गर्मियों की सुबह कुछ ज्यादा ही आनंददायक होती है और ना चाहते हुए भी सुबह में विलंब हो ही जाता है। पूरे सप्ताह की थकान को मिटाने के लिए ही तो रविवार आता है कल आराम से देर तक सोता रहूंगा यह सोचकर शनिवार को देर रात तक अपने Blogs पर कार्य करते रहें। रविवार की सुबह लगा की कोई जगा रहा है। जब मैने आंखें खोली तो देखा बब्लू था।
वह बोला- सुप्रभात💐 सर!!!
मैंने अर्द्धनिद्रा में ही बोला- सुप्रभात बबलू जी!! कैसे हैं?
वह बोला- सर, लालमी खैथिन?
मुझे समझ में नहीं आया कि वह बोल क्या रहा है। फिर दोबारा पूछा तो उसने कहा- सर जी, लालली लाने जा रहे हैं। चलियेगा? सुबह-सुबह टहल भी लीजिएगा।
मैंने कहा- कहां पर लालमी मिलता है?
वह बोला- यही डोवाडीह में।
मैंने कहा- डोवाडीह में तो कभी देखा नहीं। मैं अक्सर सुबह में मॉर्निंग वॉक के लिए जाता हूं। हां कभी-कभी खरबूजा🍈 अवश्य दिखा हैं लालमी🍉 नहीं।
तब वह बोला- सर, खरबूजा क्या होता है?
फिर मैंने उसे मोबाइल में उसकी तस्वीर दिखाई। तस्वीर देखते ही वह बोला- सर!!!! यही तो लालमी है।
तो मैंने कहां- यह लाल कहां है? जब मैंने उसे लालमी यानी Watermelon🍉 की तस्वीर दिखाई तो वह कहां यह तो तरबूज है। मुझे स्थिति पूरी तरह समझ में आ गई कि यहां के लोग खरबूजा यानी Muskmelon को लालमी कहते हैं।
जब इतनी चर्चाएं हो गई तो खाने का भी मन करने लगा। नींद को वहीं बिस्तर पर छोड़ उसके साथ हो लिए। डोवाडीह पहुंचे तो वहां दूर तक कहीं लालमी यानी खरबूजा नहीं दिखा लेकिन वह हिम्मत नहीं हारा और बोला कि सर थोड़ा आगे चलेंगे ना तो अमारी गांव है वहां मिल जाएगा। जब लालमी अमारी गांव में भी नहीं मिला तो उसके कदम पीछे नहीं मुड़े बल्कि आगे बढ़ते ही गए हम भी इसी आशा एवं उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे थे कि शायद अब प्राप्त हो जाए लेकिन अमारी, सुगिया को पार करते हुए हम शेखोपुर सराय बाजार के पास पहुंचने वाले थे।
मैंने उसे कहां- चलो अब नहीं मिलेगा।
तब उसने कहां- सर, शेखोपुर सराय बाजार में मिल जाएगा।
मैंने उसे स्पष्ट बोल दिया कि देखो हम बाजार में नहीं जाने वाले हैं चलो बरबीघा से आ जाएगा, वहां मिलता है। लेकिन कहा जाता है ना जो चीजें आप मन में प्रण कर के चलते हैं जब तक वह पूरा नहीं होता संतुष्टि नहीं मिलती। कुछ वैसा ही वहां पर भी था पता नहीं बब्लू के पास एक विचार आया बोला कि यहां से सामने जो खेत दिख रहा हैं ना सर वहीं पर इसकी खेती होती है चलिए खेत से ही लाते हैं। सामने दूर खेत दिख तो रहे थे लेकिन खेत में कोई व्यक्ति नहीं था। फिर भी शायद कोई मिल जाए यह सोचकर हम खेत की तरफ बढ़ चले। आखिरकार तरबूजे के खेत तो मिल गए लेकिन खेत का मालिक नहीं मिला। दो-चार मिनट इंतजार भी किए लेकिन दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था सोचे कि जब खेत में आ ही गए हैं तो एक सेल्फी भी खरबूजे के साथ ले ही लेते हैं।
मैं खरबूजे के साथ सेल्फी ले रहा था बबलू को लगा कि मैं लालमी तोड़ रहा हूं। फटाफट उसने चार खरबूजे तोड़ लिये और बोला कि चलिए सर हो गया!!! इतना काफी है।
मैंने बोला- आपने खरबूजे क्यों तोड़ लिये?? चलिए अब खेत के मालिक को ढूंढते हैं उन्हें इसके पैसे भी तो देने पड़ेंगे। उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई और बोला कि सर कहां हम लोग ढूंढते फिरेंगे। ऐसे भी बहुत विलंब हो चुका है, अब चलना चाहिए।
मैंने कहा- उक्त बातें तो आपको खरबूजा तोड़ने से पहले सोचना चाहिए ना!!! सामने गांव दिख रहा है संभवत उसी में से किसी का खेत होगा और मैंने उसे आदेश देते हुए कहा- सुबह से हम आपके अनुसार चल रहे थे और अब आप मेरे अनुसार चलिए। ना ईच्छा होते हुए भी बब्लू को मेरे साथ चलना पड़ा। कुछ ही देर में हम लोग गांव में थे। अब समस्या यह थी कि वार्तालाप शुरू कहां से करें।
मैंने एक व्यक्ति से पूछा- यहां किसी के पास लालमी मिल जाएगा? कोई खेती किये है इसकी।
वह बोले- हां हां कितना चाहिए?? स्वयं मेरा ही खेत है। अभी सुबह-सुबह तोड़ कर लाए हैं, एकदम ताजा है।
मैंने कहा- नहीं!!नहीं!! वहां पर जो खेत है ना मुझे उसी खेत का चाहिए और फिर उस खेत की ओर इशारा किया।
तब उन्होंने कहा- उनका घर तो बीच गांव में है। क्या आप उन्हें जानते हैं?
