रविवार, 17 मई 2020

कार्य और शिक्षा S -3 इकाई–1 अवधारणात्मक समझ Bihar School Examination Board, Patna.



D.El.Ed. 2nd Year कार्य और शिक्षा S -3 इकाई–1 अवधारणात्मक समझ Bihar School Examination Board, Patna. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=bvPU5o87Emg&list=PL9TVIXFOxWRpSp3RUoCwb9_xCs4St1QPM&index=4

इकाई - 1: कार्य और शिक्षा अवधारणात्मक समझ 
  • कार्य और शिक्षा : अवधारणा तथा ऐतिहासिक संदर्भ

कार्य  शिक्षा (Work Study/ Cooperative Education):-  कार्य शिक्षा, शिक्षा की एक विधि है। जिसमें कक्षा में शिक्षा देने के साथ-साथ विद्यार्थियों को समाजोपयोगी कार्य(Social Work) की व्यवहारिक शिक्षा(Practical Education) भी प्रदान की जाती है। कार्य शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण और सार्थक शारीरिक श्रम माना गया है जो शिक्षण के अंतरंग भाग के रूप में आयोजित किया जाता है और पूर्ण सामग्री के उत्पादन और समुदाय की सेवा के रूप में परिकल्पित होता है।

             इसी संदर्भ में महात्मा गांधी की प्रसिद्ध उक्ति का स्मरण हो आता है, मैंने साक्षर होने की सराहना कभी नहीं की। मेरे अनुभव ने साबित किया है कि केवल साक्षर होना किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का संवर्धन (Promotion, प्रोन्नति, तरक्की) नहीं कर सकता। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि शिक्षा के साथ कार्य को जोड़ा जाए।  मेरे विचार में प्रारंभ से ही बच्चों को श्रम की गरिमा से परिचित कराया जाए। मेरा विश्वास है कि वास्तविक शिक्षा शरीर के विभिन्न अंगों जैसे:- हाथ, पैर, आंख, कान और नाक का प्रयोग करके ही प्राप्त की जा सकती है।  दूसरे शब्दों में यदि हम कहे तो इंद्रियों का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए सर्वोत्तम तथा उचित तरीका है।                             
         एक अन्य कथन है संपूर्ण जगत् सूर्योदय के साथ ही सक्रिय हो जाता है किंतु आज के संदर्भ में उपरोक्त कथन पर विचार करें तो हम पाते हैं कि आज संसार सिर्फ दिन में  ही नहीं अपितु रात में भी उतना ही सक्रिय है।उपरोक्त संदर्भ में, सक्रिय शब्द से आप क्या समझे? निश्चित रूप से सक्रिय रहने का आशय कुछ गतिविधियों/कार्यों में व्यस्त रहने से है।  सभी जीवो के लिए चाहे मनुष्य हो या पशु,  शारीरिक श्रम एक महत्वपूर्ण गतिविधि/कार्य है। 

Assignment
  1.  कार्य क्या है? 
  2. कार्य हमारे जीवन में महत्वपूर्ण क्यों है?     
इन प्रश्नों पर विचार कीजिए तथा उन्हें दैनिक अनुभव से जोड़कर समझने का प्रयत्न कीजिए।






कार्य का अर्थ:- यदि हम अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलापों को देखे तो हम पाते हैं कि हम स्वयं को विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रखते हैं। यदि इस पर गौर करें तो हम देखते हैं कि कुछ गतिविधियां में आपका मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है जबकि कुछ गतिविधियों में आपके  शारीरिक अंग।  जब हमारा मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है तब उसे मानसिक कार्य और यदि शारीरिक अंग  अधिक सक्रिय होता है तब उसे शारीरिक कार्य कहते हैं।  दोनों ही कार्य हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं क्योंकि इनके माध्यम से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

