मुझे याद है भारतीय रेल के जनरल बोगी की वो तमाम यात्राएं जिसमे थोड़ी सी जगह बनाने के लिए, वहां बैठे लोगों से हमेशा हेल्दी ग्रुप डिस्कशन करना पड़ता था, उनको इंप्रेस करना पड़ता था, इतना इंप्रेस तो आज तक किसी लड़की को नहीं किये जितना कि कई बार सिर्फ थोड़ी-सी जगह के लिए वहां बैठे लोगों से कर लिये थे। यदि उसमे से थोड़ा भी इंप्रेस किसी ख़ूबसूरत बला👩🦰 को किए रहते तो आज तक शायद सिंगल नही रहते। ख़ैर!!! आपने विषय पर लौटते हैं। हम चर्चा कर रहे थे जनरल बोगी में सीट लेने की, कई बार तो सीट पर बैठे लोगों को भैया, चाचा, सर🙏 सब बोलकर रिश्ता बनाना पड़ता था, तब जाकर लोग कबूल करते थे और थोड़ी सी जगह मिलती थी बैठने की। हालांकि, उस थोड़ी सी जगह को देखकर मेरी तशरीफ भी घबरा जाती थी क्योंकि ट्रेन जब थोड़ी सी भी हिलती थी तो अक्सर मेरी तशरीफ फिसल कर सीट से नीचे उतर जाती थी ।
जेनरल बोगी की इन तमाम यात्राओं में एक दिन गुस्से में हम एक खतरनाक UP/बिहारी मजदूर से भयंकर झगड़ा हो गया, वो भी जगह बनाने को लेकर। वो जो मजदूर था ना वो मुंबई से लौट रहा था, कमाकर। मुझे तो एक बार ऐसा लगा की उसने अपनी पूरी कमाई के पैसा से बहुत सारा सामान खरीद लिया था और वो सब वहीं सीट के नीचे ऊपर लोड कर दिया था। जब उससे मेरी सीट को लेकर बहस हो रही थी तब उसने मेरी ओर गौर से देखा और उसे यकीन हो गया कि हम फुल फ्रस्टेट बेरोजगार हैं।
हम बस इतना बोले कि भाई साहब, सामान का लगेज बुकिंग करवाना चाहिए ना!!! यहां क्यों भर दिए हो। आने-जाने एवं बैठने में परेशानी हो रही है। मेरा इतना बोलते ही वह और भड़क😠 गया और बोला -
"तोर पैसा से खरीदे हैं का रे.....??? कि एतना समझा रहा है हमको!!! बहुते बैठ के, अफसर बने के शौक है न, तो रिजर्वेशन कराके स्लीपर में काहें नहीं जाता है रे....
चला हैं, यहां अंग्रेजी झाड़ने। हमको अनपढ़ समझा है का रे़...."
वो और चार्ज होने लगा और उसको देखकर बाकी उसके साथी मजदूर भी जोश में आने लगे, इसलिए माहौल अनुकूल ना देखते हुए हम जल्दी से आगे बढ़ गए।
आपको लग रहा होगा कि बात आई गई हो गई लेकिन सच बताएं, वो स्लीपर वाली बात हमको लग गई, बेरोजगार जो थे। बेरोजगारों को कोई भी बात उतनी ही जल्दी खराब लगती है जितनी जल्दी नई बहू को सास की बात।
उसके बाद हम भी निर्णय कर लिए कि अब और बेइज्जती नहीं करवाएंगे, जाएंगे अब हम भी स्लीपर से ही और वो भी बकायदे रिजर्वेशन कराके। जब टिकट काउंटर पर टिकट लेने गए तब वहां बैठे रेलवे के कर्मचारी ने फॉर्म दिया। नाम था उसका - रिजर्वेशन फॉर्म। परीक्षा का फॉर्म तो हमेशा भरते थे पर उस दिन टिकट कटने वाला एक फॉर्म भरे, मजा आ गया देखकर। बढ़िया सुंदर राइटिंग बना-बना कर फॉर्म भरके जमा किए। टिकट काटने वाले कर्मचारी ने कंप्यूटर में पता नहीं क्या-क्या टाइप किया और मेरी ओर देख कर कुछ बोले- उनके द्वारा बोले गए पहले दो चार शब्द तो हम समझ नहीं पाए बस इतना समझे कि वह पूछ रहे हैं टिकट काट दे ? मैंने जैसे सुना - टिकट काट दे ? मुझे लगा कि जब फार्म भरकर उनको दे ही दिये हैं तब पूछ क्यों रहे हैं ? मैंने पूछा - सीट है ना!!! , क्योंकि मैंने सुना था कि कई बार रिजर्वेशन में सीट नहीं मिलता हैं। तब वो बोले कि सीट तो मिल जाए लेकिन..... उनकी बात पूरी होती उससे पहले ही हम चहकते हुए बोलो - टिकट काट दीजिये। एक बार वो मेरी तरफ़ घुर कर देखे और टिकट प्रिंट होने के लिए दे दिया। आखिरकार टिकट करवा ही लिए थे, स्लीपर का। टिकट बढ़िया प्रिंट हुआ, कागज़ पर। खच-खच करने वाले प्रिंटर से। और जब हम उसको देखे, तो उसपर लिखा हुआ था, RAC 26 । इतना तो पढ़े थे ही हम। समझ गए कि स्लीपर में एक्चुअली रैक जैसा बना रहता है, उसी में आदमी सब सोता है, उसी को RAC (रैक) कह रहा है और हमारा छब्बीस नंबर का रैक है ।
अगले दिन सुबह 06 बजे ट्रेन थी मेरी। रिज़र्वेशन करा लेने से टेंशन हो गया था क्योंकि हम जो जूता पहन कर जाते थे, वो कई दिनो से अपने सोल से जुदा होने लगा था, इसलिए एक मोची से सिलवा दिए थे। सही में देखने में अच्छा नहीं लग रहा था। कहीं स्लीपर बोगी में बड़े बड़े लोग आएंगे वो हमको गरीब टाइप ना समझें इसलिए हम जल्दी से बढ़िया कंपनी का एकदम नया चमड़ा टाइप वाला स्लीपर 600 रुपया में, बार्गेनिंग कराके ले लिए, एक पास के दुकान से। स्लीपर में रेडियम💎 लगा था जो रात में चमकता था ।
रिजर्वेशन कराए थे तो ससुरा रात भर नींद😴 भी नहीं आई। ऐसा लग रहा था कि कहीं सोए ना रह जाएं और ट्रेन निकल जाए, कहीं अलार्म धोखा ना दे दे। पर फिर भी, आंखें भले ही लाल😳 हो गईं थी मेरी नहीं सोने से, पर उत्साह दस गुना था हो भी क्यों ना!!! रिजर्वेशन जो था स्लीपर में।
सुबह होते ही पहुंच गए स्टेशन, मस्त नहा-धोकर, नया शर्ट-पैंट और स्लीपर पहनकर। ट्रेन आई तो घुस गए हम सामने वाली बोगी में और 26 नंबर के सीट पर आ गए। उसपर एक लड़की सो रही थी। हुलिया ऐसा बना हुआ था उसका जैसे बारात में दम भर नाचने के बाद सीधे आकर सो गई हो। अलग टाइप का खर्राटा भी ले रही थी।
15 मिनट छोड़ दिए कि जाने दो, लड़की है। सो लेगी थोड़ा देर, फिर उठा देंगे। विवेकानंद से सीखे थे कि लड़की औरत का इज्जत करना चाहिए, इसलिए किए। थोड़ी देर बार उसको उठाए तो नींद में कह रही है कि "कौन हो, जाओ यहां से, ये मेरी सीट है, क्यों डिस्टर्ब कर रहे हो और सो गई "।
हम उसको बताए कि मेरी है ये सीट, मैने रिजर्वेशन कराया है। तभी एक ठो लौंडा जो उसकी हवा से उड़ती हुई जुल्फों को देखकर बहुत देर से आशिकी फ़िल्म का गाना "बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए" गाते हुए टाइम पास कर रहा था। हम को देखते हुए बोला कि -
"ढेर अंग्रेजी बोल रहा है तुम। लड़की देख के यहां नाटक कर रहा है, आए हो यहां तुम लौंडियाबाजी करने।"
