ग़ज़ल
है नहीं काम कठिन इतना भी।
हम तुम्हारे लिए छोड़ देंगे लिखना✍️ भी।।
दलदल-ए-इश्क़💗 में फिसलना तो हैं ही।
आदमी कर ले जतन कितना भी।।
रौनक-ए-ज़िन्दगी👫 है तुमसे मेरी।
है कुबूल हमको तुमपे मिटना भी।।
थी तमन्ना-ए-दीदार पहले मगर।
बंद अब हो गया है दिखना भी।।
जिसका हकदार था मैं।
हासिल हमको हुआ न उतना भी।।
मन मसोस कर रह गया कई बार।
झलावा दिया तुमने इतना भी।।
तुम्हें मौन देखकर चिंता होती है।
था समय जब थे तुम मेरे अपने भी।।
मैं तो ख़ाम-खां परेशान हो रहा हूं।
चला गया जो नहीं था कभी अपना भी।।
विश्वजीत कुमार✍️
तमन्ना-ए-दीदार :- تمنائے دیدار Desire to See
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