मंगलवार, 17 जनवरी 2023

बिहार में सिनेमा का इतिहास (History of cinema in Bihar) कला का इतिहास एवं बिहार की कला परंपरा।


बिहार में सिनेमा का इतिहास 
(History of cinema in Bihar) 


           बिहार का सिनेमा संसार अपने रंगमंचीय समृद्धि के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध रहा है कला जगत के दृष्टिकोण से देखने पर हम पाते हैं कि सिनेमा के विभिन्न क्षेत्रों जैसे - निर्माण, निर्देशन, अभिनव, गीत-संगीत, पटकथा एवं संपादन में बिहार के कलाकारों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है यदि हम भोजपुरी एवं मैथिली फिल्मों की बात करें तो पाते हैं कि इसमें बिहार का सर्वोपरि योगदान रहा है फिल्मों के साथ इसके रिश्ते की शुरुआत 1930-31 से मानी जाती है जब 14 मार्च 1931 ईस्वी को मुंबई में पहली बोलती फिल्म आलम-आरा का प्रदर्शन हुआ और उसके ठीक 02 साल बाद 1933 ईस्वी में रांची (झारखंड) के एक सिनेमा हॉल में जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर जोकि औरंगाबाद के महाराज थे, उनके द्वारा निर्मित फिल्म "पुनर्जन्म" का प्रदर्शन हुआ उसके उपरांत उन्होंने अगली फिल्म का निर्देशन किया जो कि देव की छठ पूजा पर केंद्रित था यह फिल्म केवल 32 दिनों में ही तैयार कर ली गई थी इस फिल्म का लेखन, निर्माण एवं निर्देशन सभी महत्वपूर्ण कार्य महाराजा के द्वारा ही संपन्न किए गए थे इस फिल्म के सभी कलाकार बिहार के ही थे केवल एक टेक्नीशियन ब्रूनो थे, जो कि जर्मन के थे। आज 2023 में फिल्म को निर्माण हुए 90 साल हो गए हैं हम यह गर्व के साथ कह सकते हैं कि बिहार के सिनेमा का इतिहास 90 साल पुराना है इस फिल्म का पूरा स्टूडियो सेटअप महाराजा के महल में ही स्थापित किया गया था और संपादन की प्रक्रिया भी यही संपन्न हुई थी


          साल 1934, इसे हम बिहार का दुर्भाग्य ही कह सकते हैं क्योंकि बिहार में आए प्रलयकारी भूकंप ने स्टूडियो के सभी मूल्यवान वस्तुएं नष्ट कर दिए और वजह जो भी रहा हो उसी वर्ष महाराज की भी मृत्यु हो गई महाराजा की मृत्यु के साथ ही बिहार में फिल्म निर्माण की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई इसके उपरांत बिहार के कई निर्माताओ एवं निर्देशकों के द्वारा कई सारी भोजपुरी एवं मैथिली भाषा की फिल्मों का निर्माण किया गया लेकिन उसके संपादन की प्रक्रिया महाराजा के महल के उपरांत दोबारा शुरू नहीं हो सकी अधिकतर फिल्मों के संपादन का कार्य मुंबई के किसी-न-किसी स्टूडियो में होते रहे महाराजा की मृत्यु के उपरांत लगभग 03 दशकों तक बिहार में फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में सूनापन बना रहा


          इन सभी के उपरांत भोजपुरी फिल्मों का एक नया दौर शुरू होता है जिसमें हमें "गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो", "लागी नाही छूटे राम" जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ इसके उपरांत "बिदेसिया", "हमारा संसार" जैसी फिल्मों ने भी प्रसिद्धि पाई लेकिन गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो जैसी सफलता इन्हें ना मिल पाई और ना ही आज तक किसी भोजपुरी फिल्म को प्राप्त हो पाई है भोजपुरी फिल्म निर्माण के दूसरे दौर में अशोक कुमार जैन एवं मुक्ति नारायण पाठक ने अनेकों फिल्मों का निर्माण किया उस दौर में हमें "गंगा किनारे मोरा गांव", "दूल्हा गंगा पार के", "बिहारी बाबू", इत्यादि भोजपुरी फिल्मों का निर्माण हुआ था अभिनेता कृणाल उस समय के भोजपुरी फिल्म के सुपरस्टार थे। 