मैंने कहा- जानते तो नहीं है। क्या आप मुझे उनके घर तक पहुंचा देंगे?
उन्होंने एक छोटे बच्चे को बुलाया जोकि वहीं पास में खेल रहा था। उससे कुछ कहे और हमारी तरफ मुखातिब होकर बोले यह आपको उनके घर तक छोड़ देगा। उसके उपरांत फिर हम उस बच्चे का अनुसरण करते हुए चलने लगे।
अभी कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि एक प्रशिक्षु हमें दिखा। उसे तो पहले कुछ समय लगा. हमें पहचानने में। क्योंकि इतनी सुबह वैसे ड्रेस में हम ही हैं या फिर कोई और।
फिर भी उसने हिम्मत करके मेरे पास आया और बोला- प्रणाम सर🙏 आप इधर? इस समय? हम कुछ कहते इससे पूर्व ही वह छोटा बच्चा जो कि हम लोगों के आगे चल रहा था और उसको जिम्मेदारी मिली थी लालमी वाले के घर तक पहुंचाने की अचानक से बोल उठा- यह तो आप ही के घर तो जा रहे हैं। उसे और आश्चर्य हुआ, मेरे घर!!! और मुझे पता ही नहीं है।
फिर उसने बोला- सर कुछ कार्य था तो मुझे फोन कर लेते हैं आप क्यों परेशान हुए। फिर उसने बब्लू को देखा जो कि इतनी देर से हाथ में खरबूज लिए चल रहा था और बोला- इन्हें तो हम पहचानते हैं। यह आप ही के कॉलेज के हैं ना?
मैंने कहा- हां, यह कॉलेज में ही कार्य करते हैं।
फिर उसने छोटे बच्चे से कहा- बाबू, अब तुम जाओ। वह बच्चा तो बस यही सुनना चाह रहा था, तुरंत वहां से खिसक लिया।
कुछ देर बाद, हम उसके घर पर थे। चाय-नाश्ता करने के उपरांत हम जिस कार्य से उसके घर आए थे वह बातें रखें और खरबूजे के खेत से लेकर उसके घर पहुंचने तक का किस्सा सुनाएं। पहले तो सभी हंसे फिर एक थैले में खरबूजा भरकर लाए।
मैंने बब्लू से कहा- आप अपना भी इसी में रख दीजिए और इसका वजन करा दीजिए।
मेरा इतना कहते ही उसके पापा बोले- नहीं सर, यह आपके लिए है। इसका पैसा हम नहीं लेंगे।
मैंने कहा- तब फिर ठीक है। आप पैसा नहीं लेंगे तो हम इसे लेकर भी नहीं जाएंगे।
तब उन्होंने कहा- आप भी तो मेरे लड़के को पढ़ाते हैं।
मैंने कहा- ठीक है। लेकिन इसके लिए आप महाविद्यालय को पैसे भी देते हैं ना।
बहुत देर तक ऐसे ही बातें चलती रही लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था।
अंततः मैंने कहा- ठीक है, आप एक कार्य कीजिए। अभी आप पैसे ले लीजिए फिर कभी जब आपकी इच्छा हो तो मेरे यहां भिजवा दीजिएगा, उस समय हम कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन आज कम-से-कम ऐसा न कीजिए। फिर उन्होंने ना इच्छा होते हुए भी सारे खरबूजे को तौले और मैंने बाजार दर के अनुसार पैसे दिए।
इस घटना को बीते 02 साल से ऊपर हो गए हैं आज भी प्रत्येक साल जब वो खरबूजे की खेती करते हैं तो मेरे यहां जरूर भिजवाते हैं। खरबूजे को देखकर पुनः खरबूजे के साथ सेल्फी और उस घटना का दृश्य मेरे आंखों के सामने चलने लगता है।
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