कला बाजार यानी कि ऐसा बाजार जहां पर कलाकृतियों की खरीद-बिक्री की जाती हो, या जहां कि जाने की संभावना हो। आज के परिदृश्य में वह ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों हो सकता है। वह कलाकृतियां कुछ भी हो सकती है जैसे - काव्य कला, साहित्य कला, चित्रकला, मूर्तिकला, इत्यादि। जैसे बाजार का नियम है कि जो भी वस्तु कम मात्रा में उपलब्ध हो उसका दाम बढ़ जाता है और जिस वस्तु के मांग के अनुरूप उत्पादन ज्यादा हो वह वस्तु सस्ती हो जाती है। कुछ यही नियम हमें कला यानी कि चित्रकला बाजार में भी देखने को प्राप्त होता हैं। जब तक कलाकार जीवित रहे एवं कलाकृतियों का निर्माण करता रहे तब तक उस कलाकार की कलाकृति को उतनी तवज्जो नहीं मिलती जितनी उसके मरने के उपरांत।
Note:- इस लेख में हम विशेष रूप से चित्रकला बाजार के बारे में चर्चा करेंगे।
उदाहरण स्वरूप हम विंसेंट वॉनगॉग की चित्रकला सूरजमुखी के फूल की बात करते हैं।
1889 में वॉनगॉग ने सूरजमुखी के फूल के बारे में कहा था। इनमें से एक भी चित्र 25 पाउंड की भी नहीं बिक सकती। (01 पाउंड की कीमत वर्तमान में लगभग ₹100 हैं) शायद वॉनगॉग अपने सपने या दु:स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे उस दिन से लगभग 100 साल उपरांत सोमवार 30 मार्च 1987 के दिन लंदन में क्रिस्टीज की नीलामी मैं उनके सूरजमुखी श्रृंखला की एक पेंटिंग ढाई करोड़ पाउंड (24,750,000) में बिककर चित्रकला की दुनिया में एक नया रिकॉर्ड कायम करेगी दरअसल इन दिनों पश्चिम में कला की दुनिया में होने वाली नीलामियों में तस्वीरों की नीलामी के आंकड़े कुछ तरह गिनाए जाते हैं जैसे कोई क्रिकेटर के जीवन के रंगों और रिकार्डों की चर्चा हो रही है।
सूरजमुखी की इस कीमत ने सभी तरह से लोगों को आतंकित कर दिया। मंगलवार की सुबह कला दीर्घा के बचे हुए चित्रों के सामने लोगों की भीड़ बढ़ गई और तरह-तरह के अनुमान लगाए जाने लगे कि बाकी चित्रों की कीमत क्या रहने वाली है। अखबारों में तरह-तरह के लेख प्रकाशित हुए एक में लिखा गया कि इस एक चित्र की कीमत तो संग्रहालय की कीमत से भी ज्यादा है। एक ने दिलचस्प आंकड़े दिए की इतने कीमत में तो ब्रिटेन में 15,000 एकड़ जमीन खरीदकर अनगिनत सूरजमुखी के फूल उगाए जा सकते हैं।
सूरजमुखी चित्र 39 x 30 इंच का है और इसमें 15 सूरजमुखी के फूल बने हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि एक फूल की कीमत 1,650,000 पाउंड हुई। यदि हम अर्थशास्त्र की नजर में देखें तो पाते हैं कि कोई भी वस्तु की कीमत उसकी उपलब्धता एवं मांग पर निर्भर करती है ठीक उसी प्रकार वैसा कलाकार जो अभी जीवित ना हो (अधिकतर समय) पहले उसके कला की एवं कलाकार की ब्रांडिंग की जाती है तत्पश्चात किसी महंगे क्रिस्टी जैसे नीलामी घरो से बोली लगाई जाती है और दुनियाभर के धन्नासेठ जब उस कलाकृति को खरीदने के पीछे होड़ लगा देते हैं तब उसकी कीमत अचानक से बढ़ जाती है।
कला बाजार का अपना एक अलग शास्त्र और राजनीति है। एक समय भारत में एम. एफ. हुसैन बहुत चर्चित कलाकार हुए एवं कभी कुछ पैसों में फिल्म के पोस्टर निर्माण करने वाले यह चित्रकार इतनी ज्यादा प्रसिद्धि को प्राप्त कर लिए कि उनके द्वारा निर्मित कलाकृतियां करोड़ों में बिकने लगी। कलाकृतियों के दामो का निर्धारण दर्शको एवं खरीददारों के साथ-साथ कला समीक्षको एवं कलागैलरीयो पर भी निर्भर करता है। तैयब मेहता की पेंटिंग 1.6 करोड़ में बिकने के कुछ ही महीनों के उपरांत हुसैन की एक बहुत ही बड़ी चित्र अमेरिका के अनिवासी भारतीय ने 02 करोड़ में खरीदकर यह बताने की चेष्टा की, की हुसैन के चित्रों की कीमत अभी कम नहीं हुई है। परंतु कला समीक्षकों ने कहा कि प्रति वर्ग के हिसाब से तैयब मेहता ही नंबर 01 हैं। 2004 में मुंबई की एक नीलामी में राजा की एक पेंटिंग 68 लाख में बेच कर प्रति वर्ग इंच के हिसाब से उन्हें भारत का सबसे महान कलाकार साबित करने की कोशिश की गई लेकिन कला के अनेक जानकार प्रति वर्ग इंच के हिसाब को सही नहीं मानते हैं। क्योंकि एक मिनियेचर एक विशाल म्यूरल से भी महान और महंगा हो सकता है।
निष्कर्ष
कला बाजार में कलाकृतियों कि कीमत में सबसे बड़ा सत्य यह है कि जिस कलाकार की कलाकृति बेची या खरीदी जा रही है उस कलाकार का बाजार मूल्य क्या है ? वह कलाकार जीवित है या मृत्यु को प्राप्त हो चुका है ? यानी हम कह सकते हैं कि कला के बाजार में कलाकार की मृत्यु का बहुत ही बड़ा महत्व है एवं कलाकृतियो का महत्व शायद दूसरे पायदान पर है।
Reference :-
बृहद आधुनिक कला कोश संपादक
विनोद भारद्वाज पृष्ठ संख्या 255-267 तक
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