कला एक रचनात्मक, क्रियात्मक एवं मनोरंजक विषय है। इसमें मनोरंजक तरीके से हम किसी भी सीखने की प्रक्रिया को सृजनात्मक रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। एक सफल कलाकार/कला शिक्षक भाषण अथवा प्रवचन देने के बदले अपनी कला के प्रदर्शन के द्वारा किसी भी समस्या का समाधान ढूंढ सकता है, लेकिन समय के साथ-साथ कला का उद्देश्य भी परिवर्तित होते गया और कला में पारंपरिक बाध्यतायें ना रहकर स्वतंत्र अभिव्यक्ति का आगमन हो गया। आज कला के ऊपर कई सारी चुनौतियां आ पड़ी है। उसमें यदि सबसे महत्वपूर्ण जो है वह है कला जगत में तकनीकों (Techniques) का आगमन। आज प्रत्येक कलाकार की अपनी एक अलग तकनीक एवं शैली है। यह कोई निरर्थक बात नहीं है, होनी भी नही चाहिए। लेकिन हमें अपनी कला धरोहरों का भी साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
आज कला का व्यवसायीकरण बहुत अधिक बढ़ गया है। इसे हम कुछ हद तक अच्छा मान सकते हैं लेकिन पूर्णत: नहीं क्योंकि व्यवसायीकरण के साथ-साथ एक और पहलू जुड़ा हुआ होता है और वह है राजनीतिकरण (Politicization). आज कला प्रशिक्षु हो या कला का ज्ञाता हर कोई इस परिवेश में फंसा हुआ है।
कला के द्वारा मनुष्य अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है। वह चित्रकला, नाट्य कला, संगीत कला, इत्यादि। के माध्यम से जन-जन की आवाज को सभी के समक्ष प्रस्तुत करता है और कई बार उन्हें जागरूक करने का कार्य भी इसके द्वारा संपन्न किया जाता है। एक कलाकार के द्वारा जब किसी कलाकृति का सृजन किया जाता है तब वह ना केवल उस पीड़ा या खुशी को अनुभव करता है बल्कि वह यह भी प्रयासरत रहता है कि जब दर्शकों के बीच यह कलाकृति पहुंचे तब वह भी उसमे उतनी ही गहराई पीड़ा एवं खुशी को अनुभव करें जिसे बनाते वक्त एक कलाकार के द्वारा अनुभव किया गया था। यदि ऐसा करने में वह सफल होता है तो निश्चित ही वह कलाकृति "कल्याणकारी सृजन" (welfare creation) के रूप में विकसित होती है अन्यथा ऐसे निर्माण का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
समाधान
यदि हम इसके निवारण की ओर चर्चा करें तो हम पाते हैं कि कला को शिक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो इसके समाधान हो सकते हैं। हम अपने कला शिक्षकों एवं छात्रों को जो कला का अध्ययन कर रहे हैं उन्हें रचनात्मकता के साथ-साथ तकनीकी ज्ञान भी दिया जाए ताकि वह अपने सृजन में दोनों प्रतिभाओं का प्रयोग कर सकें। हमारे समक्ष एक विस्तृत संसार हमारा देश, प्रदेश, रीति-रिवाज, समाज जैसे अनेकों विषय वस्तु है, जिसे हम देखें अनुभव करें तथा सृजनशील बने तभी हम एक बेहतर कलाकार की परिकल्पना कर सकते हैं। हम यहां चर्चा करना चाहेंगे भारत के सुप्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन जी का जिन्होंने कहीं से भी विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया लेकिन उन्हें "भारत का पिकासो" की संज्ञा दी गई है। हम स्वयं को कला के प्रति जागरूक कर एवं दूसरे को प्रेरित कर बहुत हद तक इस समस्या का निदान पा सकते हैं।
निष्कर्ष
कला विषयक चुनौतियों के दृष्टिकोण से यदि भारत की बात की जाए तो यहां की कला परंपरा राज्यश्रय या लोक जीवन में हमेशा से फली-फूली और वहीं इसके संरक्षक भी रहे। कई बार उनके संरक्षण के अभाव में कलाकार विस्थापित होकर दूसरे राज्य में चले जाते हैं और वहां फिर नई शैली का जन्म होता है। वर्तमान परिदृश्य में भी स्थिति में बहुत कुछ सुधार नहीं है। कलाकार अपनी सुविधा एवं परिस्थिति के अनुसार कला का सृजन कर रहे हैं और हमें ऐसा प्रतीत होता है कि कला विषयक चुनौतियां (Artistic Challenges) के समाधान में यह सबसे बड़ी बाधा है।
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Reference :-
https://singhh63.blogspot.com/2017/12/blog-post.html
कला शिक्षा : स्वरूप एवं चुनौतियां, डॉक्टर अर्चना रानी पेज नंबर 201 से 208 तक।
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