बुधवार, 20 मई 2020

Understanding the Self (स्वयं की समझ)

EPC - 4

Understanding the Self  (स्वयं की समझ)

स्वयं का बोध और इसका अस्मिता से संबंध (Understanding Self and its relation to Identity)

स्वयं की अवधारणा की समझ और अस्मिता के साथ इसके संबंध (Understanding the concept of self and its relation with Identity)


Understanding the Self(स्वयं की समझ)Unit-1 स्वयं का बोध और इसका अस्मिता से संबंध EPC-4.B.Ed 2nd Year Video Link:-  https://www.youtube.com/watch?v=SvKZwZqLekE

             बच्चों को पढ़ाने से पहले आप स्वयं को समझे, इसीलिए B.Ed. के नए पाठ्यक्रम में "स्वयं की समझ" Understanding the Self  विषय को शामिल  किया गया हैं।


चाणक्य-नीति:- 

  • जिस मनुष्य के गुणों की प्रशंसा अन्य लोग करें वह गुण-हीन होने पर भी गुणी बन जाता है। परंतु इंद्र भी अपने मुख से अपनी प्रशंसा करें तो वह श्रुद्रता (हल्केपन, छोटेपन)  को प्राप्त हो जाता है।
  • प्रशंसा से बचो, यह आपके व्यक्तित्व की अच्छाइयों को घुन की तरह  चाट जाती है।
  • दुनिया की सबसे अच्छी किताब हम स्वयं हैं। खुद को समझ लीजिए सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
  • जिसने स्वयं को समझ लिया, उसे दुनिया को समझने में देर नहीं लगती।
स्वयं की समझ :-
                          एक शिक्षक के रूप में आपको उस विषय की अच्छी समझ होनी चाहिए, जिसे आप पढ़ाने जा रहे हैं। इसके अलावा आपको इस बात से भी अवगत होना चाहिए कि आपके विद्यार्थियों को अवधारणात्मक रूप से (Conceptually, सैद्धांतिक रूप से, एक अवधारणा या अमूर्त विचार के संदर्भ में। (In terms of a concept or abstract idea.) कौन-कौन सी चीजें कठिन लग सकती है। उनके मन में उत्पन्न हो रही गलतफहमीयो के संभावित क्षेत्र कौन-कौन से हैं।

स्वयं से स्वयं की पहचान यानी आंतरिक शक्ति (internal power.) का साक्षात्कार:-
                 स्वयं से स्वयं की पहचान यानी आंतरिक शक्ति का साक्षात्कार, आंतरिक शक्ति(internal power.) मनुष्य की जीवंत शक्ति होती है।  जिसके बल पर वह ऐसे कार्य कर लेता है जो आश्चर्यजनक ही नहीं अपितु  अविश्वसनीय भी होते हैं। यदि कोई मनुष्य दृढ़ निश्चय कर ले तो वह किसी भी कार्य को आसानी से संपादित कर सकता है।  इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यक है स्वयं को पहचानने की।
             प्रत्येक मनुष्य को उसके जीवन काल में दो चीजों का सामना करना पड़ता है।  एक सफलता और दूसरा असफलता। कुछ मनुष्य शुरुआत से ही जीवन को सफल बनाने के कार्य में जुट जाते हैं और वह अपने गुणों में वृद्धि करते हुए लगातार सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाते हैं।  क्योंकि उनमें जीवन-पथ में आने वाली बाधाओं को पार करने की क्षमता होती है। वे बड़ी से बड़ी बाधा को आसानी से पार कर जाते हैं।  असफलता भी मनुष्य को सफलता के लिए प्रेरित करती है। जैसे:-  जब ठोकर लगती है तब मनुष्य संभल कर चलने लगता है।  ठीक उसी प्रकार, जब किसी मनुष्य को किसी कार्य में असफलता मिलती है तब वही असफलता  उसे और सही ढंग एवं उत्साह से  कार्य करने की प्रेरणा भी प्रदान करती हैं। लेकिन केवल उन लोगों को जो सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।

अस्मिता के साथ इसके संबंध (Relation to Identity):- 
            स्वयं की अवधारणा को जिसे हम एक शिक्षक की अस्मिता भी कह सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि आप एक शिक्षक बनने के उपरांत अपने विद्यालय में जिस प्रकार का शिक्षण कराते हैं, उसमें आपकी अपनी मान्यताओं एवं धारणाओं की भी विशेष भूमिका होती है जो आपके व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के अनुभव पर ही आधारित होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अध्यापक के शिक्षण की समझ और उसके जीवन के मध्य अटूट जुड़ाव रहता है।

आत्म-अभिव्यक्ति (Self-Expression):-  The Expression of one's feeling, thoughts or ideas, especially in writing, art, Music or Dance.

"Art was not simply for enjoyment or self-expression but a means of passing on ideas and values that had complex social Significance."

          आत्म अभिव्यक्ति वह है, जिसमें व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के बारे में दूसरों के समक्ष बताता है और वह अपनी अभिव्यक्ति को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित कर सकता है
       जैसे:-  वह अपने कपड़ों से अपनी शालीनता, वाणी से अपना व्यवहार, कला से अपनी सृजनात्मकता, इत्यादि। आत्म-अभिव्यक्तित से व्यक्ति स्वयं को दूसरों के समक्ष अपने आप को प्रदर्शित करता है। 
आत्म अभिव्यक्ति को हम निम्न तरीकों से परिभाषित कर सकते हैं:-

  1. सत्य बोलकर:- हम हमेशा सत्य बोल कर भी आत्म-अभिव्यक्ति कर सकते हैं क्योंकि सत्य बोल कर हम अपने स्वयं के बारे में अच्छी अवधारणा बनाते हैं।  इसके विपरीत कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें सत्य बोलने में भय का अनुभव होता है ऐसे लोगो में आत्म-अभिव्यक्ति की भी कमी हो जाती है। सत्य ना बोलने से हम अपने आत्मसम्मान के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं।  इसीलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि जब भी हमारे समक्ष सत्य बोलने का अवसर आए  तब हम उसे निडरतापूर्वक एक चुनौती के रूप में स्वीकार करेंगे।  इससे हमारा उत्साह भी बढ़ेगा और झिझक भी कम होगी।  और इसके साथ ही साथ हमारे मन में बनने वाला भय भी समाप्त हो जाएगा।
  2. सृजनात्मक तरीकों से संलग्न होना (Artistic Way/Creative way, Engage with Creative ways):- इस कार्य में हम अपने जन्मजात प्रतिभा एवं हमारे समक्ष उत्पन्न नित नई-नई समस्याओं के समाधान के द्वारा हम अपने जीवन को और क्रियात्मक बना सकते हैं और अपने अपने कार्यों में और अधिक कलात्मकता भी ला सकते हैं।                                                                                                    जैसे:- (a) प्रतिदिन अपने मन के विचारों को लिखना एवं उससे अपनी समस्याओं का समाधान निकालना            (b) मन में उत्पन्न हो रही अनेक भावनाओं को रेखा, रंग के माध्यम से प्रस्तुत करना।
  3. आत्मज्ञान प्राप्त करना:- आत्मज्ञान के द्वारा ही हम यह जान पाते हैं कि हम कौन हैं?  हम क्या कर रहे हैं?  आज हम सभी व्यस्त जीवन जी रहे हैं। और लगातार आगे दौड़ रहे हैं लेकिन हम अपने आप को इस भीड़ से निकल नहीं पा रहे हैं हमें थोड़ा सा पीछे मुड़कर रुकना चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या आप खुश हैं?  क्या आप अपनी प्रतिभा के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पा रहे हैं?  हमें प्रत्येक क्षण अपनी नई-नई संभावनाएं खोजनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने दृष्टिकोण (the vision) के बारे में ज्ञात होना चाहिए।
  4. कला का प्रदर्शन (Performing of Arts/Exhibition of Arts):- आत्म अभिव्यक्ति के लिए कला का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ माना गया है प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कुछ ना कुछ कला अवश्य होती है कोई व्यक्ति अपनी कलाओं का प्रदर्शन करता है और कुछ उसको छुपा के रखते है।हम अपनी कला को रूचि के अनुसार प्रदर्शित कर सकते हैं जैसे:-  छोटे-छोटे बच्चों में चित्रकला की कला, गाने की कला, नृत्य की कला, भाषण देने की कला, इत्यादि। कलाएँ विद्यमान रहती है एवं सभी इन कलाओं  को हमेशा प्रदर्शित भी करते रहते हैं । लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते आते हैं यह सभी कलाएँ हम अपने अंदर छुपा लेते हैं।

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