भारतीय परिदृश्य में शिक्षकों के स्व में परिवर्तन: गुरु से प्रोफेशनल तक
आज शिक्षा के बदलते स्वरूप और भारतीय शिक्षा प्रणाली को देखते हुए इस विषय पर गंभीर विमर्श की जरूरत है और इसके लिए हमें कुछ अति महत्वपूर्ण बुनियादी सवालों से जूझना होगा सबसे पहला प्रश्न यह है कि शिक्षा क्या है? और वह कौन सा परिवेश है जिसमें शिक्षा बदल रही है ? शिक्षा के इस बदलते परिवेश में शिक्षकों की नई भूमिका क्या होनी चाहिए।
मनुष्य अपनी प्राकृतिक अवस्था से निकलकर सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में संगठित हुआ तभी से शिक्षा उसका अभिन्न अंग बन गई। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा के चलते ही मनुष्य अपने पशु समान जीवन से मुक्त हो सका।
संस्कृत में 1 श्लोक है-
ज्ञानेन हिना: पशुभि: समाना:
(ज्ञानहीन पशु के समान है)
यदि हम प्रारंभिक अवस्था की बात करें तो उस समय मनुष्य की सबसे बड़ी अवस्था थी भूख मिटाना तथा अपने जीवन की रक्षा करना। इसके साथ ही साथ उसकी एक और बड़ी जरूरत थी इस दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करना। यहीं से उसके अंदर ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा जागृत हुई। इसलिए कहा गया है कि जहां ज्ञान साध्य है वहीं शिक्षा उस ज्ञान को प्राप्त करने का साधन।
- साधन और साध्य में क्या अंतर है?
साध्य-
वह लक्ष्य, मंजिल या मुकाम जहां आप पहुंचना चाहते हैं।
साधन-
वह सब जिसका उपयोग साध्य हासिल करने हेतु करते हैं।
eg-
आप कॉलेज जाना चाहते हैं। यह हुआ आपका - साध्य । कॉलेज जाने के लिए बस/बाइक का प्रयोग करते हैं तो बस/बाइक हुआ -साधन। इसलिए कहते हैं यातायात के साधन।
आप नौकरी करना चाहते हैं तो यह हुआ आपका -साध्य
कोचिंग, किताबें, मॉक टेस्ट यह हुए आपके - साधन
इन साधनों में ही आप पूरा ध्यान लगा दे बाकी सब भूल जाए तब वह हुई आपकी - साधना
एक अति महत्वपूर्ण प्रश्न है-
क्या अच्छे साध्य की प्राप्ति हेतु- बुरे साधनों को अपनाया जा सकता है।
जैसे:- छल, कपट, मिथ्या वचन, अर्धसत्य, (जैसे:- अश्वत्थामा मृतो गत: नर ना गज:) इत्यादि।
"अश्वत्थामा की मृत्यु की झूठी खबर फैला कर महाभारत में द्रोणाचार्य की हत्या की गई थी।"
इसीलिए पंचतंत्र में भी कहा गया है कि साम, दाम, दंड और भेद चार प्रकार के साधन हैं। और आधुनिक युग में Everything is fair, Love and War. यहाँ प्रेम की प्राप्ति और युद्ध में जीत साध्य है और पूरी दुनिया ही साधन।
मेरा उद्देश्य बस बाजी जीतने से है इसके लिए रानी कुर्बान करना पड़े या फिर प्यादा। -रुस्तम
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हमें किस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए ?? कुछ विद्वानों के अनुसार ज्ञान को जीवन की जरूरतों के साथ जोड़कर देखा गया है जिसे इहलौकिक ज्ञान ( Academic Knowledge) कहा गया है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मानना है कि जीवन के बाद की दुनिया यानी दैवीय सत्ता, स्वर्ग-नर्क, पुनर्जन्म इत्यादि। की कल्पना कर परलोक के साथ जोड़कर देखा जाए उसे पारलौकिक या आध्यात्मिक ज्ञान कहाँ जाता है। इसी के कारण अनेकों विषयों का जन्म हुआ।
असल में शिक्षा मुक्ति और आजादी का सशक्त माध्यम है। शिक्षा ऐसी ताकत है जो भय, अंधकार, अज्ञान, अंधविश्वास, घृणा तथा हीन भावना से मुक्त करती है। इसमें किसी प्रकार का अवसाद (Depression) या किसी भी तरह की हताशा (Desperation), निराशा, मायूसी नहीं होती।
शिक्षा में सापेक्षता (Relativity, Relativeness) की भावना निहित (Contained, Inherent) होती है। शिक्षा जहां अपनी तकलीफों के प्रति सचेत करती है वही दूसरों के दुख को अनुभव करने की क्षमता भी उत्पन्न करती है। इसीलिए शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो हमारे मन में ज्ञान के लिए भूख पैदा करें। यदि वह असंख्य प्रश्नों को जन्म दे तो अनेकों प्रश्नों के उत्तर भी तैयार करें।
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