शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

बैगा चित्रकला की चित्रकार जोधइया बाई बैगा को मिला पद्मश्री सम्मान।


           अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाली आदिवासी चित्रकार जोधइया बाई बैगा को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। जोधइया बाई बैगा ने विलुप्त होती बैगा चित्रकला को अपने हुनर से वैश्विक पहचान दिलाई है। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले के छोटे से गांव लोढ़ा की 84 वर्षीय जोधइया बैगा की शादी करीब 14 साल की उम्र में ही हो गई थी। जब उसके पति की मृत्यु हो गई तो दो बेटों के पालन पोषण की जिम्मेदारी उन पर आ गई। मजदूरी के जो काम मिलते उसे कर वह बच्चों का पालन करने लगीं। अपने बच्चों को पालने के लिए उन्हें लकड़ी की कटाई करनी पड़ी, पत्थर भी तोड़े और शराब तक बेचनी पड़ी। हालांकि जोधईया बाई को जिंदगी में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पति के निधन के बाद उन्होंने अपने दुख को पीछे छोड़ते हुए जिंदगी में आगे बढ़ने की सोची और लोढ़ा में स्थित जनगण तस्वीर खाना से आदिवासी कला की शुरुआत कर दी। चित्रकारी सीखने के बाद जोधइया ने पहले मिट्टी, फिर कागज, लकड़ी, लौकी और तुरई पर चित्रकारी की। फिर उन्होंने रंगों की मदद से कागज पर विभिन्न तरह की आकृतियां बनानी शुरु की।



         बैगाओं के घरों की दीवारों को सुशोभित करने वाले बड़े देव और बाघासुर की छवियां कम होते देखकर जोधइया बाई ने आधुनिक रंगों से कैनवास और ड्राइंग शीट पर उसी कला को उकेरना शुरू किया। जोधइया बाई का चित्रकारी का सफर एक बार शुरू हुआ, तो नई ऊंचाइयों को छूने लगा। उनके द्वारा बनाई गई पेटिंग राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होने लगीं। इस तरह बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवंत हो उठी। भोपाल में स्थित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी है जिस पर उनके बनाए चित्र लगे हैं। जोधइया बाई की चित्रों के विषय भारतीय पंरपरा में देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव और बाघ पर आधारित हैं और पर्यावरण संरक्षण तथा वन्य जीव के महत्व को भी दिखाया गया है। बैगा जनजाति की संस्कृति पर बनाई उनकी पेंटिंग विदेशियों को खूब पसंद आती है, उनकी प्रदर्शनियां इटली, फ्रांस, इंग्लैण्ड, अमेरिका व जापान आदि देशों में लग चुकी हैं। वे शांति निकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, आदि के कार्यक्रमों में शामिल हुईं और जनजातीय कला के लिए उन्हें कई मंचों से सम्मानित किया गया। आदिवासी समुदाय से निकलकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने वाली जोधइया बाई की जिन्दगी से प्रेरणा मिलती हैं कि अगर आप में जिद्दी हौसले हैं तो आपको कोई भी हरा नहीं सकता है।

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