मंगलवार, 17 जनवरी 2023

बिहार का रंगमंच (Theater of Bihar) जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी परीक्षा के अंतर्गत बिहार की कला परंपरा।

 बिहार का रंगमंच 
(Theatre of Bihar)





       भारत में स्थित हमारा बिहार राज्य हमेशा से प्रतिभाओं का धनी रहा है। यहां पर एक से बढ़कर एक चित्रकार, नृत्यकार, गायक, वादक जन्म लिए हैं एवं अपनी कला से ना सिर्फ बिहार बल्कि देश दुनिया में भी अपना परचम लहराए हैं। रंगमंच की जब चर्चा की जाती है तो हम पाते हैं कि बिहार में पहले एकाध मंडलिया हुआ करती थी, इनका उद्देश्य केवल लोगों का मनोरंजन करना था। यदि इनके नामों की हम चर्चा करें तो पाते हैं कि विक्टोरिया नाटक मंडली, एलिफिस्टन नाटक मंडली, कर्जन थिएटर, पारसी थिएटर अपने समय में काफी प्रसिद्ध थे।


          बिहार की पहली नाट्य-संस्था की स्थापना केशवराम भट्ट ने 1876 ईसवी में "पटना नाटक मंडली" के नाम से गठित की थी। उन्होंने बिहार बंधु पत्रिका के छापा खाने में बने अस्थाई रंगमंच पर इसी मंडली के द्वारा अपने दो नाटकों शमशाद सौशन और सज्जाद सम्बुल को प्रदर्शित किया था। उसके उपरांत उनके द्वारा और भी कई जगह नाटकों के प्रदर्शन किए गए। 1918-19 में बिहार के भोजपुर जिले के अंतर्गत आरा में जैन नाटक मंडली नामक संस्था का उदय हुआ। उसके उपरांत 1919 में छपरा क्लब और शारदा नाट्य समिति (बीसवीं सदी) नाट्य संस्थाए बनी। इन मंडलियों के गठन और रंगकार्यों के पीछे पारसी कंपनियों द्वारा प्रदर्शित नाटकों का प्रभाव था।


       नाटक के दरमियान बार-बार परिदृश्य बदलने में असुविधा को देखकर घुमावदार मंच बनाया गया। इस संस्था का नाम महालक्ष्मी थियेटर रखा गया था। डॉ० एल.एम. घोष, डॉ० ए. के. सेन और राज किशोर प्रसाद ने 1947 ई. में "पटना इप्टा" नामक संस्थान की स्थापना की। इसके उपरांत अनिल मुखर्जी ने इसकी स्थापना 09 अक्टूबर 1974 को बिहार आर्ट थिएटर एवं कालिदास रंगालय (प्रेक्षागृह) का निर्माण किया।


       पटना में वर्तमान में दो महत्वपूर्ण रंगशालाएं हैं-

  1.  कालिदास रंगालय
  2. प्रेमचंद रंगशाला


      इसके साथ ही साथ भारतीय नृत्य कला मंदिर एवं रविंद्र भवन में भी नाटक के मंचन का आयोजन होते रहता है।


बिहार के लोकनाट्य


       बिहार के सांस्कृतिक तथा लोक जीवन में लोकनाट्य का भी एक अपना ही अलग महत्व है। यह लोकनाट्य मांगलिक अवसरों, विशेष पर्वो तथा कभी-कभी मात्र मनोरंजन की दृष्टि से ही आयोजित एवं प्रायोजित किए जाते हैं। इस लोकनाट्य में कथानक, संवाद, अभिनव, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य आदि कुछ होता है। यदि कुछ नहीं होता है तो वह है, सुसज्जित रंगमंच तथा पात्रों का मेकअप एवं वेशभूषा।


       बिहार में प्रचलित लोक नाट्य निम्न हैं -


  1. जट-जाटिन 
  2. सामा-चकेवा 
  3. विदेशिया 
  4. डोककक्ष 
  5. कीर्तनिया (कीरतनिया)


Reference :-


http://daayari.blogspot.com/2015/07/blog-post.html?m=1


https://rangwimarsh.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A


https://biography.sabdekho.in/dramatics-in-bihar/


https://m.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%AF

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