बुधवार, 24 अगस्त 2022

दूल्हा बिकाऊ है। The groom is for sale.



       दूल्हा बिकाऊ है नाटक आज के परिदृश्य को ध्यान में रखकर लिखी गई है जिसमें हम यह दिखाने का प्रयत्न करेंगे कि कैसे दहेज के नाम पर हम अपने बेटों को बाजार में बेच रहे हैं। यदि लड़की पक्ष वाले उसे एक वस्तु समझ कर घर ले जाने की चेष्टा करने लगे तब क्या होगा ??? कुछ इसी ताने-बाने पर केंद्रित है हमारा आज का नाटक तो चलिए शुरू करते हैं।


पहला दृश्य


      बाजार पूरी तरह से सजा हुआ है और कई सारे लोग छोटी-छोटी टोकड़ियों में सब्जी बेच रहे हैं। एक सब्जी वाली से दूसरी सब्जी वाली में प्रतियोगिता चल रही है। जैसे कोई कह रहा है आलू ₹5 किलो ₹5 किलो तो दूसरी कह रही है आलू ₹5 में सवा किलो ठीक उसी प्रकार कहीं दूर हमें कोबी के भाव पता चल रहे हैं तो कहीं हरी मिर्च सब्जी के साथ फ्री दी जा रही है। उसी परिदृश्य में पूरा बाजार सजा हुआ है और लोग खरीदारी कर रहे हैं तभी अचानक एक सूट-बूट पहना हुआ व्यक्ति वहां आ आता है और सभी को एकदम से धमकाते हुए कहता है -


सूट-बूट पहना व्यक्ति - आरे!!! ओ..... मुनियां, रानुवां, विनोदवा हटाओ आपन-आपन टोकरी सब यहां से.....


मुनियां - का हुआ साहेब ? काहे हमनी के इहां से हटा रहे हैं।


सूट-बूट पहना व्यक्ति - तोहनी के नईखे मालूम का !!! आज इहां पर एगो बाज़ार लागी।


रानुवां - कौन सा बाजार साहेब ?


सूट-बूट पहना व्यक्ति - दूल्हा बाजार!!! गरूम मार्केट!!!


दुसरा दृश्य

     दूल्हा बाजार पूरी तरह से सज चुका है सामने कुर्सी पर कुछ दूल्हे टाइप लड़के बैठे हैं। सभी के गले में एक तख्ती है जिसपर उनका पद एवं उनका मूल्य लिखा हुआ है। 

जैसे :- प्राइवेट मास्टर - 05 लाख, रेलवे ग्रुप डी - 08 लाख, सरकारी मास्टर - 10 लाख, इंजीनियर - 15 लाख, डॉक्टर - 20 लाख।

      

       सूट-बूट पहना व्यक्ति सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहता है - इस मेले में पधारे हुए सभी भाइयों एवं उनकी प्यारी बहनों को मैं खर-पतवार सिंह सभी का इस दूल्हा बाजार जिसे अंग्रेजी में गरूम मार्केट कहते हैं में हार्दिक स्वागत🙏 करता हूं। जैसा कि आप सभी देख रहे हैं इस बाज़ार का सबसे मुख्य आकर्षण हमारे पास है तो चलिए हम इनका परिचय कराने से पूर्व एक कुछ पंक्तियां कहना चाहता हूं।


दूल्हों का बाजार लगा है आके दाम लगाओ, 

करो खर्च खज़ाना इनपे अपने मन का पाओ। 

खर्च हुआ बचपन से अबतक खाता-बही पड़ी है, 

देखो उसको जोड़-जाड़ के ज़ेबा दाम लगाओ ।। 


     इतना बोल कर वह सबसे पहले माइक उस प्राइवेट मास्टर के पास ले जाता है जो एकदम किनारे बैठा होता है।


      प्राइवेट मास्टर जिसकी कीमत 05 लाख रुपये हैं अपनी तख़्ती को ठीक करते हुए उठता है और बोलता है - नमस्कार🙏 मेरा नाम बहादुर महतो है और मैं प्राइवेट मास्टर हूं। इतना बोल वह अपना माइक अपने बगल में बैठे दूल्हे को दे देता है वह माइक लेकर बोलता है कि मैं रेलवे में जॉब करता हूं मेरा नाम खुराफात यादव हैं। इसके बाद माइक सरकारी मास्टर जी के पास आती हैं। वह माइक लेते ही सबसे पहले बोलते हैं आप सभी उपस्थित महात्माओं को चरण स्पर्श मेरा नाम सुरेश कुशवाहा है और मैं सरकारी शिक्षक हूँ। माइक जब इंजीनियर साहेब के पास जाती है तो सबसे पहले वो उसको लेकर दो-चार बार देखते हैं जैसे कि मानो कुछ उसमें कमी निकाल रहे हो। फिर थोड़ी धीमी आवाज में बोलते हैं हमें लग रहा है कि कुछ आवाज में गड़बड़ी है। थोड़ा इसका आवाज़ बढ़ाओ जी। फिर बोलते हैं मैं इंजीनियर हूं और मेरा नाम विनोद हैं जोकि आजकल सब कुछ देख रहा है। अंत में माइक डॉक्टर साहब के पास आती है वो अपना परिचय कुछ यूं देते हैं -