कार्य तथा श्रम का महत्व:-  हमारे जीवन के सभी पहलु चाहे वह व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन से संबंधित हो या फिर व्यवहारिक सभी मे शारीरिक श्रम  शामिल है। मनुष्य का संपूर्ण जीवन शारीरिक श्रम पर ही निर्भर है। कार्य और मानव को दो अलग-अलग चीजों के रूप में नहीं देखा जा सकता।  मानव जीवन के लिए शारीरिक श्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है कुछ लोगों के लिए जहां यह  शारीरिक श्रम आजीविका का साधन हैं वही दूसरों के लिए स्वास्थ्य का माध्यम है।

रोज सुबह  दो तरह के लोग घर से निकलते हैं एक- पेट पालने के लिए और एक- पेट कम करने के लिए।

कार्य तथा आजीविका:-  कार्य और आजीविका का घनिष्ठ संबंध है। इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं-  किसान फसल उगाता है तथा उसका कुछ हिस्सा अपने परिवार के लिए रखकर शेष की बिक्री कर धनोपार्जन करता है। एक रिक्शा चालक धूप, सर्दी, बरसात प्रत्येक मौसम में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाता है तथा प्राप्त धन का उपयोग परिवार के पालन-पोषण हेतु करता है। अतः धन की अपेक्षा के साथ किया गया श्रम आजीविका है।  इस श्रम का न केवल आर्थिक मूल्य है वरन सामाजिक मूल्य भी है।

Assignment

  1. किसी एक आजीविका से संबंधित कार्य के बारे में सोचें तथा उसमें निहित सामाजिक मूल्यों पर चर्चा करें।






कार्य, आनंद और संतोष:-  यदि हम अपने आसपास देखें तो पाते हैं कि अधिकांश व्यक्ति अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए श्रम करते हैं। और कुछ को अपने कार्य में ख़ुशी मिलती है।  उदाहरण स्वरूप:- एक कलाकार चित्रों का निर्माण कर स्वयं को आनंदित महसूस करता है एवं उसको बेच कर धन की प्राप्ति भी करता है। उसी प्रकार एक किसान अपने खेत में फसल उगाता है अच्छी फसल लगने पर वह खुश होता है किसान की यह ख़ुशी केवल इसलिए नहीं होती कि वह फसल को बेचकर अच्छा धन कमा सकें वह तो इस बात से खुश रहता है कि उसको श्रम से प्राप्त यह उपलब्धि कई लोगों की भूख मिटा सकती है। वास्तव में किसी भी कार्य में लगे श्रम से ना केवल धन की प्राप्ति होती है बल्कि आनंद की भी प्राप्ति होती है।  इसका अर्थ यह है कि शारीरिक श्रम आंनद तथा संतोष से संबंधित हैं। शारीरिक श्रम, सुख और आनंद के रास्ते खोलता है और ये संतोष ही है जो लोगों के जीवन का अनिवार्य अंग है। चाहे वह किसी भी उम्र के हो।

शिक्षा में कार्य:- क बार महात्मा गांधी प्रशिक्षु शिक्षकों से बातचीत के दौरान कहे थे कि-  "हमें शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने होंगे मस्तिष्क को हाथों द्वारा प्रशिक्षित करना होगा।  यदि मैं कवि होता तो पांचों उंगलियों की संभावनाओं पर कविता लिखता। आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि मस्तिष्क की सब कुछ है शेष इन्द्रिया कुछ नहीं । ऐसे लोग जो केवल सामान्य शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा हाथों को प्रशिक्षित नहीं करते उनके जीवन में संगीतमयता नहीं होती उनके शरीर के अंग प्रशिक्षित नहीं होते । केवल पुस्तकीय ज्ञान, जिज्ञासा उत्पन्न नहीं कर सकते। अतः वे अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर पाते केवल शब्दों के माध्यम से ही दी जाने वाली शिक्षा थकान उत्पन्न करती है तथा बच्चों का ध्यान भटका देती है।





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