कार्य शिक्षा की अवधारणा (CONCEPT OF WORK EDUCATION)
प्रत्येक देश में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ऐसी शैक्षिक प्रणाली का विकास करना है जो कि प्रत्येक बच्चों में प्रतिभा और कौशलों के विकसित होने के अवसर प्रदान कर सके। अतः यह अनिवार्य है कि कार्य को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जाए। कार्य शिक्षा उद्देश्यपूर्ण तथा अर्थपूर्ण शारीरिक श्रम मानी जाती है। यह शैक्षिक प्रक्रिया का अंतर्निहित (Ingrained) "दीर्घस्थाई" भाग है। जिसमें बच्चे आनंद और खुशी को प्रदर्शित करते हैं। कार्य शिक्षा शैक्षिक गतिविधियों में ज्ञान, समझ एवं व्यवहारिक कौशलों को शामिल करने पर भी जोर देती है।
कार्य शिक्षा की अवधारणा को निम्नलिखित कारकों (Factors, Case) के आधार पर समझा जा सकता है।
कार्य शिक्षा(Work Education):-
- हाथों तथा मस्तिष्क में समन्वय द्वारा
- शैक्षिक गतिविधियों में सामाजिक रूप से उपयोगी शारीरिक श्रम को सम्मिलित करके।
- किसी कार्य में संलग्न रहना सीखने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण घटक है।
- समुदाय के लिए उपयोगी सेवाओं तथा उत्पादक कार्य के रूप में।
- सभी पहलुओं में एक आवश्यक कारक के रूप में।
- यह "करके सीखना'' सिद्धांत पर आधारित है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार-
संस्कृतिक पुनः जागृति के लिए शिक्षा से शारीरिक श्रम को अलग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक छात्र को अपने समुदाय विशेष के क्षेत्र से बाहर आकर मानव सेवा के कार्यों में सहभागिता करनी चाहिए। कार्य को शिक्षा के माध्यम के रूप में लिया जाना चाहिए, क्योंकि अनुभव मस्तिष्क की खिड़कियां होते है।
स्वमूल्यांकन:-
- रहीम एक ऐसी शाला में पढ़ता है जहां विषय आधारित शिक्षा दी जाती है जबकि जागेश्वरी कि शाला में विषयों को कार्यों से जोड़कर पढ़ाया जाता है। आपके अनुसार इन दोनों के विकास में क्या अंतर होगा। और क्यों?
- कार्य शिक्षा किस प्रकार बच्चों को सामुदायिक सेवा से संबंधित गतिविधियों से परिचित कराती है। उदाहरण के द्वारा समझाइए।
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