पाठ्यचर्या में कार्य की भूमिका (Role of work in curriculum)
ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले से ही बच्चों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता को महसूस किया गया था। इस समस्या के समाधान के लिए ऐसी नीति की आवश्यकता थी जो राष्ट्रीय उद्देश्य को प्राप्त करने में मार्गदर्शक कर सके। जो समाज की आवश्यकताओं को बुनियादी स्तर पर समझ सके तथा साहित्य, विज्ञान, कला तथा तकनीकी के द्वारा विकास की संभावनाओं को भी खोज सके अतः ऐसी शिक्षा प्रणाली पर विचार किया गया जो घटते सामाजिक मूल्य पर अंकुश लगा सके यह कार्य तथा शिक्षा के मध्य अंतर के लिए सेतु का कार्य कर सकें।
कार्य शिक्षा को निम्नलिखित परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है।
- यह बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आदतों तथा सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित करती है।
- अपने परिवेश के प्रति जागरूकता तथा मानवता एवं पर्यावरण के मध्य अंतनिर्भरता (Interdependence) की समझ विकसित करती हैं।
- शारीरिक श्रम तथा कार्य के प्रति गर्व महसूस करने के अवसर प्राप्त होते है।
- सामाजिक रुप से मान्य मूल्यों की समझ विकसित करने में मदद मिलती है। नियमितता,(Regularity) समय की पाबंदी (Punctuality), स्वच्छता (Cleanliness), आत्मनियंत्रण (Self control), कर्तव्य(Obligation), भावनाओं की समझ (Understanding of feelings), सामाजिक संवेदनशीलता(Social sensitivity), इत्यादि। केवल पुस्तकीय अध्ययन या उपदेशों को सुनकर विकसित नहीं की जा सकती। इनके विकास के लिए आवश्यक है कि बच्चे आपस में मिलकर गतिविधियां करें ताकि सामाजिक रुप से मान्य मूल्य या वांछनीय गुण स्वभाविक रूप से विकसित हो सकें।
- कार्य शिक्षा पोषण, संक्रामक रोग, स्वच्छता से संबंधित नियमों की जानकारी देता है। जिससे व्यकितगत तथा सामुदायिक स्वच्छता के बारे में जागरूकता उत्पन्न होती है।
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