हम भी जोश में आ गए और उसको अपना टिकट दिखाए तो हंस के कहता है अनपढ़े हैं का रे, RAC टिकट में सुत के जाएगा। हमको समझ में नही आ रहा था कि वह कहना क्या चाहता हैं ??? उससे हम बहस कर ही रहे थे कि तभी टीटी महोदय आ गये मैंने उनको बताया कि मेरी सीट पर लड़की सो रही है और जब कहां तो ये भाई साहब हमसे झगड़ रहे हैं। तब टीटी ने मेरा टिकट लिया और अपने पास स्थित एक बड़े से लिस्ट में मिलान किया और कहां - भाई साहब, कौन कॉलेज में पढ़ते हैं ? S-12 में 07 नंबर का सीट है आपका। सीधे जाइए ये S-2 है। हम चल तो दिए पर अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की रेलवे पागल है क्या, जब सीट नंबर अलग है तो हमको 26 नंबर काहे लिख के दिया।
खैर!!! कई डब्बों को पर करते हुए और लोगों से पूछते हुए अपने सीट पर आ गए। वहां साला अलग ही गांजा हो रखा था। सेम सीट नंबर का उसका भी टिकट था जो मेरे सीट पर बैठा था। हम सोचे कि साला ऊ मजदूरवा के फेर में आज दर-दर का ठोकर खा रहे हैं। मन कर रहा था कि मिल जाता ससुरा तो उसका नरेटी दबा देते।
एक घंटा तक बैठ नहीं पाए थे आराम से, और नींद भी आ रही थी और उपर से मेरे सीट पर तीन लोग बैठा हुआ था। अभी सोच ही रहे थे कि वहां बैठा एक आदमी मुस्कुराकर बोला कि -
"अरे, काहे परेशान हो रहे हैं जी, आइए बैठिए, सबको चलना है एडजस्ट करके चला जाए"।
मानना पड़ेगा उस आदमी को। मेरे ही सीट पर हमको एडजस्ट कर दिया। सीट पर बैठे-बैठे उसने मुझे समझाया की RAC का मतलब क्या होता है। आप भी पढ़िए उसी की जुबानी।
"RAC यानी कि एक दुल्हन जिसका दो दूल्हा होता है, दोनो दूल्हा अपनी दुल्हन पर अधिकार दिखाने का कोशिश करता है पर दुल्हन अंत तक उन दोनों में से किसी की नहीं होती"
हम भी RAC की कहानी सुन हताश होकर चुप-चाप एडजस्ट हो गए और अब आने लगी हमको नींद, रात भर जो सोए नहीं थे। ऊपर की सीट में गिद्ध जैसा गर्दन निकाल कर बैठा था एक आदमी जो झांक रहा था तब से। हमसे कहता है कि नींद आ रही है का ? तो आइए सो जाइए थोड़ी देर ऊपर, हम नीचे बैठ जाते हैं। उस दयालु आदमी को दंडवत प्रणाम🙏 करने का मन किया।
हम जल्दी से चप्पल खोल कर ऊपर जाकर सो गए। करीब दो घंटे बाद नींद खुली तो लोग कम हो गए थे। मैं नीचे उतरा, की चलो थोड़ा नजारा देखा जाए, चाय-वाय☕ पिया जाए। उतरने के बाद अपना नया वाला चप्पल खोजने लगे, दिख ही नहीं रहा था। तभी एक आदमी जो खिड़की के पास बैठकर झाल-मूढ़ी खा रहा था, पूछा कि - का खोज रहे हैं भाई जी ? हम बोले कि "यार, मेरा स्लीपर नहीं मिल रहा" ? पूछा की कैसा था। हम बताए कि "यार, नया था, रेडियम लगा था उसमे" । वो हंसकर बोला कि
"भाई जी, गया
मैंने कहां - गया, मतलब!!
तब वह मुस्कुराते हुए बोला - गया, स्टेशन अभी क्रॉस हुआ है, आपका स्लीपर गया।
स्लीपर (Sleeper) बोगी में सबसे पहले आपको स्लीपर (Slipper) का ध्यान रखना चाहिए, इसलिए देखिए, हम बैठे हैं नीचे, लेकिन स्लीपर है मेरा पंखा के ऊपर" ।
हम ऊपर देख रहे थे उसका स्लीपर (Slipper) वो हमको देखकर मुस्कुरा😊 रहा था और हम सोच रहे थे कि मेरा जनरल बोगी ही अच्छा था। कहां फंस गए इस स्लीपर के चक्कर में.......
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