

शिक्षा में रंगमंच की अवधारणात्मक समझ तथा उपयोगिता




शिक्षा में रंगमंच की अवधारणात्मक समझ तथा उपयोगिता D.El.Ed. 1st Year. इकाई-3 Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=JF1-ay3vYGM&t=2s

    शिक्षा में रंगमंच के अंतर्गत विद्यार्थी अपने भाव-पक्ष तथा तर्क-पक्ष को सृजनात्मकता से जोड़कर स्वस्थ मनोरंजन के साथ ज्ञान लाभ भी प्राप्त कर सकता है। यह गतिविधियां विद्यार्थी को अधिक विचारशील, सकारात्मक, सृजनशील एवं चतुर  बनाती है।
         शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों का सर्वागीण विकास करना होता है। सर्वागीण विकास से तात्पर्य बौद्धिक (Intellectual) शारीरिक, सामाजिक एवं नैतिक विकास (Moral development)  करने से है।
        शिक्षा का उद्देश्य बालक एवं बालिकाओं को सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से विकसित करना होता हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु पाठ्य-पुस्तकों तथा पाठ्य-सहगामी (Text Concomitant)  रचनात्मक गतिविधियों के मध्य संतुलन आवश्यक है।
        पाठ्यक्रम के साथ-साथ  चलने वाली गतिविधियों को पाठ्य सामग्री अभिक्रिया कहते हैं।  यह  विद्यार्थियों को अपने कौशलों एवं रचनात्मक क्षमता को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करती है। इन गतिविधियों के अंतर्गत कला (Art), संगीत (Music), नाटक (Drama), नृत्य (Dance), इत्यादि। रचनात्मक गतिविधियां सम्मिलित है।ऐसी कलाएं रचनात्मकता से परिपूर्ण होती है। यह बच्चों की कल्पनाओं को यथार्थ रूप में धरातल प्रदान करती है। बच्चे इन गतिविधियों में भाग लेकर अपने मन की कल्पनाओं को कला के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं।
     ऐसी गतिविधियां जो विद्यालय अथवा महाविद्यालय द्वारा आयोजित की जाती है तथा पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होती है तथा शैक्षिक संस्थान का महत्वपूर्ण भाग भी होती है।
       बच्चों के व्यक्तित्व-विकास हेतु किसी भी विद्यालय के पाठ्यक्रम में पाठ्य सहगामी गतिविधियों (Curriculum Related Activity) को सम्मिलित किया जाना चाहिए। यह गतिविधियां व्यवहारिक रूप से बालक- बालिकाओं में वाद-विवाद, भाषण, विभिन्न ज्वलंत विषयों पर विचार-विमर्श के माध्यम से स्वतंत्र विचार एवं चिंतन की ओर अग्रसर करती है। यह गतिविधियां तर्कशक्ति नेतृत्व क्षमता का भी विकास करती है। यह  गतिविधियां न केवल बच्चों को क्रियाशील एवं उर्जावान बनाती है अपितु उनकी आंतरिक क्षमताओं को भी उजागर करती है। इनके माध्यम से बच्चों में सहयोग एवं समन्वय की भावना का विकास किया जा सकता है। इनके माध्यम से बच्चे को उसकी क्षमताओं के प्रदर्शन के अवसर देकर उसका मनोवैज्ञानिक स्तर पर विकास कर समाज को सुगठित (Compact, Shapely)  किया जा सकता है।
        हम सभी को ज्ञात है कि प्रत्येक बालक अपने आप में विशिष्ट होता है। प्रत्येक बच्चे में अपनी कुछ क्षमताएं एवं गुण होते हैं। बच्चे असीम ऊर्जा से भरे होते हैं। रचनात्मक एवं पाठ्य सहगामी गतिविधियां उनकी ऊर्जा एवं क्षमताओं को उचित दिशा प्रदान करती है जिससे उनके भावों को अभिव्यक्ति का माध्यम मिलता है। इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चे के व्यक्तित्व में संतुलन लाया जा सकता है।

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