दूल्हा बिकाऊ है।
दूल्हों का बाजार लगा है आके दाम लगाओ,
करो खर्च खज़ाना इनपे अपने मन का पाओ।
खर्च हुआ बचपन से अबतक खाता-बही पड़ी है,
देखो उसको जोड़-जाड़ के ज़ेबा दाम लगाओ ।।
लड़का कौवा जैसा तो क्या लड़की होगी गोरी,
चाहे जितना जोर लगा लो रकम न होगी थोड़ी ।
मामूली ये बात नहीं है उसको जन्म दिया है,
पाल-पोश के बड़ा किया है नहीं किया है चोरी ।।
उम्मीद बाँध के छोटपन से उसको मन से पाला,
यहाँ तक पहुँचाने में उसको निकल गया दीवाला।
उसके लालन - पालन में न की है कोई कटौती,
जो भी उसने हमसे माँगा कभी न उसको टाला ॥
लड़के वालों की देख दलीलें बेटी वाला घबराया,
कितने प्रतिशत छूट मांग ले समझ नहीं वो पाया ।
बचपन से बेटी को उसने भी तो प्यार किया था,
माथे पर से पोछ पसीना उसने खुद को समझाया।
मझिया ने फिर आँख मारकर उसको किया इशारा,
वहाँ से उठकर अलग ले गया करता क्या बेचारा ।
तुमने अबतक जितने देखे उनसे भले है मँहगी,
पर देखो ये रिश्ता उन सबसे कितना है प्यारा ।।
मजबूर पिता के आगे देखो कैसी ये मजबूरी थी,
घर, लड़का सबकुछ अच्छा पर रकम कहाँ पूरी थी ।
बेचे अपना घर बार अगर वो बात तभी बन पाती,
बहुत फ़िक्र थी उसको बेटी की पर सपनों से दूरी थी ।।
ओम प्रकाश पाण्डेय “सोहम"✍️
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