इस दुनिया मे पता नही चलता है, 
किसी का करैक्टर,

आज भी लोगो के लिए, 
दुसरे खुदा है डॉक्टर।

    नमस्कार, प्रणाम, सलाम मेरा नाम है डॉक्टर मशहूर खान।

       जब सभी का परिचय हो जाता है तो एक बार फिर वही सूट-बूट पहना व्यक्ति माइक लेता है और सभी को आमंत्रित करते हुए कहता है कि - आप सभी अपने-अपने आसान से उठिये और एक बार आकर इन दूल्हे को देखिए।

    लोगो के आने से पूर्व 02 लोग मंच पर आते है और सूट-बूट पहने व्यकित से माइक ले लेते हैं औऱ कहना शुरू करते हैं- हम हैं लड़के के पापा जी हमारे तरफ से प्रस्तुत है कुछ शायरी -

लड़का कौवा जैसा तो क्या लड़की होगी गोरी, 

चाहे जितना जोर लगा लो रकम न होगी थोड़ी । 

मामूली ये बात नहीं है इसको जन्म दिया है, 

पाल-पोश के बड़ा किया है नहीं किया है चोरी ।। 

      उसकी शायरी पूरी होती उससे पूर्व दूसरा व्यक्ति माइक लेता है और कहना शुरू करता है -


उम्मीद बाँध के छोटपन से इसको मन से पाला, 

यहाँ तक पहुँचाने में इसको निकल गया मेरा दीवाला। 

इसके लालन - पालन में न की है कोई कटौती, 

जो भी उसने हमसे माँगा कभी न उसको टाला ॥ 

       तब तक स्टेज पर कई सारे लोगों का आगमन होता है और वो सभी दूल्हे को देखने लगते हैं कोई उनकी कान को निहारता हैं तो कोई नाक को देखता है। कोई-कोई तो सर पर कितने बाल बच्चे उसकी गणना करता है। कुछ लोग तो बस उनके तख़्ती को पढ़कर और मूल्य को देखकर आगे निकल जाते है इस तरह पूरा दिन निकल जाता है और किसी को कोई खरीद नहीं पाता।


तीसरा दृश्य


      कल की तरह आज भी दूल्हा बाजार सज चुका है लेकिन कल की तरह आज भीड़ दिखाई नहीं दे रही है। हमें मंच पर वही कल वाले दूल्हे कुछ उदास दिखाई दे रहे है। तभी मंच पर एक औरत अपनी बच्ची को लेकर एक भारी-भरकम बैग के साथ आती है और क्रमवार सभी दूल्हों का मुआवना करती है। जैसे ही वह प्राइवेट मास्टर के पास जाती है तभी उसकी बेटी बोल उठती है मम्मी-मम्मी हमें इसे नही खरीदना। प्राइवेट नौकरी का कुछ भरोसा नहीं होता है कब बाहर निकाल दे। उसके बाद वह दूसरे दूल्हे की तरफ बढ़ी। उसे देखते ही नाक भौ सिकुड़ते हुए बोली - हम्म!!!  ग्रुप-D नहीं चलेगा। सरकारी मास्टर और इंजीनियर का तो बस तख़्ती देख कर के आगे निकल गई लेकिन उससे कदम डॉक्टर के पास जाकर रुक गए। एकदम से चहकते हुए बोली - मम्मी मम्मी सबसे ज्यादा अच्छा तो ये हैं। डॉक्टर का क्या है एकदम बिंदास जिन्दगी हैं। वैसे भी एक बार इन्वेस्टमेंट है फिर लाइफ टाइम रिटर्निंग इससे ज्यादा कहीं नहीं मिल सकता। अरे इसके तो बुढ़े हो जाने पर भी पैसे मिलते रहेंगे। हाथ से भले ही कुछ लिख ना पाए लेकिन दवा दुकान वाले उसपर भी दवा दे देंगे। अभी कल की ही तो बात है शर्मा जी एक कागज पर यह चेक कर रहे थे कि कलम सही से काम कर रहा है या नहीं और गलती से वही कागज मरीज लेकर चला गया और जानती हो दवा दुकान वालों ने यह सोच कर उसको दवा भी दे दिया कि डॉक्टर साहब भेजे हैं तो कोई दवा का ही नाम होगा। अरे!!! मम्मी इसके द्वारा लिखे दवा में भी कमीशन मिलेगा। इतना ज्यादा फायदा और किसी दूल्हे में नहीं। तुम अभी खरीद लो इसे क्या पता कल को इसके फायदे को देखकर इसका मुल्य और बढ़ जाये।


            उसके उपरांत वो सूट-बूट पहने व्यक्ति को बुलाती है और रुपये से भरा बैग देकर कहती है अब यह डॉक्टर मेरा हुआ और उसका हाथ पकड़ कर अपने घर को लेकर चलना शुरू ही करती है तभी मंच पर एक छोटी लड़की का आगमन होता हैं और वह दौड़कर उस डॉक्टर का दूसरा हाथ पकड़ लेती है क्योंकि पहला हाथ उस लड़की ने पकड़ रखा था जो कि उसे खरीद कर ले जा रही थी।

अरे!!! रुको । रुको । मेरे भैया को कहां लेकर जा रही हो ??


      मैंने इसे पूरे 20 लाख में खरीद लिया है अब यह मेरा हुआ हम इसे जहां चाहे वहां लेकर जाएं। फिर वह सामने दर्शकों की ओर मुड़कर प्रश्न पूछने के अंदाज में कहती है। अच्छा आप लोग बताइए यदि कोई बाजार से आप वस्तु खरीदते हैं तो क्या आप उसे अपने घर लेकर जाते हैं ना ?

दर्शक - हां

तो फिर इसे हम लेकर क्यों नहीं जा सकते हैं जबकि हमने इसे 20 लाख में खरीदा है।

      डॉक्टर जिसका एक हाथ उस लड़की ने पकड़ रखा था जिसे उसने खरीदा था और दूसरा हाथ उसकी छोटी बहन ने पकड़ रखा था। दोनों में खींचातानी होने लगती है। तभी डॉक्टर झटके से अपना हाथ दोनों से छुड़ाता है और एकदम गुस्से में बोलता है - 

चुप रहो तुम दोनों

        मैं कोई वस्तु नहीं जिसे कि तुम बेचो और तुम खरीद लो। आज से हम इस दूल्हा बाजार का विरोध करते हैं और दहेज प्रथा का भी विरोध करते हैं।

       उसकी बातें सुनकर पीछे खड़े चार दूल्हे भी खड़े हो जाते हैं और अपने गले से तख़्ती निकालते हुए जमीन पर पटकते हुए कहते हैं की हम सभी भी इस दहेज कुप्रथा का विरोध करते हैं और प्रण लेते हैं कि ना दहेज लेंगे ना कहे किसी को देने देंगे।

     तभी वह सूट-बूट पहना व्यक्ति जोर से ताली बजाता और हंसता हुआ सभी के सामने आता है बोलता है कि तुम पांचों के कहने से क्या होगा ? यह समाज तो निरंतर दहेज लेता और देता आ रहा है और देता रहेगा। तभी सरकारी मास्टर आगे बढ़ता और कहता है महोदय आप सही कह रहे हैं लेकिन यदि शुरुआत की जाए तो उसे पूरा भी किया जा सकता है हमारे समाज में सती प्रथा जैसी कुप्रथा थी और बाल विवाह भी। हमने उसे खत्म किया या नहीं। ठीक उसी प्रकार से यदि हम प्रयास करें तो इस दहेज कुप्रथा को भी समाप्त कर सकते हैं बस हमें जागरूक होने की जरूरत है। यहां पर उपस्थित हम सभी गणमान्य लोगों से निवेदन करते हैं कि कृपया अपनी जगह पर खड़े हो जाए और हमारे साथ एक प्रण लें।




आज हम सभी प्रण लेते हैं कि 
अपने बेटे और बेटियों की शादी में 
ना दहेज लेंगे ना दहेज देंगे 
और समाज में यदि कहीं ऐसा कार्य 
किया जा रहा है तो उसे रोकने का 
हर संभव प्रयास करेंगे।

हम यह भी प्रण लेते हैं कि 
यदि समाज में किसी के द्वारा 
दहेज लिया जा रहा है तो 
उसका सामाजिक बहिष्कार भी करेंगे।

धन्यवाद🙏


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