मैंने जब आँखिन में डाला आज कजरा तो,
काली-काली घटा घबड़ाये के चली गई।
जैसे घुघडाड़ी मैंने अलके सँवारी-2
एक नागिन ने देखा बलखाये के चली गई।
जैसे अंगराईली पड़ोस की कुंवारी छोरी-2
दाँतन में अंगूरी दबाए के चली गई।
रूप की चमक चिंगारी बन ऐसे फूटी,
सौतन अंगीठी सुलगाये के चली गई।
मांग भर बिंदिया लगाई जब राधिका ने,
लागे जैसे भोर वाला सूरज है झोडी में।
कजरा लगावे तो यह लागे की समुंदर में,
मछली फंसाये ली मछुअन डोरी में।
गोरे-गोरे मुखड़े पर घुंघट सुनहरा "यूँ" जैसे,
चांद रखे कोई सोने की कटोरी में।
नाक में नथुनिया धीरे-धीरे डाले ऐसे जैसे,
कोई मालदार ताला दे तिजोरी में।
श्रीमती माया गोविंद जी✍️
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