       भोजपुरी फिल्म के वर्तमान दौर में अभिनेता रवि किशन एवं मनोज तिवारी ने अभूतपूर्व योगदान भोजपुरी सिनेमा को दिया है। अभी तक 500 से अधिक भोजपुरी फिल्म का निर्माण हो चुका है बिहार में भोजपुरी एवं हिन्दी के साथ-साथ मैथिली भाषा में भी फिल्मों का निर्माण हुआ है, जिसमें गिरीश रंजन के द्वारा निर्मित फिल्म है - "मोर मन मितवा" 


           बिहार ने सिनेमा संसार में विभिन्न क्षेत्रों में समृद्धि एवं स्थिरता दिलाई है अभिनय के क्षेत्र में रामायण तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा, प्यारे मोहन सहाय, शेखर सुमन, कृणाल , मनोज बाजपेई, मनोज तिवारी, रवि किशन, इत्यादिकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सभी कलाकार एक ऐसे अध्याय का निर्माण किए हैं जिसके अभाव में भारतीय सिनेमा अपंग हो जाएगा


          संगीतकार के क्षेत्र में चित्रगुप्त एवं श्याम सागर का नाम तो प्रसिद्ध है ही साथ ही फिल्म निर्माण निर्देशन में प्रकाश झा सर्वोपरि है इनके द्वारा निर्देशित फिल्म है - हिप हिप हुरे, मृत्युदंड, गंगाजल, अपहरण, राजनीति, आरक्षण, जय गंगाजल, इत्यादि फिल्मों के द्वारा हिंदी सिनेमा संसार में अभूतपूर्व कला का प्रदर्शन इन्होने दिखाया है पार्श्व गायक कि यदि हम चर्चा करें तो पाते हैं कि मोहम्मद रफी, मुकेश एवं किशोर कुमार के बाद हिंदी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ प्रसिद्धि उदित नारायण जी का आ रहा है बिहार के मिथिला परीक्षेत्र से आने वाले उदित नारायण झा ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति पाई है


          किसी भी फिल्म में संपादन का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है लेकिन संपादन करने वाले की प्रसिद्धी नहीं हो पाती यही कारण है कि बिहार के मोतिहारी क्षेत्र से आने वाले श्रीधर मिश्रा हिंदी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ संपादक रहे लेकिन प्रसिद्धि को प्राप्त नहीं कर सके सुपर हिट हिंदी फिल्म "कृष" के गीत "दिल ना दिया" के रचनाकार बिहार के युवा कवि विजय कुमार 'अकेला' है। लेकिन प्रसिद्धि के मामले में शायद इनको भी उतनी पहचान नहीं मिल पाई है।


          निर्माण, निर्देशन, अभिनय, पटकथा, लेखन, संगीत, गीत एवं संपादन आदि के हर क्षेत्रों में इतनी महत्वपूर्ण प्रतिभाओं के भंडार होने के बाद भी, इस राज्य में सिनेमा एवं दर्शक के होते हुए भी हम क्यों फ़िल्मों के संपादन  के लिये मुंबई की ओर आस लगाए बैठे है ??? यह सोचने वाली बात है। 

धन्यवाद🙏



 Reference :-


https://en.wikipedia.org/wiki/Cinema_of_Bihar


https://www.hmoob.in/wiki/Bihari_Cinema


http://www.homeloandelhi.com/magadhbhoomi.com/bihar-men-hindi-cinema-ke-janak.html


https://www.ecitutorial.com/bihar-ka-cinema-sansar-class-9-hindi/


https://biography.sabdekho.in/cinema-world-of-bihar/


https://youtube.com/watch?v=8bMfx6j2thQ&feature=shares


https://www.ekbiharisabparbhari.com/bihar-film/



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें