भारतीय परिदृश्य में शिक्षकों के स्व में परिवर्तन: गुरु से प्रोफेशनल तक
भारतीय परिदृश्य की बात की जाए तो हम पाते हैं कि शिक्षकों के स्वयं में परिवर्तन हुए हैं एवं वह सभी आज गुरु से व्यवसायिक (Professional) बन गए हैं। शिक्षा में इतनी विषमता (Disparity) पहले कभी नहीं थी जितनी आज हमें दिखती है। कुछ विद्यालय और महाविद्यालय बहुत महंगे हैं और सब की पहुंच से दूर है। दूसरी और अधिकतर स्कूल ऐसे हैं जहां ना पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं हैं और ना ही विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षक।
यदि हम पाठ्यक्रम की बात करें तो अधिकतर व्यवसायिक पाठ्यक्रम वाले महाविद्यालयों में नामांकन पाने की होड़ मची रहती है क्योंकि सभी को यह लगता है कि इस प्रकार के कोर्स (course) कार्यप्रणाली श्रृंखला से अच्छे भविष्य का रास्ता खुलता है। लेकिन इन कॉलेजों में प्रवेश पाना भी पैसों की ताकत पर निर्भर करता है वहां बस पैसों की मांग(Ask) होती है ना की योग्यता की।
इन्हीं सब परिस्थितियों ने शिक्षक एवं समाज को बदलना शुरू कर दिया। फलस्वरूप भारत में शिक्षा भी प्रभावित हुई और उसका स्वरूप भी बदलने लगा। 90 के दशक में लागू की गई नई आर्थिक नीतियों के कारण सरकार ने स्वयं को कई जिम्मेदारियों से मुक्त करना शुरू कर दिया और राज्य के द्वारा संचालित अनेक क्षेत्रों को बाजार के हवाले कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की बाढ़ सी आ गई। बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों और गांवों तक प्राइवेट स्कूलों तथा महाविद्यालयों की भरमार हो गई । शिक्षा अब सरकारी नीतियों से तय ना होकर बाजार के नियमों से संचालित होने लगी। एक प्रतिस्पर्धा-सी हर जगह मच गई और यह स्पष्ट हो गया कि यदि अस्तित्व बचाना है तो बाजार के नियमों के अनुसार चलना होगा। बाजार के नियम क्या है? बाजार परंपरागत रूप से लाभ और आपूर्ति तथा मांग के नियम से संचालित होता है यह प्रतिस्पर्धा पर चलता है।
इस प्रकार से देखा जाए तो जिस तरह से समाज बदला बाकी चीजें भी उसी तरह से बदलने लगी और इसका सबसे बड़ा प्रभाव शिक्षा के ऊपर पड़ा। यदि शरीर के लिए भोजन जरूरी है तो ठीक उसी प्रकार शिक्षा तन और मन दोनों के लिए जरूरी है लेकिन भारत में दो प्रकार की शिक्षा व्यवस्था लागू की गई। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में दोहरी नीति का पालन किया गया और सरकारी के साथ-साथ गैर सरकारी संस्थाओं को चलाने की स्वीकृति दे दी गई । परन्तु सरकारी संस्थाओं की तुलना में गैर सरकारी संस्थाएं बहुत तेजी से आगे बढ़ी। ऐसी स्थिति में हम स्वयं या अनुमान लगा सकते हैं कि इस बदलते परिवेश में शिक्षा की क्या भूमिका रही होगी आज के परिदृश्य में शिक्षक को विचारों आदर्शों तथा जीविकोपार्जन,रोजी-रोटी (Livelihood) में से किसी एक को चुनना होगा। इस दोहरी शिक्षा नीति के बीच दो प्रकार के शिक्षक हमारे समक्ष हैं। एक वे जिन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त है और दूसरे वह जो पूरी तरह बाजार के खेल पर आश्रित हैं । ऐसे हालत में जहां एक शिक्षक को दूसरे शिक्षक से प्रतिस्पर्धा है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा के स्तर में गिरावट आना लाजिमी है। यदि हमें शिक्षा के स्तर में सुधार लाना है और बेहतर समाज का निर्माण करना है तो दोनों तरह के शिक्षकों को अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी और अपनी गुणवत्ता में सुधार लाना होगा।
यदि हम आज की शिक्षा प्रणाली को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि इस शिक्षा प्रणाली में बहुत ही सकारात्मक बातें भी देखी जा सकती है इसका सबसे बड़ा सकारात्मक प्रभाव यह है कि शिक्षा उन जगहों पर भी पहुंच गई जहां कोई सोच भी नहीं सकता था और न ही सरकार इसे कर पाने में सक्षम हो पाती दूसरा फायदा यह हुआ है कि इस दबाव के कारण शिक्षकों को अपनी गुणवत्ता बढ़ाने का मौका मिला है आज के दौर में शिक्षकों की भूमिका और बढ़ गई है जिसे सकारात्मक दिशा में ले जाकर नए नए रास्तों की तलाश की जा सकती है।
निम्नलिखित में से कौन सा कथन एक आदर्श शिक्षक के विशेष अभिलक्षणों को दर्शाता है।
- कक्षा में पाठ्यक्रम को पूर्ण करवाता है।
- अधिगम में छात्रों की सहायता करता है।
- एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भांति व्यवहार करता है।
- एक कठोर अनुशासक की भांति व्यवहार करता है।
Ans.- 3.एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भांति व्यवहार करता है।
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